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    असंवैधानिक घोषित धारा-66ए का अब भी हो रहा उपयोग, SC ने कहा-चिंता का विषय

  • September 07, 2022

    नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मंगलवार को कहा कि यह गंभीर चिंता का विषय है कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (information technology act) की धारा-66 ए (Section-66A) का अब भी उपयोग किया जा रहा है, जबकि इसे 2015 में असांवैधानिक घोषित (declared unconstitutional) कर दिया गया है। कोर्ट ने संबंधित राज्यों के मुख्य सचिवों (chief secretaries) को तीन हफ्ते के भीतर मामले को वापस लेने का निर्देश जारी किया।

    धारा 66ए के तहत कंप्यूटर डिवाइस के माध्यम से झुंझलाहट, असुविधा, खतरा, बाधा, अपमान, आपराधिक धमकी, दुश्मनी, घृणा या दुर्भावना आदि के उद्देश्य से आपत्तिजनक संदेश भेजने पर तीन साल की कैद और जुर्माना का प्रावधान था। 2015 में शीर्ष अदालत ने इस प्रावधान को असंवैधानिक घोषित कर रद्द कर दिया था।


    सीजेआई उदय उमेश ललित और जस्टिस एस रवींद्र भट की पीठ ने केंद्र सरकार से कहा कि वह राज्यों से इस प्रावधान का इस्तेमाल नहीं करने के लिए कहे। इसके अलावा केंद्र सरकार के वकील जोहेब हुसैन को संबंधित राज्यों के मुख्य सचिवों से संपर्क करने का निर्देश दिया।

    सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश तब दिया है, जब याचिकाकर्ता संगठन पीयूसीएल की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील संजय पारिख ने श्रेया सिंघल मामले में फैसला आने के बाद भी आईटी एक्ट की धारा-66ए के तहत दर्ज मामलों का ब्योरा पेश किया।

    तीन हफ्ते के बाद होगी सुनवाई
    सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने कहा कि आधिकारिक घोषणा के बाद भी इस धारा में केस दर्ज होना आश्चर्यजनक है। पीठ ने केंद्र को राज्यों के मुख्य सचिवों से संपर्क करके जल्द से जल्द उपचारात्मक उपाय करने के लिए कहा। साथ ही सभी राज्यों और हाईकोर्ट को नोटिस भी जारी किया। पीठ ने कहा कि अदालत अब इस मामले पर तीन हफ्ते के बाद विचार करेगी।

    हजारों मामले हुए हैं दर्ज :
    याचिकाकर्ता संगठन पीयूसीएल ने दावा किया कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी देश में हजारों मामले दर्ज किए गए। इसमें झारखंड में इस प्रावधान के तहत 40 मामले अदालतों में लंबित हैं, जबकि मध्य प्रदेश में 145 मामलों पर राज्य मशीनरी ने संज्ञान लिया और 113 मामले अदालतों में लंबित हैं।

    पिछले साल पांच जुलाई को भी शीर्ष अदालत ने कहा था कि यह चौंकाने वाली बात है कि आईटी एक्ट की धारा-66ए को हटाने के बाद भी लोगों पर केस दर्ज हो रहे हैं।

    गृह सचिव अजय भल्ला के खिलाफ अवमानना मामला बंद
    सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्रीय गृह सचिव अजय कुमार भल्ला के खिलाफ अवमानना मामला बंद कर दिया। गृह सचिव से अधिकारियों की पदोन्नति के लिए यथास्थिति बनाए रखने को लेकर 15 अप्रैल, 2019 के आदेश का उल्लंघन पर अवमानना हुआ था।

    सीजेआई यूयू ललित और जस्टिस एस रवींद्र भट की पीठ ने कहा, हमें इस अवमानना याचिका पर विचार करने का कोई कारण नहीं दिखता है। सुप्रीम कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल और याचिकाकर्ता देबानंद साहू की ओर से पेश हुए कुमार परिमल को सुनने के बाद यह आदेश पारित किया। सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामे में भल्ला ने कहा था कि कोई अवमानना नहीं हुई है।

    सजा कम कर अनुचित सहानुभूति से कानून पर भरोसा होगा प्रभावित
    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अपराध की गंभीरता उचित सजा तय करने के लिए प्रमुख विचार होना चाहिए, यदि सजा को न्यूनतम तक कम करके अनुचित सहानुभूति दिखाई जाती है तो यह कानून लोगों की आस्था पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है। शीर्ष अदालत ने कहा कि अदालत को हमेशा सजा की गंभीरता और परिस्थितियों पर गौर करना होता है।

    जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एएस ओका की एक पीठ, बॉम्बे हाई कोर्ट के एक फैसले के खिलाफ सुनवाई कर रही थी। सुप्रीम कोर्ट ने सजा को एक साल के अलावा और छह महीने के लिए बढ़ा दिया। दरअसल, 1992 में हाईकोर्ट ने चार अभियुक्तों की सजा को तीन साल से घटाकर एक साल कर दिया था।

    शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा कि अभियुक्तों में से एक की मृत्यु हो गई थी और शिकायतकर्ता द्वारा दायर अपील उसके खिलाफ समाप्त हो जाती है। जहां तक सजा का संबंध है, न्यायिक विवेक हमेशा विभिन्न विचारों द्वारा निर्देशित होता है जैसे कि अपराध की गंभीरता, परिस्थितियां जिनमें अपराध किया गया था, और अभियुक्त की पृष्ठभूमि।

    निचली अदालत ने गंभीरता से नहीं लिया
    पीठ ने पाया कि अपीलकर्ता के शरीर पर 11 जख्म थे। लेकिन गंभीर जख्म के बावजूद निचली अदालत ने इसे गंभीरता से नहीं लिया और महज तीन साल की सजा सुनाई, जबकि आईपीसी की धारा 326 के तहत उम्र कैद तक का प्रावधान है। पीठ ने तीनों अभियुक्तों को अपीलकर्ता और घायल चश्मदीद को अतिरिक्त 40 हजार रुपये देने का निर्देश भी दिया।

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