नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश की सियासत में सपा 111 विधायकों के साथ भले ही मुख्य विपक्षी दल हो, लेकिन 2024 की चुनावी राह उसके लिए काफी मुश्किल भरी है. शिवपाल यादव से लेकर ओम प्रकाश राजभर तक अलग हो चुके हैं तो आजमगढ़ और रामपुर सीटें भी हाथ से निकल गई हैं. इस बात को बाखूबी समझते हुए सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए अपनी चाल और अंदाज ही नहीं बल्कि अपने मोहरे और दांव भी बदल दिए हैं. बीजेपी के फॉर्मूले से बीजेपी को मात देने की कवायद में अखिलेश यादव इन दिनों जुट गए हैं.
सपा मिशन-2024 में जुटी
2024 के लोकसभा चुनाव के लिए भले ही करीब 20 महीनों का वक्त है, लेकिन सपा ने अपनी तैयारी शुरू कर दी है और अखिलेश यादव मिशन मोड में आ चुके हैं. सहयोगियों के साथ छोड़ने और शिवपाल के बगावती तेवर के बाद अखिलेश ने अपनी सियासी चाल बदल दी है. वो पहली बार बिना चुनाव के तीन दिनों तक लखनऊ से बाहर यूपी के दूसरे जिलों का दौरा करते रहे. इस दौरान विभिन्न जिलों में बीजेपी की खामियां गिनाते नजर आए तो दूसरी तरफ अपनी सियासी ताकत की थाह भी ले रहे थे.
बीजेपी के नक्शेकदम पर सपा
बीजेपी ने मिशन-2024 के लिए यूपी में सीएम योगी से लेकर केशव मौर्य और बृजेश पाठक सहित सभी दिग्गज नेताओं को जिम्मा सौंप रखा है. पार्टी के ये सभी नेता जिले-जिले दौरे करके माहौल बना रहे हैं. बीजेपी के इसी फॉर्मूले पर सपा भी चल रही है. सपा ने अपने विधायक और सांसदों सहित वरिष्ठ नेताओं को जिले स्तर पर प्रभार सौंप रखा है, जिनके कंधों पर पार्टी सदस्यता बढ़ाने से लेकर नगर निकाय चुनाव तक का भार दे रखा है. पार्टी के ये सभी नेता अपने-अपने क्षेत्र में डेरा जमा रखे हैं और सपा का कुनबा बढ़ाने में जुटे हैं.
अखिलेश ने दिए भविष्य के संकेत
वहीं, सीएम योगी की तर्ज पर अखिलेश यादव ने भी अपना यूपी भ्रमण शुरू कर दिया है. कन्नौज और आजमगढ़ दौरे के बाद अखिलेश यादव तीन दिनों तक लखनऊ से बाहर पश्चिमी यूपी की सियासी थाह लेते नजर आए. पहले नोएडा फिर मथुरा होते हुए और उसके बाद औरैया पहुंचे, जहां वो चुनावी अंदाज में जनसभा संबोधित करते नजर आए. इसके बाद लखनऊ पहुंचते ही जातिगत जनगणना का मुद्दा उठाकर अपनी भविष्य की रणनीति भी साफ कर दी है.
मिशन-2024 का क्या प्लान
2022 विधानसभा चुनाव में सत्ता से दूर रहने के बाद सपा को लोकसभा उपचुनाव में भी हार का सामना करना पड़ा है. ऐसे में 2022 के सहयोगी रहे सुभासपा, महान दल ने अखिलेश यादव पर कई तरह के आरोप लगाते हुए और गठबंधन से नाता तोड़ लिया है तो शिवपाल यादव ने भी सपा से किनारा कर लिया है. सूबे के इस बदले हुए सियासी माहौल में बीजेपी ने 2024 के चुनाव में 80 में से 75 प्लस सीटें जीतने का टारगेट रखा है. ऐसे में सपा के लिए अपनी जीती हुई सीटों को बचाए रखने की चुनौती खड़ी हो गई है, जिसके चलते अखिलेश यादव ने खुद मोर्चा संभाल लिया है.
हार से नहीं लिया सबक
अखिलेश यादव भले ही संगठन से लेकर समीकरण तक को दुरुस्त करने में जुटे हैं, लेकिन हार से अभी तक अखिलेश ने सबक नहीं लिया. 2022 के चुनाव में मिली हार के लिए जिन्हें जिम्मेदार ठहराया गया, उन पर अभी तक न तो कोई कार्रवाई की गई और न ही उन्हें पद से हटाया गया. अखिलेश यादव के सबसे करीब जिन नेताओं को माना जाता है, वो तमाम नेता अपने बूथ पर भी सपा को नहीं जिता सके. इसके बावजूद अखिलेश यादव ने फिर से उन्हें सदस्यता अभियान की जिम्मेदारी दे रखी है, जिसके चलते सपा का एक बड़ा तबका जरूर नाराज है. ऐसे में अखिलेश भले ही नए वर्जन में दिख रहे हों, लेकिन इसका इलाज किए बिना कैसे मर्ज को ठीक कर पाएंगे?
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