चेन्नई। केंद्रीय शिक्षा संस्थानों में हिंदी माध्यम में पढ़ाई की संसदीय समिति की सिफारिश का तमिलनाडु में विरोध शुरू हो गया है। राज्य में सत्तारूढ़ द्रमुक ने इसके खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया। द्रमुक की युवा इकाई के सचिव और मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बेटे उदयनिधि स्टालिन ने हिंदी में पढ़ाई के खिलाफ कार्यकर्ताओं व नेताओं के साथ चेन्नई में विरोध प्रदर्शन किया।
गत माह राजभाषा संसदीय समिति ने पेश की थी रिपोर्ट, ये सिफारिशें कीं
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता वाली राजभाषा संसदीय समिति ने पिछले महीने अपनी राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के सामने अपनी 11वीं रिपोर्ट पेश की थी। अपनी रिपोर्ट में समिति ने सिफारिश की थी कि सभी राज्यों में स्थानीय भाषाओं को अंग्रेजी पर वरीयता दी जानी चाहिए। इसके अलावा समिति ने सुझाव भी दिया था कि देश के सभी तकनीकी और गैर-तकनीकी संस्थानों में शिक्षा के माध्यम के रूप में हिंदी या स्थानीय भाषा का प्रयोग किया जाना चाहिए। समिति ने शिक्षा के माध्यम के लिए अंग्रेजी के प्रयोग को वैकल्पिक बनाने की अपील की थी। इस समिति की सिफारिशों पर केरल के सीएम पिनराई विजयन ने आपत्ति जताई थी। उन्होंने इसमें पीएम मोदी से हस्तक्षेप करने की मांग भी की थी।
आईआईटी में हिंदी माध्यम में हो शिक्षा
समिति ने सिफारिश की थी कि हिंदी भाषी राज्यों में तकनीकी और गैर-तकनीकी उच्च शिक्षा संस्थानों जैसे आईआईटी में हिंदी माध्यम में शिक्षा दी जानी चाहिए। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव सीटी रवि ने विपक्षी नेताओं खास कर केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन और तमिलनाडु के सीएम एम के स्टालिन की संसदीय समिति की सिफारिशों को लेकर की गई आलोचनाओं का खंडन किया। गौरतलब है कि दक्षिण भारतीय राज्यों के इन दो नेताओं ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा था कि केंद्र सरकार गैर-हिंदी भाषी राज्यों पर हिंदी थोप रहा है।
भाजपा नेता ने दी यह दलील
भाजपा नेता सीटी रवि ने कहा कि समिति की सिफारिशें केवल अंग्रेजी के स्थान पर हिंदी को बढ़ावा देती हैं। मलयालम, तमिल, तेलुगु, कन्नड़ या मराठी जैसी क्षेत्रीय भाषाओं के स्थान पर हिंदी के प्रयोग को लेकर कोई सिफारिश नहीं की गई है। उन्होंने कहा कि अगर कोई नेता मलयालम के गौरव या तमिल के गौरव के लिए लिखता है, तो हमारी पार्टी उसका स्वागत करती है, लेकिन अगर वह अंग्रेजी के पक्ष में लिखता है, तो यह उचित नहीं है। उन्होंने महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू का उल्लेख करते हुए कहा कि वे लोग भी हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं के प्रचार का समर्थन करते थे।
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