नई दिल्ली। साल 2024 के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) के विजयी रथ को रोकने के लिए विपक्ष (Opposition) एकजुट होने के तमाम दावे भले ही कर रहा है लेकिन, विपक्षी पार्टियों के नेताओं की बयानबाजी (rhetoric of leaders) इन दावों की पोल खोल रही है। नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के बयान से स्पष्ट है कि वे साल 2024 में पीएम कैंडिडेट बनना पसंद करेंगे। उधर, टीएमसी सांसद सौगत रॉय (TMC MP Saugata Roy) ने बयान दिया कि ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) को पीएम कैंडिडेट बनाने के लिए पार्टी विपक्षी नेताओं से बात करेगी। अब इस लड़ाई में समाजवादी पार्टी भी कूद गई है। पार्टी के सांसद एसटी हसन ने कहा है कि अखिलेश यादव बेहतर पीएम कैंडिडेट हो सकते हैं।
बिहार में अप्रत्याशित रूप से भाजपा को साइड करके नीतीश कुमार ने महागठबंधन से हाथ मिलाया और सत्ता पर वापस काबिज हो गए। नीतीश कुमार ने शपथग्रहण के बाद यह बयान देकर खुद के पीएम कैंडिडेट को हवा दी कि जो 2014 में आए थे 2024 में नहीं आ पाएंगे। उनके बयान के बाद राजनीतिक गलियारों में चर्चाएं तेज हो गई हैं कि नीतीश कुमार विपक्ष का पीएम चेहरा हो सकते हैं।
उधर, दो कदम आगे बढ़ते हुए टीएमसी के सांसद सौगत रॉय ने तो यह तक कह दिया उनकी पार्टी सुप्रीमो ममता बनर्जी पीएम कैंडिडेट हो सकती हैं। इसके लिए उन्होंने पार्टी की ओर से विपक्ष से बातचीत करने की भी बात कही। साफ है कि विपक्ष के लिए एनडीए के सामने 2024 की लड़ाई से पहले एक चेहरा घोषित करना बड़ा चुनौती है।
सपा भी कूदी
इस बीच समाजवादी पार्टी के सांसद एसटी हसन ने कहा है कि उनकी पार्टी के नेता अखिलेश यादव बेहतर पीएम कैंडिडेट हो सकते हैं। एबीपी से बातचीत में उन्होंने कहा कि अगर 2024 के इलेक्शन में समाजवादी पार्टी की ओर से ज्यादा सांसद चुने जाते हैं तो यकीनन हमे ही पीएम कैंडिडेट चुनने का मौका पहले मिलेगा। ऐसे में मुझे लगता है कि अखिलेश यादव सबसे बेहतर पीएम चेहरा हो सकते हैं।
यूपी से हो पीएम चेहरा
इस बीच पार्टी के नेता और यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने यह बयान देकर विपक्ष में आपसी कलह को और उजागर कर दिया कि पीएम कैंडिडेट यूपी से ही होना चाहिए। उनके बयान से साफ है कि वह नीतीश कुमार और ममता बनर्जी को पीएम कैंडिडेट के तौर समर्थन नहीं करेंगे।
हालांकि अभी विपक्ष की ओर से साल 2024 के लिए पीएम कैंडिडेट के तौर किसी का नाम तय नहीं हुआ है। यह तो भविष्य के गर्त में है कि विपक्ष आपसी सहमति से नाम फाइनल करता है या यूं बयानबाजी से बिखराव की स्थिति को बरकरार रखेगा।
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