साओ पाउलो। ब्राजील में हुए राष्ट्रपति चुनाव में भारत की तारीफ करने वाले जैर बोलसोनारो को हार का सामना करना पड़ा। वामपंथी नेता लूला दा सिल्वा ब्राजील के नए राष्ट्रपति चुने गए हैं। हालांकि बोलसोनारो की हार का अंतर बहुत ही कम था। लगभग तीन दशक के बाद ऐसा हुआ कि कोई राष्ट्रपति दूसरे कार्यकाल के लिए नहीं चुना गया। वहीं 30 साल में यह सबसे नजदीकी लड़ाई भी थी।
दा सिल्वा के लिए उनकी सजा ही वरदान बन गई। साल 2018 में उन्हें वोटिंग से रोक दिया गया था। भ्रष्टाचार के आरोपों में उन्हें जेल भेज दिया गया था। ब्राजील मीडिया की मानें तो लूला की परवरिश एक गरीब परिवार में हुई थी। उनके पिता एक किसान थे और वह कुल 7 भाई-बहन थे। जब वह सात साल के थे तभी उनका परिवार रोजी रोटी की तलाश में ब्राजील के औद्योगिक केंद्र साओ पॉलो आ गया था।
लूला राजनीति में आने से पहले 14 साल की उम्र तक धातु का काम करते थे। उन्होंने जूते पॉलिश करने और मूंगफली बेचने का काम भी किया। 1960 में काम के दौरान ही दुर्घटना में उनकी एक उंगली कट गई थी। 1970 में सेना के तानाशाही शासन के दौरान ही उन्होंने राजनीति में कदम रखा। 1980 में उन्होंने वर्कर्स पार्टी बनाई। पार्टी बनाने के 9 साल बाद ही वह राष्ट्रपति पद की रेस में आ गए।
1989 से 1998 तक लूला ने तीन बार राष्ट्रपति चुनाव लड़ा लेकिन हर बार हार का सामना करना पड़ा। साल 2002 ममें वह वह पहली बार राषट्रपति बने। लूला की दो पत्नियों की मौत हो गई। उन्होंने 72 साल की उम्र में फिर से शादी की। 2003 से 2010 के बीच कार्यकाल के दौरान दा सिल्वा ने एक सोशल वेलफेयर प्रोग्राम चलाया जिसका बड़े स्तर पर प्रभाव पड़ा। ब्राजील की अर्थव्यवस्था को भी गति मिली। लूला की दुनिया के लोकप्रिय नेताओं में गिनती होती थी। दा सिल्वा को मनी लॉन्ड्रिंग और भ्रष्टाचारा के मामले में 580 दिन जेल में रहना पड़ा। बाद में ब्राजील के सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें निर्दोष करार दिया और उन्हें रिहा कर दिया गया।
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