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    रोहिंग्या अवैध प्रवासियों को फ्लैट देने का कोई निर्देश नहीं, जानिए कौन हैं रोहिंग्या?

  • August 18, 2022

    नई दिल्ली। केन्द्रीय गृह मंत्रालय (Union Home Ministry) ने बुधवार को स्पष्ट किया है कि उसकी ओर से नई दिल्ली के बक्करवाला में रोहिंग्या ‘अवैध’ प्रवासियों (rohingya ‘avaidh’ pravaasiyon) को ईडब्ल्यूएस फ्लैट (EWS Flat) देने का कोई निर्देश नहीं दिया गया है।

    मंत्रालय ने कहा कि दिल्ली सरकार ने रोहिंग्या को एक नए स्थान पर स्थानांतरित करने का प्रस्ताव रखा है। गृह मंत्रालय ने दिल्ली सरकार को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि रोहिंग्या अवैध विदेशी वर्तमान स्थान पर बने रहें। गृह मंत्रालय पहले ही विदेश मंत्रालय के माध्यम से संबंधित देश के साथ उनके निर्वासन का मामला उठा चुका है।

    इसमें आगे कहा गया है कि अवैध विदेशियों (illegal foreigners) को कानून के अनुसार उनके निर्वासन तक डिटेंशन सेंटर में रखा जाना है। दिल्ली सरकार ने वर्तमान स्थान को डिटेंशन सेंटर घोषित नहीं किया है। उन्हें तत्काल ऐसा करने के निर्देश दिए गए हैं।

    इससे पहले ऐसी भ्रम की स्थिति पैदा हुई थी कि केन्द्र सरकार रोहिंग्या को शरणार्थी का दर्जा देकर उनके रहने और सुरक्षा की व्यवस्था कर रही है। ऐसा इसलिए हुआ था कि केन्द्रीय मंत्री हरदीप पुरी ने ट्वीट कर इस बात की पुष्टि की थी।



    उन्होंने कहा था कि भारत हमेशा से शरण मांगने वालों लोगों को भारत में स्वागत करता है। इसी क्रम में एक फैसले के तहत सभी रोहिंग्या शरणार्थियों को दिल्ली के बक्करवाला इलाके में ईडब्ल्यूएस फ्लैट में स्थानांतरित कर दिया जाएगा। उन्हें बुनियादी सुविधाएं, यूएनएचआरसी आईडी और 24 घंटे दिल्ली पुलिस की सुरक्षा उपलब्ध कराई जाएगी।

    पुरी ने आगे कहा कि भारत संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन 1951 के तहत सबको शरण देने की व्यवस्था का सम्मान करता है और उसका पालन भी करता है। उन्होंने कहा कि भारत की शरणागत नीति को जानबूझकर सीएए से जोड़ा गया और अफवाह फैलाकर कुछ लोगों ने इसमें अपना करियर बनाया, वे लोग इस फैसले से निराश होंगे।

    उल्लेखनीय है कि हरदीप पुरी के इस बयान की सोशल मीडिया पर बड़ी आलोचना हुई थी। विश्व हिन्दू परिषद ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई थी और सरकार से इस फैसले को वापस लेने को कहा था।

    कौन हैं रोहिंग्या?
    कहानी 16वीं शताब्दी से शुरू होती है। जगह म्यांमार के पश्चिमी छोर पर स्थित राज्य रखाइन थी। जिसे अराकान भी कहते हैं। इस राज्य में उस दौर से ही मुस्लिम आबादी रहती थी। 1826 में हुए पहले एंग्लो-बर्मा युद्ध के बाद अराकान पर अंग्रेजों का कब्जा हो गया। युद्ध में जीत के बाद अंग्रेजों ने बंगाल (वर्तमान में बांग्लादेश) से मुसलमान मजदूरों को अराकान लाना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे रखाइन में मुस्लिम मजदूरी की आबादी बढ़ती गई। बांग्लादेश से आकर रखाइन में बसी इसी मुस्लिम आबादी की रोहिंग्या कहा जाता है।

    1948 में म्यांमार पर से ब्रिटिश शासन का अंत हुआ और वह आजाद मुल्क के रूप में अस्तित्व में आया। तभी से यहां की बहुसंख्यक बौद्ध आबादी और मुस्लिम आबादी के बीच विवाद शुरू हो गया। रोहिंग्या की संख्या बढ़ती देख म्यांमार के जनरल विन की सरकार ने 1982 में देश में नया राष्ट्रीय कानून लागू किया। इस कानून में रोहिंग्या मुसलमानों का नागरिक दर्जा खत्म कर दिया गया। तभी से म्यांमार सरकार रोहिंग्या मुसलमानों को देश छोड़ने के लिए मजबूर करती रही है। तब से रोहिंग्या बांग्लादेश और भारत में घुसपैठ करके यहां आते रहे हैं।

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