नई दिल्ली। हिंदू धर्म में तुलसी (Tulsi ) का विशेष महत्व (special importance) है. तुलसी के पत्ते को हर शुभ और मांगलिक कार्य में इस्तेमाल किया जाता है. हिंदू धर्म में कार्तिक माह में तुलसी का पूजन विशेष रूप से किया जाता है. पंचांग के अनुसार, तुलसी विवाह (Tulsi Vivah 2022) का आयोजन हर साल कार्तिक माह (Kartik month) के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को किया जाता है. इस एकादशी को देवउठनी एकादशी, प्रवोधिनी एकादशी भी कहते है.
तुलसी विवाह 2022 कब?
साल 2022 में तुलसी विवाह (Tulsi Vivah ) का आयोजन 05 नवंबर, 2022 दिन शनिवार को किया जाएगा. मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु चार माह की लंबी निद्रा के बाद जागते हैं. इसके साथ ही सारे शुभ मुहूर्त खुल जाते हैं. हिंदू धर्म के मानने वालों में इस दिन भगवान विष्णु (Lord Vishnu) के शालीग्राम अवतार के साथ माता तुलसी के विवाह करने की परंपरा है. तुलसी विवाह के साथ ही सभी मांगलिक और धार्मिक (demanding and religious) कार्य शुरू हो जाते हैं.
तुलसी विवाह 2022 शुभ मुहूर्त
तुलसी विवाह 2022 : 05 नवंबर, 2022, शनिवार
कार्तिक द्वादशी तिथि शुरू: 05 नवंबर 2022 शाम 06:08 बजे
द्वादशी तिथि समाप्त: 06 नवंबर 2022 शाम 05:06 बजे
तुलसी विवाह पारण मुहूर्त : 06 नवंबर को , 13:09:56 से 15:18:49 तक रहेगा.
तुलसी विवाह 2022 की पूरी विधि
इस दिन परिवार के सभी लोग स्नानादि करके विवाह स्थल यानी आँगन में जहां तुलसी का पौधा है, पर एकत्रित हों. अब एक अन्य चौकी पर शालिग्राम रखें. साथ ही चौकी पर अष्टदल कमल बनाएं. कलश स्थापित करें. इसमें गंगा जल या शुद्ध जल भरकर कलश पर स्वास्तिक बनाएं.
गेरू लगे तुलसी के गमले को शालिग्राम की चौकी के दाईं ओर स्थापित करें. अब धूप दीप और अगरवती जलाएं. “ऊं तुलसाय नम:” मंत्र का जाप करें. तुलसी को सोलह श्रृंगार करें.
गन्ने से विवाह मंडप बनाएं और चुनरी ओढ़ाएं. अब शालिग्राम को चौकी समेत हाथ में लेकर तुलसी की सात परिक्रमा कराएं. तुलसी को शालिग्राम के बाईं ओर स्थापित करें. आरती उतारें. इसके बाद विवाह संपन्न होने की घोषणा कर प्रसाद का वितरण करें.
तुलसी विवाह की कथा
कथा के अनुसार तुलसी माता का असली नाम वृंदा (Vrinda) था। उनका जन्म राक्षस कूल में हुआ था। राक्षस कूल में जन्म लेने के बाद भी वृंदा भगवान विष्णु की परम भक्त थी। बड़े होने के बाद वृंदा की शादी जालंधर नामक असुर से हो गई। वृंदा भगवान विष्णु के भक्त होने के साथ-साथ एक पतिव्रता स्त्री भी थी। वृंदा की भक्ति के कारण जालंधर हर लड़ाई में हमेशा विजय प्राप्त करता था। इस कारण उसे अपनी शक्ति पर बहुत घमंड हो गया। अधिक घमंड होने के कारण एक बार उसने स्वर्ग पर आक्रमण कर सभी देवकन्याओं को अपने अधिकार में कर लिया। जालंधर के ऐसा करने से सभी देवता बेहद क्रोधित हुए और वह तुरंत भगवान विष्णु की शरण में जाकर जालंधर को खत्म करने की प्रार्थना करने लगें।
भक्ति भंग किए बिना मारना असंभव
भगवान विष्णु जानते थे कि उसकी पत्नी वृंदा उनकी परम भक्त है। यदि वृंदा की भक्ति भंग नहीं की जाएगी तो उसे मारना असंभव है। यह सोचकर भगवान विष्णु ने अपनी माया से जालंधर का रूप धारण कर वृंदा के पतिव्रता होने को नष्ट कर दिया। इसी कारण से जालंधर की सारी शक्तियां क्षणभर में नष्ट हो गई और वह युद्ध में मारा गया। लेकिन जब वृंदा को भगवान श्री हरि के छल का पता चला, तो वृंदा ने भगवान विष्णु से कहा आपने मेरे साथ इतना बड़ा धोखा क्यों किया।
वृंदा ने दिया श्राप
यह सुनकर भगवान श्रीहरि चुप रह गए। तब वृंदा ने भगवान विष्णु को श्राप दे दिया कि आप हमेशा पत्थर के स्वरुप बनकर रह जाएंगे। तभी भगवान विष्णु का पूरा शरीर पत्थर के समान होने लगा और सृष्टि का संतुलन बिगड़ने लगा। यह देखकर देवताओं ने वृंदा माता से प्रार्थना कि वे अपना श्राप वापस ले लें। भगवान विष्णु को लज्जित देखकर वृंदा माता ने अपना श्राप वापस कर लिया और अपने पति जालंधर के साथ सती हो गई।
राख से निकला पौधा
वृंदा माता की राख से एक पौधा निकला जिसे भगवान विष्णु ने तुलसी का नाम दिया और उसे वरदान दिया कि तुलसी के बिना मैं किसी भी प्रसाद को ग्रहण नहीं करूंगा। मेरा विवाह शालिग्राम रूप से तुलसी के साथ होगा और कालांतर इस तिथि को लोग तुलसी विवाह के नाम से जानेंगे। इसका व्रत करने से लोगों को सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होगी। तभी से तुलसी विवाह पूरे संसार में विख्यात हो गई।
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