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    राष्ट्र की शान, खुशहाल किसान

  • September 15, 2022

    – डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

    भारत कृषि पालन देश के रूप में विख्यात रहा है। कृषि अपने में अकेला क्षेत्र नहीं है। इसमें पशुपालन और कुटीर उद्योग पूरक के रूप में शामिल होते हैं। तीनों में कभी कोई भी पक्ष कमजोर हुआ तो दूसरे उसकी भरपाई के विकल्प रहते थे। इनसे आय, स्वरोजगार और सुपोषण स्वाभाविक रूप से उपलब्ध रहता था। यही कारण था कि ब्रिटिश काल की शुरुआत तक भारत के सभी गांव आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर और स्वावलंबी थे। भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था। अंग्रेजों ने भारत के आर्थिक शोषण की कार्ययोजना बनाई। फिर कुटीर उद्योगों को नष्ट किया। इसका मकसद था कि ब्रिटेन के उत्पाद को भारत में बेचना सम्भव हो सके। कृषि पर लगान में वृद्धि होती रही। इससे किसानों की आय कम हुई। ब्रिटिश शासक अपनी सरकारी मशीनरी और सेना का पूरा खर्च भारतीय संसाधनों से पूरा करने लगे। स्वतंत्रता के बाद कृषि पशुपालन और स्थानीय उद्योगों पर नए सिरे से ध्यान देने की आवश्यकता थी। मगर इस पर ध्यान नहीं दिया गया। साल 2014 में केंद्र में आई नरेन्द्र मोदी की सरकार ने इस दिशा में सोचा। किसानों की आय दोगुनी करने के संकल्प लिया। अब देश में किसानों के हक-हुकूक की अनेक योजनाओं का क्रियान्वयन किया जा रहा है। किसान खुशहाल हो रहे हैं।

    उत्तर प्रदेश के किसानों की चिंता करने वाले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश में एक जिला एक अध्ययन योजना लागू की। इससे स्थानीय उद्योगों को नया जीवन मिल रहा है। इस योजना में कृषि उत्पाद भी शामिल हैं। किसान खुश हैं। गौ संरक्षण केंद्र बनाए गए हैं। गौ पालकों को प्रोत्साहन राशि दी जा रही है। डेयरी उद्योगों को महत्व देने से प्रदेश के किसान श्वेत क्रांति का हिस्सा बनकर आय बढ़ा रहे हैं। पशुपालन करोड़ों किसानों की अतिरिक्त आय का स्रोत बन रहा है। भारत के डेयरी उत्पाद का वैश्विक बाजार में महत्व है। यह महिलाओं के आर्थिक विकास को बढ़ाने का जरिया है। पशुधन बायोगैस,जैविक खेती और प्राकृतिक खेती का भी बड़ा आधार है। अब यह बात समझ में आ गई है कि जो पशु दूध देने योग्य नहीं रह जाते, वह बोझ नहीं होते बल्कि वे भी हर दिन किसानों की आय बढ़ा सकते हैं।

    कुछ समय पहले प्रधानमंत्री मोदी ने काशी में बनास डेयरी संकुल का शिलान्यास और प्रयागराज में महिला स्वावलंबन अभियान शुरू कर किसान के दुख-दर्द हरने का भगीरथ प्रयास किया। पिछले दिनों वह गुजरात में महिला स्वावलंबन और बनास डेयरी से संबंधित कार्यक्रमों में सहभागी हुए। दरअसल मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने ज्योतिग्राम योजना शुरू की थी। इससे बिजली की आपूर्ति सुनिश्चित हुई थी। ड्रिप सिंचाई के प्रयोग से कृषि लागत में कमी आई थी। इससे भी किसानों की आय बढ़ी। अगर कोई पशु बीमार होता तो तीस मिनट में एंबुलेंस पहुंच जाती। देश में प्रति वर्ष साढ़े आठ लाख करोड़ रुपये से अधिक मूल्य के दूध का उत्पादन होता है। इस क्षेत्र में भारत विश्व में प्रथम स्थान पर है। प्रति वर्ष उत्पादित गेहूं और चावल का कारोबार भी इससे कम है। डेयरी क्षेत्र का सबसे बड़ा लाभ हमारे छोटे किसानों को मिलता है।

    बायो सीएनजी प्लांट से भी किसानों की आय बढ़ रही है। यह कचरे से कंचन के सरकार के अभियान को मदद कर रहा है। सहकारी आंदोलन आत्मनिर्भर भारत अभियान को मजबूत बना रहा है। भारत में प्राचीनकाल से कृषि और पशुपालन परस्पर पूरक रहे है। इसे हमारी सरकार ने समझा है। अब इस क्षेत्र में बड़े बदलाव की बयार है। प्राकृतिक कृषि के भी सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं। जैविक कृषि इसमें चार चांद लगा रही है। गौतमबुद्धनगर में आईडीएफ वर्ल्ड डेयरी समिट में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने इरादों की झलक दिखा चुके हैं। समिट में पहुंचे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि प्रदेश में रोजगार सृजन एवं ग्रामीण क्षेत्र में स्वावलम्बन को आगे बढ़ाने में सहकारिता और डेयरी सेक्टरों को मिलाकर कार्य किया जा रहा है। प्रदेश में डेयरी सेक्टर नये आयाम स्थापित करेगा।

    (लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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