भोपाल। प्रदेश के सरकारी कर्मचारियों से दीपावली पर बड़ा तोहफा मिलने जा रहा है। सरकार 4 प्रतिशत डीए देने की घोषणा कर सकती है। जल्द ही अंतिम निर्णय 11 अक्टूबर के बाद लिया जाना है, जिसकी घोषणा जल्दी की जाना है। बढ़े हुए डीए का भुगतान अक्टूबर पेड टू नवंबर के वेतन में किया जाएगा। हालांकि दीपावली 24 अक्टूबर को है, इसलिए बढ़ा हुआ वेतन नवंबर में मिलेगा। इस बारे में वित्त विभाग ने अपना मत दे दिया है। डीएम बढऩे से कर्मचारियों को हर महीने 620 रु. और अफसरों को 8558 रु. तक का फायदा होगा।
डीए के बढऩे का यह है गणित
डीए की बढ़ोतरी होने पर इस वित्तीय वर्ष में यानी अक्टूबर से मार्च 2023 के बीच 700 करोड़ रु. का अतिरिक्त भार आएगा। यानी हर महीने 104 करोड़ रु. का अतिरिक्त भार आएगा। साथ ही 1 जुलाई से 30 सितंबर तक के एरियर देने पर 312 करोड़ रु. एकमुश्त खर्च करने होंगे। चार साल बाद डीए का एरियर दिए जाने को लेकर हिसाब-किताब लगाया जाया जा रहा है, क्योंकि कोरोना महामारी के बाद से अभी तक पिछले 26 महीनों में बढ़े हुए महंगाई भत्ते का एरियर नहीं दिया गया है। इस मर्तबा दीपावली और प्रदेश का स्थापना दिवस एक नवंबर को होने की वजह से 1 जुलाई से डीए का भुगतान किया जा सकता है, वहीं तीन महीने के एरियर की राशि कर्मचारियों को नगद दे दी जाए या उनके जीपीएफ अकाउंट में डाल दी जाए, इस बारे में विचार किया जा रहा है।
38 प्रतिशत हो जाएगा मप्र के कर्मचारियों का डीए
4 प्रतिशत डीए की बढ़ोतरी होने पर कर्मचारियों का महंगाई भत्ता 34 से बढ़कर 38 प्रतिशत हो जाएगा। इसमें कर्मचारियों को हर महीने 620 रुपए और अफसरों को 8558 रुपए तक का फायदा होगा। साथ ही तीन महीने के एरियर की कर्मचारियों की न्यूनतम राशि 1860 रुपए और अधिकतम अफसरों की 34232 रुपए उनके जीपीएफ अकाउंट में डाली जा सकती है।
पेंशनर्स के डीआर में धारा 49 का रोड़ा
छह महीने देरी से मिलता है डीआर का फायदा, केंद्रीय पेंशनर्स से 10 प्रतिदिन पीछे प्रदेश में 4.75 लाख पेंशनर्स की महंगाई राहत बढ़ाने में धारा 49 दिक्कत बनी हुई है। इसमें पेंशनर्स के डीआर बढ़ाने के मामले में मप्र को छत्तीसगढ़ से वित्तीय सहमति लेना जरूरी है। इसकी वजह राज्य पुनर्गठन अधिनियम की धारा 49 संसद के द्वारा पारित है। इसमें कहा गया है कि मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ दोनों राज्यों में परस्पर वित्तीय मामलों में सहमति होना जरूरी है। इसी के अनुसार मप्र और छत्तीसगढ़ का बंटवारा वर्ष 2000 में आबादी के हिसाब से हुआ, जिसमें 76 प्रतिशत हिस्सेदारी मप्र की और 24 प्रतिशत छत्तीसगढ़ की है। इस धारा को खत्म किए जाने के लिए दोनों राज्यों की सहमति के बाद केंद्र की अनुमति जरूरी है जो दोनों राज्यों की पेंशनर्स की दिक्कतों को देखते हुए दृढ़ इच्छा शक्ति पर निर्भर है।
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