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    सियाचिन के बर्फीली तूफ़ान में शहीद हुए पिता की बेटी ने बया किया अपना दर्द, जानिए

  • August 16, 2022

    हल्‍द्वानी।  आजादी की 75वीं वर्षगांठ पर जब देश अमृत महोत्सव के साथ ‘हर घर तिरंगा’ महा उत्सव मना रहा है। तब 38 वर्ष पूर्व मेघदूत आपरेशन (Lance Nayak Chandrashekhar Harbola) में शहीद हुए 28 वर्षीय जवान का पार्थिव शरीर तिरंगे में लिपटकर उत्तराखंड के हल्द्वानी पहुंचने वाला है। 38 साल बाद सियाचिन में रेजीमेंट के लांसनायक चंद्रशेखर हरबोला (Lance Nayak Chandrashekhar Harbola) का पार्थिव शरीर मिला है। इसकी सूचना सेना की ओर से उनके परिजनों को दी गई है। बताया जा रहा है कि मंगलवार को उनका पार्थिव शरीर हल्द्वानी लाया जाएगा। इसके बाद सैनिक सम्मान के साथ शहीद का अंतिम संस्कार किया जाएगा।
    आपको बता दें कि 1984 में भारत और पाकिस्तान के बीच सियाचिन को लेकर हुई झड़प के दौरान 19 कुमाऊं रेजीमेंट के लांसनायक चंद्रशेखर हरबोला (Lance Nayak Chandrashekhar Harbola) बर्फीली तूफ़ान की चपेट में आकर शहीद हो गए थे। उस तूफ़ान में 19 जवान शहीद हुए थे, जिसमें से 14 के शव बरामद हो गए थे, लेकिन पांच शव नहीं मिले थे जिस समय चंद्रशेखर शहीद हुए थे उनकी उम्र 27 साल थी और उनकी दो बेटियां थीं, 7 साल और 4 साल की. आज उनकी उम्र 45 और 42 साल है।



    शहीद लांसनायक चंद्रशेखर हर्बोला की छोटी बेटी बबीता की उम्र अब 42 साल है। जिस समय उनके पिता शहीद हुए थे उस समय वह काफी छोटी थीं, लेकिन अब उन्हें इस बात का गर्व है कि वह उस व्यक्ति की बेटी हैं जिन्होंने देश के लिए अपनी जान न्यौछावर की है। उन्होंने कहा कि उन्हें इस बात का गर्व है कि उनके पिता का पार्थिव शरीर सियाचिन में अपनी ड्यूटी आज भी निभा रहा।

    उन्होंने बताया कि उनकी माता ने उनको बताया था कि वह अपने पिता की गोद में बहुत खेला करती थीं। उनके पिता उन्हें कंधे पर बैठाकर गांव में घूमते थे। जब भी पिता छुट्टी में घर आते थे तो दोनों ही बेटियां अपने पिता से चिपक जाती थीं। कुछ दिनों तक तो वह अपनी मां के पास भी नहीं आती थीं। उनके पिता अपनी बेटियों के लिए खिलौने और खाने का सामान लेकर आते थे। बबिता ने बताया कि उन्होंने कभी भी नहीं सोचा था कि वह अपने पिता को बहुत ही कम उम्र में खो देंगी।

    उन्होंने बताया कि जब बड़ी हुईं और चीजों को समझने लगीं तब उन्हें पता चला कि उनके पिता देश की रक्षा करते हुए शहीद हुए हैं। वह भी उस सियाचिन में जहां पर एक आम आदमी का पांच मिनट रहना भी जानलेवा साबित हो जाता है। उन्होंने बताया कि वर्दी में कोई भी शख्स उन्हें जब भी दिखता है तो उसके लिए उन्हें एक अपनापन लगता है।

    ऐसा लगता है कि जैसे उस वर्दी के शख्स में उनको अपने पिता की छवि नजर आती है। उन्होंने भावुक होते बताया कि वह कभी भी ‘ए मेरे वतन के लोगों जरा याद करो कुर्बानी’ गीत नहीं सुनती हैं। अगर वह ऐसी जगह पर होती हैं जहां पर ये गीत सुना जा रहा है तो वह वहां से हट जाती हैं या फिर लोगों से उस गीत को बंद करने की गुजारिश करती हैं क्योंकि इस गीत को सुनते ही तुरंत रोने लगती हैं।

    उन्होंने कहा कि मैं कभी भी फेसबुक या व्हाट्सएप पर आने वाले शहीदों से जुड़े वीडियो को भी नहीं देख पाती हूं। कहा कि आज जब उनके पिता का पार्थिव शरीर आ रहा है तो वह शब्दों में बता ही नहीं सकती हैं कि उनके जहन में क्या भावनाएं उमड़ रही हैं। कहा कि भावनाओं का एक अजीब सा संगम हो रहा है।

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