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    अफसरों को गवाह नहीं बनाने से मुठभेड़ फर्जी करार

  • September 03, 2022

    • इकलौते पुलिसकर्मी के पास ही बुलेटप्रूफ जैकेट, उसी पर हमला बना शंकास्पद

    इंदौर। 12 बरस पहले पुलिस मुठभेड़ पर अफसरों के ही बयान नहीं होने से पुलिसिया कहानी पर पानी फिर गया। अदालत ने दो मुलजिमों को बेगुनाह मानते हुए बरी कर दिया, जबकि उनका एक साथी फरार है। पुलिसिया कहानी के अनुसार वर्ष 2010 में एमजी रोड पुलिस ने हत्या के केस में गिरफ्तार राज उर्फ सुधीर भदौरिया व शेट्टी उर्फ ओंकारसिंह से पूछताछ की थी। उन्होंने इस वारदात में रिपुसूदन पिता लोकेंद्रपाल गौतम व हर्ष पिता अजय भदौरिया दोनों निवासी गुलाबबाग कॉलोनी इंदौर व हाजी उर्फ जावेद उर्फ राजू पिता नूर मोहम्मद निवासी मुजफ्फरनगर (उप्र) का शामिल होना बताया था और उनके उज्जैन जाकर वापस इंदौर आने की जानकारी दी थी।

    जब रिपुसूदन, हर्ष व हाजी कार से इंदौर लौट रहे थे तो क्राइम ब्रांच ने लवकुश चौराहे पर रोकने की कोशिश की, किंतु वे कार भगाकर एमआर-10 की ओर निकल पड़े। पुलिस ने पीछा किया तो हड़बड़ाहट में उन्होंने कार डिवाइडर पर पड़े ईंट के ढेर में घुसा दी, जिससे कार उसमें फंस गई। इसके बाद डीएसपी (क्राइम) जितेंद्रसिंह कुशवाह, एसआई मनीष राय व अनिलसिंह चौहान ने उन्हें सरेंडर करने को कहा तो मुलजिमों ने उन पर हमला बोल दिया। इस दौरान बुलेटप्रूफ जैकेट पहने अनिल पर गोली चलाई, जो उसकी जैकेट को छूती हुई निकल गई, जबकि मनीष के कान के पास से गोली निकल गई। खेत की तरफ भागने पर आखिरकार रिपुसूदन व हर्ष पुलिस की गिरफ्त में आ गए, जबकि हाजी भाग निकला। मामले में क्राइम ब्रांच ने कातिलाना हमले व आम्र्स एक्ट के तहत केस दर्ज किया था।


    पुलिस ने हर्ष व रिपुसूदन के खिलाफ वर्ष 2010 में चालान पेश किया, जबकि हाजी वर्ष 2015 में पकड़ाया तो उसके खिलाफ केस चला, किंतु बाद में हर्ष फरार हो गया तो केवल रिपुसूदन व हाजी के खिलाफ केस चला। अदालत में एकमात्र स्वतंत्र गवाह सोनू होस्टाइल हो गया और पुलिस की मुलजिमों से किसी तरह की मुठभेड़ से इनकार कर दिया। पुलिसवालों ने मुठभेड़ के बारे में बयान दिए थे, किंतु उनके बयानों का कानूनी महत्व नहीं होने से अभियोजन कहानी कमजोर पड़ गई। खास बात यह है कि इस मामले में क्राइम ब्रांच के तत्कालीन एसपी अरविंद तिवारी, डीएसपी जितेंद्रसिंह कुशवाह, गाड़ी के ड्राइवर महेंद्रसिंह, सिपाही रज्जाक खान व दीपक पंवार भी अहम गवाह साबित हो सकते थे, किंतु अभियोजन पक्ष ने उन्हें गवाह ही नहीं बनाया और न उनके बयान कराए, जबकि मुलजिमों द्वारा डीएसपी पर फायर तक किया जाना बताया गया था, जिसे मुद्दा बनाते हुए बचाव पक्ष ने सारी कहानी को फर्जी ठहराने में कोई कसूर नहीं छोड़ी।

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