पटना। लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) (Lok Janshakti Party – LJP) में टूट के बाद एनडीए (NDA) से अलग हुए चिराग पासवान (Chirag Paswan) अब बिना शर्त के साथ बीजेपी के प्रति समर्पण दिखा रहे हैं। वे हर कदम पर पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Home Minister Amit Shah) को रिझाने में लगे हैं। लोजपा (रामविलास) के मुखिया और जमुई से लोकसभा सांसद चिराग पासवान मोकामा और गोपालगंज में हो रहे उपचुनाव में बीजेपी के समर्थन में प्रचार करने जा रहे हैं। ऐसी क्या मजबूरी है कि पार्टी और बंगला जाने के बाद भी वे बीजेपी से दूर जाने के लिए तैयार नहीं हैं?
चिराग पासवान के पिता रामविलास पासवान (Ram Vilas Paswan) एनडीए में थे और नरेंद्र मोदी सरकार में मंत्री रहे। 2020 में रामविलास के निधन के बाद उनकी पार्टी बिखर गई। चिराग पासवान और उनके चाचा पशुपति पारस, रामविलास की विरासत को लेकर आमने-सामने हो गए। पशुपति पारस और लोजपा के अन्य सांसद तो एनडीए में बने रहे, लेकिन चिराग अलग हो गए और उन्होंने लोजपा (रामविलास) नाम से नई पार्टी बनाई। 2020 में उन्होंने एनडीए से अलग रहकर ही बिहार विधानसभा चुनाव लड़ा।
हालांकि, उस समय भी उन्होंने बीजेपी का साथ नहीं छोड़ा। पिछले विधानसभा चुनाव में भले ही चिराग एनडीए रहकर चुनाव लड़े, लेकिन उन्होंने बीजेपी की सीटों पर अपने प्रत्याशी नहीं उतारे और अंदर ही अंदर नरेंद्र मोदी की पार्टी को समर्थन दिया। उन्होंने खुद को पीएम मोदी का हनुमान भी बताया था। अब एक बार फिर से उन्होंने एनडीए से अलग रहते हुए मोकामा और गोपालगंज विधानसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव में बीजेपी का प्रचार करने का फैसला लिया है।
चिराग पासवान से खाली कराया गया सरकारी बंगला
रामविलास पासवान जब केंद्रीय मंत्री थे तब उनका दिल्ली में 12 जनपथ पर सरकारी बंगला हुआ करता था। उनके निधन के बाद चिराग एनडीए से अलग हो गए, तो मोदी सरकार ने उनका बंगला खाली करवा लिया। रामविलास की जगह उनके भाई और चिराग के चाचा पशुपति पारस केंद्र में मंत्री बने। अगर चिराग एनडीए में ही रहते और मंत्री बनते तो उन्हें बंगले से हाथ नहीं धोना पड़ता। एनडीए से अलग रहकर भी चिराग पासवान ने पीएम नरेंद्र मोदी का खूब गुणगान किया लेकिन वे सरकारी बंगले को बचा नहीं सके।
लोजपा में टूट के बाद चिराग को थी बीजेपी से मदद की उम्मीद
रामविलास पासवान के बाद जब लोक जनशक्ति पार्टी में टूट हुई तो चिराग पासवान अलग-थलग पड़ गए थे। उनकी पार्टी के सभी सांसद पशुपति पारस के साथ थे और चिराग अकेले। उस समय चिराग पासवान को पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह से मदद की उम्मीद थी। मगर बीजेपी ने बहुमत वाले गुट को तरजीह दी और रामविलास पासवान के निधन के बाद उनके भाई पशुपति पारस को केंद्र में मंत्री बनाया। जबकि चिराग हाथ पर हाथ धरे बैठे रह गए।
चाचा की वजह से छोड़ना पड़ा था एनडीए
चिराग पासवान का अपने चाचा पशुपति पारस से छत्तीस का आंकड़ा है। वे कई बार कह चुके हैं कि जब तक उनके चाचा एनडीए में हैं वे गठबंधन में शामिल नहीं होंगे। इसी वजह से उन्होंने बिहार विधानसभा चुनाव एनडीए से अलग होकर लड़ा और चाचा की पार्टी रालोजपा के सामने भी प्रत्याशी उतारे। हालांकि उन्हें सफलता हाथ नहीं लग सकी थी।
चिराग पासवान जानते हैं कि बिहार में अकेले रहकर उन्हें राजनीतिक रूप से सफलता नहीं मिलने वाली है। नीतीश कुमार से उनकी अनबन है, इसलिए वे महागठबंधन में नहीं जाने वाले हैं। बिहार में सत्ता परिवर्तन के बाद से वे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ खुलकर बयानबाजी कर रहे हैं। उनके पास एनडीए में वापस आने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है।
माना जा रहा है कि इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखकर चिराग पासवान हर मोर्चे पर नरेंद्र मोदी और अमित शाह को रिझाने में लगे हैं। इस साल हुए राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव में भी उन्होंने एनडीए उम्मीदवारों का समर्थन किया था। हो सकता है कि वे आगामी आम चुनाव से पहले चाचा पशुपति पारस के रहते हुए ही एनडीए में वापसी कर लें।
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