भोपाल। मप्र हाईकोर्ट ने अपात्र नर्सिंग कॉलेजों को अनुमति देेने के मामले में बड़ा फैसला सुनाते हुए मप्र नर्सिंग काउंसिल की रजिस्ट्रार सुनीता सिजु को तत्काल निलंबित करने और नर्सिंग काउंसिल के काम को संभालने के लिए आज ही प्रशासक नियुक्त करने को कहा है। हाईकोर्ट के इस आदेश से प्रदेश में नर्सिंग के नाम पर मिलीभगत से चल रहे 510 करोड़ के कारोबार को उजागर कर दिया है। कोर्ट के आदेश के बाद मंत्रालय की मंशा पर भी सवाल उठ रहे हैं क्योंक फर्जी नर्सिंग कॉलेजों के मामले में नर्सिंग काउंसिल की रजिस्ट्रार के अलावा विभाग के कर्ताधर्ताओं पर कार्रवाई क्यों नहीं। हालांकि मप्र कांगे्रस ने इस मामले में विभागीय मंत्री एवं अपर मुख्य सचिव को जेल भेजने की मांग की है। प्रदेश में 453 नर्सिंग कॉलेज हैं, जिनमें करीब 85 हजार स्टूडेंंट हैं। हर स्टूडेंट की सालाना फीस 60 हजार रुपए हैं। ऐसे में मप्र में नर्सिंग का कारोबार 510 करोड़ से ज्यादा का है।
दरअसल प्रदेश फर्जी नर्सिंग कॉलेजों के मामले में लॉ स्टूडेंट्स एसोसिएशन मप्र के अध्यक्ष एडवोकेट विशाल बघेल ने जनहित याचिका लगाई थी। चीफ जस्टिस एवं जस्टिस विशाल मिश्रा की डिवीजन बेंच में सुनवाई के दौरान नर्सिंग काउंसिल की ओर से शपथ पत्र पेश करके कोर्ट को यह बताया गया था कि विगत वर्ष 2020-21 में खुले हुए 94 नर्सिंग कॉलेजों को इस वर्ष की अनुमति नहीं दी गई है। उक्त कॉलेजों में पढ़ रहे छात्रों को भी अन्यत्र स्थानांतरित किया जा रहा है। इसके अलावा 93 नर्सिंग कॉलेजों को बिल्डिंग भवन उपलब्धता संबंधी नोटिस का जवाब न देने के कारण मान्यता को निलंबित किया गया है। साथ ही 2021-22 में मप्र में नए 49 नर्सिंग कॉलेज खोले गए हैं जिनका पर्याप्त मात्रा में निरीक्षण एवं सत्यापन करने के उपरांत ही अनुमति जारी की गई। याचिकाकर्ता लॉ स्टूडेंट्स एसोसिएशन ने रजिस्ट्रार के शपथ पत्र को झूठा बताते हुए कोर्ट में एक आवेदन पेश किया तथा वर्ष 2022 में खोले गए 10 नर्सिंग कॉलेजों का उदाहरण पेश करते हुए बताया कि किस प्रकार नर्सिंग कॉलेज एक शटर वाले भवन में और डुप्लीकेट फैकल्टी के साथ खोले गए हैं। कोर्ट ने प्रस्तुत किए गए साक्ष्यों को गंभीरता से लेते हुए यह कार्यवाही की है तथा इस मामले में जवाब देने के लिए 4 हफ्तों का समय दिया है।
विभाग की भूमिका शुरू से संदिग्ध
मप्र में फर्जी नर्सिंग कॉलेज का धंधा नया नहीं है। सालों से एक दुकान या मवेशियों के बाड़े में नर्सिंग कॉलेज के मामले सामने आते रहे हैं। संंबंधित विभाग ने इसको कभी गंभीरता से नहीं लिया। यही वजह है कि प्रदेश में पूरी औपचारिकता के भी नर्सिंग कॉलेज धड़ल्ले से खुलते गए। नर्सिंग कॉलेजों के कारोबार में विभाग के कर्ताधर्ताओं की भूमिका संदिग्ध है।
सड़क पर हजारों स्टूडेंट
नर्सिंग क्षेत्र में कैरियर बनाने का सपना देख रहे प्रदेश एवं प्रदेश के बाहर के हजारों स्टूडेंट मिलीभगत के नर्सिंग कारोबार का भंडा फूटने के बाद सड़क पर आ गए हैं। विभागीय सूत्र बताते हैं कि रजिस्ट्रार काउंसिल को हटाकर कार्रवाई की खानापूर्ति की तैयारी है।
पहली बार हाईकोर्ट नहीं पहुंचा मामला
जबलपुर की याचिका पहली बार मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के दरवाजे तक नहीं पहुंची थी। जून 2021 में भिंड के 50 वर्षीय सामाजिक कार्यकर्ता हरिओम साहू ने ग्वालियर बेंच के समक्ष प्रदेश के ग्वालियर और चंबल क्षेत्र में 63 नर्सिंग कॉलेजों के अवैध संचालन के खिलाफ याचिका दायर की थी। 18 अगस्त, 2021 को न्यायमूर्ति रोहित आर्य और न्यायमूर्ति मिलिंद रमेश फड़के की पीठ ने इन संबंधित कॉलेजों का औचक निरीक्षण करने के लिए छह सदस्यीय आयोग का गठन किया, लेकिन ऑल इंडिया प्राइवेट नर्सिंग इंस्टीट्यूट एसोसिएशन ने 25 अक्टूबर, 2021 को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक विशेष अनुमति याचिका दायर की। जिसमें कहा गया कि उच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त आयोग के पास कॉलेजों का निरीक्षण करने के लिए तकनीकी पृष्ठभूमि या विषयों में विशेषज्ञता नहीं है। 10 दिसंबर, 2021 को न्यायमूर्ति यूयू ललित और न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट की पीठ ने उच्च न्यायालय के आदेश को खारिज करते हुए मामले पर नए सिरे से विचार करने का निर्देश दिया। उन्होंने कहा इस सवाल में जाने के बिना कि क्या परिस्थितियों ने किसी जरूरी चीज को बुलाया?
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