जम्मू-कश्मीर । जम्मू-कश्मीर (Jammu and Kashmir) में विधानसभा चुनाव (assembly elections) की सुगबुगाहट शुरू हो गई है. वो इसलिए, क्योंकि चुनाव आयोग (election Commission) ने वोटर लिस्ट (voter list) पर काम करना शुरू कर दिया है. आयोग का कहना है कि इस बार वोटर लिस्ट में 20 से 25 लाख नए वोटर शामिल हो सकते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि अब जम्मू-कश्मीर में रह रहे बाहरी लोगों को भी वोटिंग का अधिकार मिल गया है.
जम्मू-कश्मीर के मुख्य निर्वाचन अधिकारी हिरदेश कुमार ने बताया कि दूसरे राज्य के जो लोग यहां रह रहे हैं, वो अपना नाम वोटर लिस्ट में शामिल करवाकर वोट डाल सकते हैं. इसके लिए उन्हें मूल निवासी प्रमाण पत्र की जरूरत नहीं है. इतना ही नहीं, जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा के लिए तैनात सुरक्षाबलों के जवान भी वोटर लिस्ट में अपना नाम शामिल करा सकते हैं.
हिरदेश कुमार ने बताया कि जो भी 1 अक्टूबर 2022 तक 18 साल का हो जाएगा, वो अपना नाम वोटर लिस्ट में जुड़वा सकता है. फाइनल वोटर लिस्ट 25 नवंबर को जारी होगी. जम्मू-कश्मीर में आखिरी बार 1 जनवरी 2019 को वोटर लिस्ट आई थी.
अब तक क्या था?
आर्टिकल 370 और 35A ने जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा दिया था. केंद्र सरकार ने 5 अगस्त 2019 को आर्टिकल 370 हटा दिया था. साथ ही आर्टिकल 35A को भी खत्म कर दिया था. इससे अब वहां के लोगों को भी वो सारे अधिकार मिल गए हैं, जो देश के दूसरे हिस्सों में रह रहे लोगों के पास थे.
आर्टिकल 35A के तहत, जम्मू-कश्मीर के गैर-नागरिक न तो यहां स्थायी रूप से बस सकते थे, न संपत्ति खरीद सकते थे और न ही पंचायत से लेकर विधानसभा चुनाव में वोट डाल सकते थे. उन्हें सिर्फ लोकसभा चुनाव में वोट डालने का अधिकार था.
हिरदेश कुमार ने बताया कि जम्मू-कश्मीर का वोटर बनने के लिए अब मूल निवासी प्रमाण पत्र होना जरूरी नहीं है. कोई भी कर्मचारी, छात्र, मजदूर या कोई भी व्यक्ति जो दूसरे राज्य से आकर जम्मू-कश्मीर में रह रहे हैं, वो अपना नाम वोटर लिस्ट में जुड़वा सकते हैं.
उन्होंने बताया कि 370 हटने के बाद पहली बार वोटर लिस्ट में संशोधन हो रहा है. ऐसे में इसमें 20 से 25 लाख नए वोटर जुड़ने की संभावना है. आखिरी बार जब वोटर लिस्ट तैयार हुई थी, तब उसमें 76 लाख वोटर्स थे. और इस समय यहां 18 साल से ऊपर के लोगों की आबादी 98 लाख होने का अनुमान है.
उन्होंने ये भी बताया कि जम्मू-कश्मीर के रहने वाले ऐसे जवान जो यहां से बाहर तैनात हैं, वो पोस्टल बैलेट के जरिए वोट कर सकते हैं. वहीं, दूसरे राज्यों के रहने वाले ऐसे जवान जो जम्मू-कश्मीर में तैनात हैं वो भी अपना नाम वोटर लिस्ट में जुड़वा सकते हैं और वोट दे सकते हैं.
जम्मू-कश्मीर में क्या बदल गया है?
370 हटने के साथ ही केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को अलग-अलग कर दिया था. अब दोनों ही केंद्र शासित प्रदेश हैं. जम्मू-कश्मीर में विधानसभा है, जबकि लद्दाख में विधानसभा नहीं है.
जम्मू-कश्मीर में चुनाव कराने के लिए परिसीमन आयोग ने 5 मई को अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी. इसे लागू कर दिया गया है. इससे जम्मू-कश्मीर में 7 विधानसभा सीटें बढ़ गईं हैं. इनमें जम्मू में 6 और कश्मीर में एक सीट बढ़ गई है.
जम्मू-कश्मीर में अब तक कुल 111 विधानसभा सीटें होती थीं. इनमें से 24 सीटें पाक अधिकृत कश्मीर यानी पीओके में थीं. वहां चुनाव नहीं कराए जा सकते. इस तरह कुल 87 सीटें होती थीं, लेकिन लद्दाख के अलग होने के बाद 83 सीटें बची थीं.
इन 83 सीटों में से जम्मू में 37 और कश्मीर में 46 सीटें हुआ करती थीं. लेकिन अब जम्मू में 43 और कश्मीर में 47 सीटें होंगी.
विधानसभा सीटें बढ़ने से पोलिंग स्टेशन भी बढाए जाएंगे. मुख्य निर्वाचन अधिकारी हिरदेश कुमार ने बताया कि चुनाव में 600 पोलिंग स्टेशन और बढ़ेंगे. इससे पोलिंग स्टेशन की संख्या 11,370 हो जाएंगे.
सियासत शुरू…
गैर-नागरिकों को वोटिंग का अधिकार देने पर सियासत भी शूरू हो गई है. नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने ट्वीट कर कहा कि क्या बीजेपी जम्मू-कश्मीर के असली वोटर्स को लेकर इनसिक्योर है, तभी उसे जीतने के लिए अस्थायी वोटर्स की जरूरत पड़ रही है? जब जम्मू-कश्मीर के लोगों को वोट देने का मौका मिलेगा, तो बीजेपी की कोई मदद नहीं करेगा.
पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने कहा कि गैर-नागरिकों को वोटिंग का अधिकार देकर यहां की स्थानीय आबादी को कमजोर किया जा रहा है.
पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के प्रमुख सजाद गनी लोन ने इसे ‘खतरनाक’ और ‘विनाशकारी’ कदम बताया है. उन्होंने ट्वीट कर कहा कि नहीं पता कि वो क्या हासिल करना चाहते हैं. लेकिन ये खतरनाक है. 1987 को याद रखें. हम उससे अभी तक बाहर नहीं निकले हैं. 1987 को न दोहराएं. ये खतरनाक होगा.
2014 में आखिरी बार हुए थे चुनाव
जम्मू-कश्मीर में आखिरी बार 2014 में विधानसभा चुनाव हुए थे. यहां की 87 सीटों में से पीडीपी ने 28, बीजेपी ने 25, नेशनल कॉन्फ्रेंस ने 15 और कांग्रेस ने 12 सीटें जीती थीं. बीजेपी और पीडीपी ने मिलकर सरकार बनाई और मुफ्ती मोहम्मद सईद मुख्यमंत्री बने.
जनवरी 2016 में मुफ्ती मोहम्मद सईद का निधन हो गया. करीब चार महीने तक राज्यपाल शासन लागू रहा. बाद में उनकी बेटी महबूबा मुफ्ती मुख्यमंत्री बनीं. लेकिन ये गठबंधन ज्यादा नहीं चला. 19 जून 2018 को बीजेपी ने पीडीपी से गठबंधन तोड़ लिया. राज्य में राज्यपाल शासन लागू हो गया. अभी वहां राष्ट्रपति शासन लागू है.
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