तुम क़लम की धार को कम मत समझना दोस्तों,
ये क़लम तो है मगर तलवार की मानिंद है।
इस दौरे सियासत में जब सहाफी (पत्रकार) की क़लम पे हज़ारों पहरे है… तब निहायत ईमानदार, ज़ुल्मो सितम और भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी क़लम से बग़ावत करने वाले सीहोर के सहाफी (पत्रकार) मरहूम अम्बादत्त भारतीय बहुत याद आते हैं। कल 23 अगस्त को उनकी नवीं बरसी गुजऱी। सीहोर के इस सहाफी को लोग बाबा कहते थे। चौड़ा माथा, सर पे घने लंबे बाल और सफेद झक दाढ़ी। देखने मे अम्बादत्तजी किसी सूफी संत की मानिंद नजऱ आते। चाल शाहाना, मिज़ाज़ फकीराना और क़लम शायराना जैसे उनकी पहचान बन गए थे। सहाफत उनके ज़रिया-ए-माश (जीविकोपार्जन) के अलावा उनका ओढऩा, बिछोना भी थी।बाबा ने इस पेशे को ही अपना हमसफऱ बना लिया था। लिहाज़ा वो ताउम्र कुंवारे ही रहे। सीहोर में दो कमरे के किराए के मकान में इस कमिटेड जर्नलिस्ट ने जि़न्दगी गुज़ार दी। उनके जाने के बाद ढेरों अखबारों की कतरनें और किताबेँ ही उनका सरमाया थीं। अम्बादातजी ने अपने शहर सीहोर के हुक़ूक़ के लिए अपनी कलम लपक चलाई। हुकूमत के घपले घोटालों को उजागर करने के चलते वो सरकार की आंख की किरकिरी बने रहे। बाबा का जलवा ऐसा था कि जब भी सीहोर के किसी खास प्रोग्राम में कोई मंत्री मिनिस्टर आता तो बाअदब उन्हें पुकारता। वो कऱीब 37-38 बरसों तलक पीटीआई, भाषा के अलावा दैनिक जागरण और करंट के सीहोर कॉरेस्पोंडेंट रहे। उन्होंने अवाम के लिए सहाफत करते हुए अपनी क़लम का लोहा पूरे सूबे में मनवाया। उन्हीं के नक्शे क़दम पे चल रहे उनके शागिर्द सीहोर के सीनियर सहाफी रघुवर दयाल गोहिया बाबा की बरसी पे हर बरस जर्नलिस्ट अवार्ड फंक्शन मुनक़्क़ीद करते हैं। लेकिन इस बार शहर में भयंकर बारिश की वजह से ये प्रोग्राम कुछ दिनों के लिए मुल्तवी कर दिया गया है। गोहिया साब के मुताबिक बाबा की बरसी (23 अगस्त) को हम अम्बादत्त भारतीय स्मृति पत्रकारिता संग्रहालय एवं शोध संस्थान की जानिब से सूबे के सहाफियों को ऐजाज़ देते हैं। बाकी भारी बारिश की वजह से ये प्रोग्राम तय वक्त पे नहीं हो सका। इस बार ये अवार्ड पत्रकार शरद द्विवेदी, मनु ठाकुर और सुमित शर्मा को दिया जाना है। अवार्ड फंक्शन की अगली तारीख का ऐलान जल्द ही किया जाएगा। क़लम के उस आज़ाद सिपाही को सूरमा का सलाम।
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