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    SC ने केंद्र से कहा- EWS को आरक्षण नहीं, सकारात्मक कार्रवाई की जरूरत… जानें अपडेट

  • September 23, 2022

    नई दिल्लीः यह देखते हुए कि जाति-आधारित पिछड़ेपन के विपरीत, ‘आर्थिक पिछड़ापन अस्थायी हो सकता’ है, सुप्रीम कोर्ट की एक संविधान पीठ ने गुरुवार को केंद्र से पूछा कि क्या आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) की समस्याओं को सकारात्मक उपायों के माध्यम से हल किया जा सकता है…? जैसे कि आरक्षण देने की बजाय छात्रवृत्ति और शुल्क रियायतें प्रदान करके.

    द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ की अध्यक्षता कर रहे भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस यूयू ललित ने कहा, ‘जहां तक बात अन्य आरक्षणों के बारे में है, तो यह वंश से जुड़ा हुआ है. यह पिछड़ापन कोई ऐसी चीज नहीं है जो अस्थायी हो, बल्कि सदियों और पीढ़ियों से चली आ रही है. लेकिन आर्थिक पिछड़ापन अस्थायी हो सकता है.’

    आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट संविधान के 103वें संशोधन को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है, जिसके जरिए सरकारी नौकरियों और प्रवेश (शिक्षण संस्थाओं में) में ईडब्ल्यूएस श्रेणियों को 10 प्रतिशत कोटा प्रदान किया गया था. सीजेआई, ईडब्ल्यूएस श्रेणी के कुछ छात्रों की ओर से पेश अधिवक्ता विभा मखीजा की दलीलों का जवाब दे रहे थे, जिन्होंने कहा कि आरक्षण प्रदान करने के लिए एक मानदंड के रूप में ‘आर्थिक स्थिति’ को संवैधानिक अनुमति प्राप्त है.

    संविधान के परिवर्तनकारी चरित्र की ओर इशारा करते हुए मखीजा ने अपनी दलील में कहा कि इसके (संविधान) निर्माताओं ने कभी ऐसी स्थिति की कल्पना नहीं की होगी, जहां जाति ही आरक्षण प्रदान करने का एकमात्र मानदंड हो. सुप्रीम कोर्ट की बेंच, जिसमें सीजेआई यूयू ललित के अलावा जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, एस रवींद्र भट, बेला एम त्रिवेदी और जेबी पारदीवाला भी शामिल हैं, ने किसी भी अच्छी तरह से परिभाषित दिशानिर्देशों की अनुपस्थिति के कारण ईडब्ल्यूएस श्रेणी की ‘असमाप्यता’ (जिसे खारिज या समाप्त नहीं किया जा सकता) पर सवाल उठाए.

    केंद्र की ओर से पेश साॅलिसिटर जनरल तुषार मेहता का तर्क
    सुप्रीम कोर्ट में इस मुद्दे पर केंद्र सरकार का पक्ष रख रहे साॅलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने संविधान पीठ की टिप्पणी पर कहा, ‘सामाजिक पिछड़ेपन को भी संविधान में परिभाषित नहीं किया गया है.’ इस पर जस्टिस भट ने कहा, ‘इसके लिए कोई संविधान से परे, प्रस्तावना, संविधान निर्माताओं के भाषण आदि तक जा सकता है. जबकि ईडब्ल्यूएस के मामले में, आप एक अज्ञात समुद्र में हैं.’


    जस्टिस माहेश्वरी ने भी कहा कि ईडब्ल्यूएस में कौन आएगा, इस बारे में ‘कोई पद्धति नहीं है, कोई दिशानिर्देश नहीं है. तुषार मेहता ने कहा, ‘आयोग का गठन कर समस्या का समाधान किया जा सकता है. यह समास्या समाधान योग्य है. सरकार कमीशन ला सकती है. यदि कुछ राज्य उस अभ्यास के बिना ईडब्ल्यूएस कोटा लागू करते हैं, तो उस कार्यकारी कार्रवाई को चुनौती दी जा सकती है. लेकिन दिशानिर्देशों की अनुपस्थिति, संविधान संशोधन को चुनौती देने का कोई आधार नहीं है.’

    EWS कोटा रिजर्वेशन संतुलन और तर्कसंगतता प्रदान करता है
    उन्होंने कहा, ‘एक संविधान संशोधन को तब तक रद्द नहीं किया जा सकता जब तक कि यह संविधान के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन नहीं करता है. 103वां संशोधन संविधान के बुनियादी ढांचे को नष्ट नहीं करता है, बल्कि न्याय देकर प्रस्तावना को मजबूत करता है, आर्थिक न्याय, जो प्रस्तावना का एक मौलिक हिस्सा है.’

    साॅलिसिटर जनरल ने कहा, ‘समानता और समान अवसर की संवैधानिक दृष्टि गतिशील और विकसित हो रही है…सार रूप में नहीं बल्कि निश्चित रूप से. वर्तमान संशोधन संविधान की इस गतिशील और विकासवादी प्रकृति के अनुरूप है, जो आरक्षण की प्रक्रिया को संतुलन और तर्कसंगतता प्रदान करता है. वर्तमान संशोधन समानता कोड के सार को बदले बिना और सकारात्मक कार्रवाई के पहले से मौजूद रूपों से उत्पन्न होने वाली अन्य विसंगतियों को संतुलित करते हुए, सकारात्मक कार्रवाई के एक अतिरिक्त रूप का प्रावधान करता है.’

    जाति सामाजिक पिछड़ेपन का एकमात्र संकेतक नहीं है: मेहता
    उन्होंने अपने तर्क में कहा, ‘गरीबी या आर्थिक कमजोरी केवल एक वित्तीय वास्तविकता नहीं है. आर्थिक कमजोरी भी एक सामाजिक वास्तविकता है और इसका सामाजिक और शैक्षिक मानकों के साथ घनिष्ठ संबंध है…जाति सामाजिक पिछड़ेपन का एकमात्र संकेतक नहीं है…सामाजिक पिछड़ापन अन्य कारकों के कारण भी हो सकता है और जाति धुरी के बाहर किसी भी वर्गीकरण या सामाजिक पहचान के कारण हो सकता है.

    जाति के अतिरिक्त पिछड़ेपन के अन्य सामाजिक-आर्थिक संकेतकों को संवैधानिक रूप से विकृत नहीं कहा जा सकता. जाति एक वास्तविकता है, लेकिन यह पिछड़ेपन का एकमात्र समाज संकेतक नहीं है.’ तुषार मेहता ने संविधान पीठ से कहा कि 21वीं सदी में देश की प्रगति के दौरान आर्थिक कमजोरी भी अपने आप में सामाजिक प्रतिष्ठा का सूचक बन गई है. गणतंत्र का उद्देश्य सभी जातियों और वर्गों के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक जीवन के सभी क्षेत्रों में बेहतरी लाना है.

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