मको था इंतजार वो घड़ी आ गई,
होकर सिंह पर सवार माता रानी आ गई,
होगी अब मन की हर मुराद पूरी,
हरने सारे दु:ख माता अपने द्वार आ गई।
आज सुबह जब भोपाल के भन्नाट टाइप के खेल पत्रकार रामकृष्ण यदुवंशी को फोन लगाया तो उन्ने इन लफ्ज़़ों में शारदीय नवरात्र की मुबारकबाद दी। रामकृष्ण यदुवंशी दैनिक भास्कर में गुजिश्ता 23 बरसों से स्पोट्र्स की बीट देख रहे हैं। यहां आज इनके जि़कर की एक खास वजह है। भाई जो हैं वो मातारानी के भोत बड़े भगत हैं। बचपन सेई घर मे मज़हबी माहौल ऐसा मिला के चैत्र और शारदीय नवरात्र के दौरान पूरे 9 दिन उपवास और माता की भक्ति में लीन रहते हैं। माता के प्रति अपनी इस अक़ीदत और एहतराम को ये भोत अहमियत देते हैं। यदुवंशी केते हैं के ये देवी और भक्त के बीच का मामला है, लिहाज़ा मैं इसे जरनालाइज़ नहीं करता। मेरी नोकरी और माता की भक्ति दोनो साथ चलते रहते हैं। रामकृष्णन यदुवंशी हर बरस शारदीय नवरात्र में भोपाल से सलकनपुर मैं विराजीं विजयासन देवी के दर्शन के लिए पैदल जाते हैं। भोपाल से सलकनपुर की 70 किलोमीटर की दूरी तकरीबन डेढ़ दिन में पूरी होती है।
सप्तमी की रात कोई 10 बजे ये घर से निकल लेते है। सुबह सात आठ बजे तक ये ओबेदुल्लागंज पहुंच जाते हैं। वहां से देलावाड़ी होते हुए शाम ढलने के पहले ये सलकनपुर में देवी के दरबार में मत्था टेकने पहुंच जाते हैं। इनके संग कई दफे पत्रकार सतेंद्र प्रजापति और पंकज जैन भी पैदल यात्रा पर गए। पिछले 2 बरसों से कोरोना की वजह से इनकी पदयात्रा नहीं हो सकी थी। इस बार ये सलकनपुर पैदल जाने की पूरी तैयारी में हैं। यदुवंशी के मुताबिक ये तीन चार किमी मॉर्निंग वॉक के अलावा बैडमिंटन, स्वीमिंग और साइकिलिंग करते हैं। यही फिटनेस लंबा पैदल चलने में मददगार होती है। ये बताते है कि रास्ते भर सेवादारों का हुजूम मिलता है। सैकड़ों भक्त पैदल चलने वालों का साथ रहता है। माता के जयकारों के साथ कब उनके दरबार में पहुंच जाते हैं पता ही नहीं चलता। रास्ते मे फलाहार के अलावा चाय और पानी पीते हुए ये मुक़द्दस सफर तय हो जाता है। 1996 से इनकी सलकनपुर पैदल यात्रा शुरु हुई थी। हालांकि बीच के कई साल ये किसी वजह से वहां नहीं जा पाए थे। भाई का केना है के दिल मे जज़्बा हो तो मैया सारे काम आसान कर देती हैं। मुबारक हो साब आपको। आप सालों साल ये सिलसिला जारी रखें।
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