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    100 के फेर में फंसी भाजपा-कांग्रेस

  • September 04, 2022

    • मिशन 2023 के लिए राजनीतिक पार्टियां जुटी चुनावी रणनीति में
    • 2018 में जिन सीटों पर भाजपा हारी उसके लिए मारामारी

    भोपाल। मिशन 2023 के लिए भाजपा और कांग्रेस ने रणनीतिक जमावट शुरू कर दी है। दोनों पार्टियों आगामी विधानसभा चुनाव में जीतने औरं सरकार बनाने की रणनीति पर काम कर रही है। इनकी रणनीति का मुख्य फोकस 100 विधानसभा सीटों पर है। ये वे सीटें हैं जिन पर भाजपा को 2018 में हार मिली थी। भाजपा इन सीटों को हर हाल में जीतना चाहती है, वहीं कांग्रेस की कोशिश है की एक बार फिर भाजपा को हराया जाए। गौरतलब है कि भाजपा को 2018 के विधानसभा चुनाव में 107 सीटें मिली थीं, जिससे पार्टी बहुमत से दूर रह गई थी। ऐसे में पार्टी ने हारी हुई 100 सीटों पर विशेष फोकस करने का प्लान बनाया है। पार्टी ने दिग्गज नेताओं को इन सीटों पर तैनात करने का प्लान बनाया है। ताकि हर एक सीट पर बूथ मैनेजमेंट को मजबूत किया जा सके और 2023 में इन सीटों पर भाजपा की वापसी हो। वहीं कांग्रेस की रणनीति है कि इन सीटों पर भाजपा को जीतने न दिया जाए।

    चुनावी होमवर्क में जुटी भाजपा
    प्रदेश में विधानसभा चुनाव में भले ही एक साल का वक्त है, लेकिन सत्ताधारी भाजपा अभी से तैयारियों में जुट गई है। पार्टी इस बार उत्तर प्रदेश चुनाव में अपनाए फॉर्मूले को प्रयोग में ला रही है। इसी के सहारे भाजपा ने यूपी फतह किया था। यूपी की तर्ज पर ही अब एमपी भाजपा बूथ स्तर पर मंदिर-मस्जिद, गुरुद्वारा-चर्च से जुड़ी हर बारीक सूचना अपने डाटा बैंक में एकत्र कर रही है। इतना ही नहीं, धार्मिक आयोजन के कर्ताधर्ता, किस राजनीतिक दल को सपोर्ट करते हैं, उनके आंकड़े भी तैयार किए जा रहे हैं। पार्टी ने इसकी जिम्मेदारी सांसद और विधायकों को दी है। यह जानकारी सरल एप के जरिए जुटाई जा रही है। दरअसल, भाजपा विधानसभा चुनाव 2023 के साथ-साथ लोकसभा चुनाव 2024 के लिए भी मध्यप्रदेश में काम कर रही है। पार्टी का फोकस लगातार कमजोर और हारे हुए क्षेत्रों में है। इसलिए हर बूथों के तहत कितने धार्मिक स्थल, जातियां और सामाजिक नेताओं का राजनीतिक प्रभाव है, यह जानकारी जुटाई जा रही है। जानकारी के अनुसार, मध्यप्रदेश भाजपा ने कुछ ही दिन पहले ही विधायक और सांसदों को सरल एप की ट्रेनिंग दे दी गई है।

    सांसद-विधायकों और जिला अध्यक्ष की तैनाती
    भाजपा ने प्रत्येक सीट पर चुनाव होने तक सांसद-विधायकों और जिला अध्यक्ष की जिम्मेदारी तय कर दी है। पार्टी ने सभी नेताओं को इन सीटों को जीतने के लिए माइक्रो प्लानिंग बनाने की बात कही है। जबकि संगठन की निगरानी में इन नेताओं के इन सीटों पर लगातार दौरे होते रहेंगे, जिसका पूरा मैनेजमेंट संगठन की निगरानी में होगा। राज्यसभा सांसदों, प्रदेश के केंद्रीय मंत्री और प्रदेश पदाधिकारियों को भी इन सीटों पर जाना पड़ेगा। इसके अलावा प्रदेश सरकार के मंत्री भी इन सीटों पर विशेष फोकस रखेंगे।


    आदिवासी सीटों पर विशेष नजर
    मध्य प्रदेश में सरकार के गठन में निर्णायक भूमिका निभाने वाले आदिवासी वोट बैंक पर भाजपा-कांग्रेस के बीच खींचतान मची है। आदिवासियों के पक्ष में द्रौपदी मुर्मु को राष्ट्रपति बनाने के भाजपा के मास्टर स्ट्रोक के बाद इस वोट बैंक को बरकरार रखने के लिए कांग्रेस एक बार फिर सक्रिय हो गई है। 2018 के विधानसभा चुनाव में आदिवासियों के वोटों की बदौलत ही कांग्रेस सत्ता प्राप्त कर पाई थी। बता दें कि 230 सीटों वाली विधानसभा में 47 सीटें आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित हैं। इनमें से 2018 के चुनाव में कांग्रेस को 30 सीटें मिली थीं। कांग्रेस को अब यह महसूस हो रहा है कि उसका यह वोट बैंक भाजपा की तरफ मुड़ रहा है। कांग्रेस ने इसे थामने के लिए आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित सभी 47 विधानसभा क्षेत्रों में सम्मेलन करने का निर्णय किया है। इसमें आदिवासी समाज को पार्टी के पक्ष में एकजुट रखने का प्रयास किया जाएगा।
    पूर्व प्रधानमंत्री स्व। इंदिरा गांधी से लेकर कांग्रेस द्वारा किए गए आदिवासी हित के कार्यों को याद करवाया जाएगा। इसमें आदिवासियों के बीच काम करने वाले विभिन्न् गैर सरकारी संगठनों का भी सहयोग लिया जाएगा। भाजपा भी यह अच्छी तरह से जानती है कि सत्ता को बनाए रखने के लिए आदिवासियों को साथ लेना आवश्यक है, इसलिए एक साथ कई मोर्चों पर सत्ता और संगठन काम कर रहे हैं।

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