नई दिल्ली । हमारे समाज में चुगलखोर (snitch person) शब्द काफी नेगेटिव सेंस में इस्तेमाल होता है. घर में हम बच्चों को भी समझाते हैं कि चुगली करना बुरी बात है. हर ऑफिस या मुहल्ले में कोई ऐसा व्यक्ति होता है जिसे चुगली करने में माहिर माना जाता है. किसी की शादी तय हो, ब्रेकअप (brake up) हो जाए, किसी से अनबन हो जाए, किसी की जॉब चली जाए, उसे सब पता होता है.
नये ऑफिस या नई लोकेलिटी में शिफ्ट होते ही आपको बहुत जल्दी ही नसीहत मिल जाती है कि फलां से बचकर रहें. इनसे तुरंत इधर की बात उधर हो जाती है. फलां बहुत चुगलीबाज (chuglibaaz) हैं. लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि चुगली की आदत हमें कुदरती तौर पर मिली है. एक नई इन्फार्मेशन को हम दूसरी जगह तक पहुंचाते ही हैं, हां ये हो सकता है कि आपका दायरा उस दायरे से अलग हो.
बंसल हॉस्पिटल भोपाल के वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ सत्यकांत त्रिवेदी कहते हैं कि इंसान के ब्रेन की संरचना ही ऐसी है कि हम जानकारियों को आगे फैलाते हैं. इसे मनोविज्ञान (Psychology) की भाषा में सोशल स्किल में गिना जाता है. हाल ही में हुए कई रिसर्च कहते हैं कि गासिपिंग लोगों के बीच कम्युनिकेशन (communication) करने में मदद करती है, जिससे दिमागी सेहत दुरुस्त रहती है, लेकिन इसकी बाउंड्रीज तय करना भी बहुत जरूरी है.
रिसर्च- चुगली करना एक नैसर्गिक आदत
सोशल साइकोलॉजिकल एंड पर्सनैलिटी साइंस जर्नल में प्रकाशित एक स्टडी को समझिए. इस स्टडी में 467 वयस्कों ने दो से पांच दिनों के दौरान इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्डर (electronic recorder) पहने, जो उस अवधि में उनकी मौखिक बातचीत के नमूने एकत्र कर रहे थे. शोधकर्ताओं ने उनकी बातचीत की सभी फाइलों को सुना. उस डेटा से पता चला कि अध्ययन में शामिल लगभग सभी ने गपशप की. गपशप में वगीकृत ये दूसरों के बारे में की गईं बातें थीं. डेटा में सामने आया कि 467 में से केवल 34 व्यक्तियों ने गपशप नहीं की.
एक चर्चित किताब सेपियंस:
ए ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ मैनकाइंड में आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी (Oxford University) की रिसर्च का हवाला दिया गया है. इस रिसर्च के अनुसार गॉसिपिंग भी सिगरेट (gossiping also cigarette) या अन्य नशों की तरह एक लत की तरह हो जाती है. जो लोग गॉसिपिंग करते हैं, उन्हें बार बार इसकी तलब महसूस होती है. रिसर्च में कहा गया है कि गॉसिपिंग की आदत इंसान को मानवीय बनाती है. इससे उन्हें खुशी मिलती है और ये आदत उम्र भी बढ़ाती है.
कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, रिवरसाइड में मनोविज्ञान के सहायक प्रोफेसर मुख्य अध्ययन लेखक मेगन रॉबिंस ने स्टडी लीड की थी. वो कहते हैं कि गॉसिपिंग के जरिये हम आसपास की सोशल इनफार्मेशन शेयर करते हैं. इससे हम अपने आस-पास की सामाजिक दुनिया के बारे में बहुत कुछ जानकर उससे सीखते भी हैं.
कौन होता है अच्छा चुगलीबाज
डॉ सत्यकांत कहते हैं कि जो चीज गॉसिप को अच्छा, बुरा या न्यूट्रल बनाती है, वो है कि हम इनफॉर्मेशन का इस्तेमाल कैसे करते हैं, न कि उसके कंटेंट का. गॉसिप करना असल में एक सोशल स्किल है, ये एक तरह की कला है जो इसमें अपने नकारात्मक भावों को जोड़कर ऐसा करते हैं, उनके मानसिक स्वास्थ्य के लिए ये खतरनाक भी साबित हो सकती है.
असल में एक अच्छा चुगलीबाज वो होता है जिसकी गॉसिप में दी गई जानकारी का लोग भरोसा करते हैं. कोई ऐसा व्यक्ति जो उस जानकारी का जिम्मेदार तरीके से उपयोग करता है. उदाहरण के लिए जैसे आपको पता चलता है कि जिस व्यक्ति पर आपके मित्र का क्रश है, उसकी धोखाधड़ी के लिए खराब इमेज है. ऐसे में आप अपने मित्र को ये बात बताएंगें. इसमें आपका इंटेंशन अपने मित्र को चोट पहुंचाने का नहीं बल्कि एक चेतावनी का होना चाहिए.
बेहतर होती है बॉन्डिंग लेकिन…
सर गंगाराम हॉस्पिटल के वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ राजीव मेहता कहते हैं कि गॉसिपिंग का एक प्रोटोकॉल होता है. जैसे अगर आप दो अलग अलग क्षेत्रों के लोगों से कोई बात साझा करते हैं तो उसे गॉसिप नहीं कहा जाएगा बल्कि शेयरिंग कहा जाएगा. लेकिन यदि आप एक ही संस्थान या एक ही बिल्डिंग में रह रहे लोगों से आपस में जानकारियां साझा कर रहे हैं तो उसमें भले ही आपकी बॉन्डिंग बेहतर होती है, लेकिन यदि आप नकारात्मक तथ्य साझा करते हैं तो इससे आपके भीतर एक अलग तरह का फियर भी जन्म लेता है जो कि मेंटल हेल्थ के लिए सही नहीं है.
सटीक जानकारी तटस्थ भाव से साझा करने पर आपस में विश्वास बढ़ता है. शरीर में फील गुड हार्मोन रिलीज होते हैं जो कि सेरोटोनिन की तरह होते हैं. किसी बात की गॉसिप करके उस पर तर्क-विर्तक पर किसी चीज को कसौटी पर कसेंगे तो उसके बारे में एक राय बनाएंगे और फिर उस पर गॉसिप करेंगे. ये प्रक्रिया लोगों को समझने में भी मददगार साबित होती है.
बरतें ये जरूरी सावधानियां
– किसी के बारे में ऐसी जानकारी जिसे अमुक व्यक्ति ने किसी से साझा करने से मना किया है तो आप उसे अपने तक ही सीमित रखें.
– नकारात्मक बातों को नमक-मिर्च लगाकर गलत उद्देश्य के साथ दूसरों के साथ न बांटें, इससे आपकी इमेज भी खराब होती है.
– गॉसिपिंग और चरित्रहनन के बीच का अंतर समझें, आपके द्वारा प्रचारित बातों से किसी का चरित्रहनन नहीं होना चाहिए.
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