विदिशा। रविवार को राधा अष्टमी का पर्व बड़े धूमधाम के साथ मनाया गया। नंदवाना में स्थित प्राचीन राधारानी के मंदिर में हजारों की तादाद में श्रद्धालु दर्शन करने पहुंचे है और धर्म लाभ लिया। 364 दिन के इंतजार के बाद राधाष्टमी पर भक्तों को राधारानी के दर्शन मिले। सदियों से परंपरा चली आ रही है कि मंदिर मे राधारानी की साल भर तक गुप्त पूजा होती है। सिर्फ एक दिन के लिए आम भक्तों के लिए मंदिर के पट खोले जाते हैं। यह सिलसिला विगत 333 वर्षों से भी पहले से चला आ रहा है। राधा रानी का यह मंदिर आज भी हवेली में ही स्थापित है। राधाअष्टमी पर राधावल्लभीय राधा रानी मंदिर में राधा रानी के दर्शनों के लिए श्रद्धालु आतुर दिखाई दिए। मंदिर परिसर में गेट के बाहर भक्त दर्शनों की आस लिए बैठे थे और राधे-राधे के जयकारे लगा रहे थे। राधा रानी के भजनों पर अपने आप को थिरकने से नहीं रोक पाए। 12 बजे के बाद आखिरकार वो झण आया जब मंदिर के पट खोले गये। लम्बी कतारों के बीच भक्तों ने दर्शन किए।
कुछ दिन रहीं खुले में फिर विराजीं हवेली में
उल्लेखनीय है कि औरंगजेब ने जब हिन्दुस्तान के मंदिरों को ध्वस्त किया था तब वृंदावन में स्थित मंदिरों में आक्रमण हुआ तो वल्लभीय सम्प्रदाय के पूर्वज मूर्ति लेकर पलायन कर कई दिनों के सफर के बाद विदिशा पहुंचे थे। यहां कालान्तर में जगह न होने के कारण कुछ दिन प्रतिमाओं को खुले में रखा इसके बाद उन्हें हवेली में स्थापित कर दिया। तब से ही साल भर राधा रानी की गुप्त रूप से पूजा होती है और सिर्फ एक दिन के लिए भक्तों के दर्शनों के लिए मंदिर के पट खोले जाते हैं। वहीं मंदिर के पुजारी मनमोहन शर्मा ने बताया कि देश में बरसाना के बाद विदिशा में राधा रानी का यह प्राचीन मंदिर है। आज भी यह मंदिर हवेली में बना हुआ है। 1670 में जब औरंगजेब ने आक्रमण किया था। उसके बाद वृदांवन से राधारानी का दरबार लेकर यहां आए थे और तब से ही यहां गुप्त रूप से पूजा होती है। आज भी जन सामान्य को साल में एक दिन राधा अष्टमी पर ही दर्शन कराए जाते हैं। राधाष्टमी और उसके दूसरे दिन पालना दर्शन के बाद संगीत का आयोजन होता है। जिसमें राधारानी की बधाई गायन होता है। इसके बाद 5 सितंबर को शयन आरती के बाद मंदिर के पट पूरे साल भर के लिए बंद हो जाएंगे।
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