इस्लामाबाद। पाकिस्तान (Pakistan) को पेरिस आधारित अंतरराष्ट्रीय निगरानी संगठन (Paris based international monitoring organization) वित्तीय कार्रवाई कार्यबल (एफएटीएफ) (Financial Action Task Force (FATF)) की ग्रे-लिस्ट में शामिल होने के बाद अपने यहां सक्रिय संयुक्त राष्ट्र (यूएन) (United Nations (UN)) के घोषित आतंकियों पर कार्रवाई के लिए मजबूर होना पड़ा। हालांकि यह केवल दिखावे तक सीमित रही। अब पाकिस्तान के इस सूची से बाहर आने की संभावना है, लेकिन इससे पहले ही वह पुरानी हरकतों पर उतर आया है।
साउथ एशिया प्रेस के मुताबिक, लश्कर-ए-ताइबा (एलईटी) के ऑपरेशनल कमांडर साजिद मीर के खिलाफ पाकिस्तान की हालिया कार्रवाई एफएटीएफ के लगातार दबाव का परिणाम है, वर्ना वह तो उसे मरा करार दे रहा था। इसी से उसके आतंकियों के प्रति दोहरे रवैये का पर्दाफाश होता है। एलईटी ने दो दशक में कई बार अपना नाम बदला है। कुछ समय के लिए वह जमात-उल-दावा बन गया।
इस पर भी प्रतिबंध लग गया तो वह खुद को फलाह-ए-इंसानियत फाउंडेशन कहने लगा। इसकी जांच शुरू हुई तो उसने अल्ला-हू-अकबर तहरीक का जामा ओढ़ लिया। हालांकि यह सवाल बना हुआ है कि क्या एफएटीएफ का दबाव उसे जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मौलाना मसूद अजहर पर कार्रवाई के लिए मजबूर कर सकता है। पाकिस्तान अजहर की देश में मौजूदगी से लगातार इनकार करता है और कहता है कि वह अफगानिस्तान में है। उसके दावों को पाकिस्तानी सोशल मीडिया पर सक्रिय जैश समर्थक ही झुठलाते हैं। उनका कहना है कि काबुल पर तालिबान का कब्जा दुनिया में मुस्लिमों की जीत का रास्ता खोलेगा।
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