रायसेन: मध्य प्रदेश के रायसेन (Raisen of Madhya Pradesh) में एक मंदिर जहां प्रसिद्ध देवी मां के मंदिर खंडेरा में हजारों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने पहुंचते हैं. दूरदराज से लोग पैदल चलकर चुनरी चढ़ाते (Chunari on foot) हैं और पूजा अर्चना कर भंडारा करा कर मां का आशीर्वाद लेते हैं. कहा जाता है कि मंदिर में विराजी मां को छोला वाली देवी के नाम से जाना जाता है.
मां के मंदिर के बारे में बताया जाता है कि रायसेन के ग्राम खंडेरा में बहुत सालों पहले एक महामारी फैली थी. गांव में 3 अर्थियां एक साथ ले जायी जा रही थीं. एक संत ने यह सब देख पूछ लिया कि यह क्या है. तो वहां मौजुद लोगों ने संत को बताया कि एक ऐसा गांव है जहां एक खतरनाक बीमारी फैलने के चलते हर रोज अर्थियां उठ रही हैं. संत ने ग्रामीणों की बात सुनते ही कहा कि गांव से चंदा कर सात दिवसीय यज्ञ कराएं.
ग्रामीणों ने चंदा इकट्ठा किया और यज्ञ पूजा पाठ शुरू हो गया . सातवें दिन अचानक यज्ञ वाली जगह से तेज आवाज आने लगी और छोले के पेड़ के पास जमीन एकदम से फट गई. यहां से रथ पर सवार होकर पांच मुखी देवी की प्रतिमा निकली. बाद में उसी संत के कहने पर देवी का नाम छोला वाली माता पड़ गया. गांव की महामारी खत्म होने के बाद सभी लोग छोले वाली माता की बड़ी श्रद्धा भक्ति के साथ पूजा करने लगे. आज भी बड़ी संख्या में दूर-दराज से श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं और मानते हैं कि मां सभी की मनोकामना पूरी करती हैं.
होली और दूज पर पूरे गांव के लोग बकरी के बच्चे को लेकर पूजन करने जाते हैं. जल छिड़क कर मंदिर परिसर में बकरी के बच्चे को छोड़ देते हैं, यदि बच्चा फुरहरी लेता है तो ऐसा माना जाता है कि देवी ने पूजा स्वीकार कर ली. इसके बाद बकरी के बच्चे की बलि दी जाती है. खून खप्पर में भरकर एक चबूतरे पर रख दिया जाता है, दूसरे दिन चबूतरे पर खून से बने शेर के पंजे के निशान देखने को मिलते हैं. निशान नहीं दिखाई दिए तो हलवा का भोग मंदिर में लगाया जाता है. इस खास दिन पूरे गांव में धार वाले हथियार से कोई काम नहीं किया जाता.
रायसेन में विराजी मां के दर्शन के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं. नवरात्रि में मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ जमा हो जाती है. प्रसिद्ध देवी मां के दर्शन के लिए सिर्फ मध्य प्रदेश ही नहीं बल्कि दूसरे राज्यों के लोगों में भी भारी उत्साह होता है. लोग यहां आकर मां का दर्शन करते हैं और मुरादें मांगते हैं.
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