नई दिल्ली। दिल्ली में अपनी मांगों को लेकर किसान संगठनों (Farmer’s Organizations) के प्रदर्शन (Demonstration) के बीच केंद्र सरकार (Central government) द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) (Minimum Support Price (MSP)) पर गठित समिति की पहली बैठक हुई। इसमें एमएसपी को अधिक प्रभावी और पारदर्शी बनाने सहित अन्य मुद्दों पर गौर करने के लिए चार उप-समूहों का गठन (Formation of four sub-groups) किया गया। चारों समूह अलग-अलग बैठक करेंगे और समिति की अंतिम बैठक सितंबर के अंत में होगी।
समिति की सिफारिशों के आधार पर सरकार भविष्य में एमएसपी सहित अन्य विषयों पर नीतिगत फैसले करेगी। संयुक्त किसान मोर्चा ने इसका हिस्सा बनने से पहले की मना कर दिया था। उनकी मांग थी कि एमएसपी गारंटी कानून लाया जाए। इस वजह से समिति की बैठक में उनका कोई नेता उपस्थित नहीं था। पूर्व कृषि सचिव संजय अग्रवाल की अध्यक्षता में हुई बैठक में शून्य बजट आधारित खेती को बढ़ावा देने पर जोर दिया गया। साथ ही, देश की बदलती जरूरतों को ध्यान में रखते हुए फसलों के पैटर्न (प्रतिरूप) को बदलने और एमएसपी को और अधिक प्रभावी तथा पारदर्शी बनाने के तरीकों पर मंथन किया गया। समिति में अध्यक्ष सहित 26 सदस्य हैं, जबकि एसकेएम के प्रतिनिधियों के लिए तीन स्थान रखे गए हैं। समिति के सदस्य बिनोद आनंद ने बताया तीन विषयों पर एक प्रजेंटेशन दिया गया।
यह काम करेगा समूह
1.किसान समूह सीएनआरआई के महासचिव आनंद ने कहा पहला समूह हिमालयी राज्यों के साथ-साथ फसल पद्धति व फसल विविधीकरण का अध्ययन करेगा और उन राज्यों में एमएसपी समर्थन कैसे सुनिश्चित होगा इस पर गौर करेगा।
2. कृषि अनुसंधान परिषद के नेतृत्व में हैदराबाद स्थित सेंट्रल रिसर्च इंस्टिट्यूट फॉर ड्राइलैंड एग्रीकल्चर और नागपुर स्थित नेशनल ब्यूरो ऑफ सॉयल सर्वे एंड लैंड यूज़ प्लानिंग देशभर में फसल विविधीकरण और फसल पद्धति का अध्ययन करेगा।
3. राष्ट्रीय कृषि विस्तार प्रबंधन संस्थान (मैनेज) के एक प्रतिनिधि के नेतृत्व में जैविक और प्राकृतिक खेती के तरीकों सहित शून्य बजट आधारित खेती के संबंध में अध्ययन करेगा और किसानों में इसके लिए सहमति बनाएगा।
4. सूक्ष्म सिंचाई पर बना दूसरा समूह, आईआईएम-अहमदाबाद के सुखपाल सिंह की अध्यक्षता में सूक्ष्म सिंचाई को किसान केंद्रित बनाने के संबंध में अध्ययन करेगा। मौजूदा समय में सूक्ष्म सिंचाई सरकारी सब्सिडी से संचालित होती है और समूह इस बात की जांच करेगा कि इसके लिए किसानों की मांग कैसे पैदा की जाए।
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