चेहरा खुली किताब है उनवान जो भी दो
जिस रुख़ से भी पढ़ोगे मुझे जान जाओगे।
विनोद नागर वो हस्ती हैं जिन्हें सूबे के सहाफी हल्क़ों, अदीबों, नोकरशाहों और कलाकारों तक सब जानते पेचानते हेँगे। ये 6 बरस पेले भोपाल दूरदर्शन से ज्वॉइंट डायरेक्टर न्यूज़ के ओहदे स सुबुकदोश (रिटायर) हुए। लिखने पढऩे के इन्तहाई शौकीन भाई मियां गर सरकारी मुलाज़मत में न आए होते तो शायद जानेमाने फिल्मी अफसानानिगार या गीतकार होते। फिल्मो की तनक़ीद और उनकी तारीख़ पे क़लम चलाना इनका जुनून है। वैसे कोई मौज़ू इनसे न छूटा होगा जिसपे इनकी क़लम न चली हो। हिंदी-अंग्रेज़ी ज़ुबानों पे अच्छा खासा दखल रखने वाले विनोद नागर के इशारों पे लफ्ज़ जैसे रक़्स करते हैं। इनके लेखन में एक लय है, उम्दा रवानी है। गोया के इनके लिखे को आप शुरू से आखिर तलक पढऩा चाहेंगे। दिलचस्प बात ये है कि इंटरनेट के दौर में जहां तमाम लोग गूगल बाबा से रिफरेंस निकालते हैं वहीं इनके पास बरसा बरस का रिफरेंस मौजूद है। वो भी निहायत कऱीने से सजा हुआ। दरअसल ये खुद चलती फिरती लाइब्रेरी हैं। आइये अब मुद्दे की बात पे आते हैं। विनोद नागर शायद इस मुल्क के वाहिद ऐसे लेखक हैं जिनके पास गुजिश्ता पचास बरसों में खुद का लिखा हर आर्टिकल, कविता, कहानी यहां तक कि बचपन मे लिखे गए पत्र संपादक के नाम की कटिंग तक मौजूद है। आधी सदी में इंन्ने अखबारों और रिसालों में जो भी लिखा उसका पूरा रिकार्ड मौजूद है। वो भी तारीख वार।
इस तवील वक्फे में विनोद नागर ने जो भी मज़मून लिखे, सहाफत और फिल्मो की समीक्षाएं करी या फिल्मों के इतिहास पे लिखा उस का पूरा जख़ीरा इनके पास है। भाई बताते है कि भोपाल का ज्ञान मुद्रा पब्लिकेशन इनके 1971 से 2021 तक के लेखन को 6 खण्डों में किताब की शक्ल में छाप रहा है। इस रचना समग्र की पेली कड़ी ‘आस-छपास’ उनवान से छपेगी। बाकी पांच किताबे ‘छपा-अन छपा’, ‘लिखा तो छपा’, ‘खूब लिखा-खूब छपा’, ‘झरोखा’ और ‘सिने सरोकार’ भी इस साल के आखिर तलक मार्किट में आ जाएंगी। इन किताबों में पिछले पचास बरसों में छपे इनके सभी आर्टिकल, रिपोर्ताज, भेंटवार्ता, कहानी, कविता, व्यंग्य. नाटक, पुस्तक समीक्षा और रेगुलर कॉलम पढऩे को मिलेंगे। इन किताबों की प्रस्तावना मशहूर सहाफी विजयदत्त श्रीधर, आलोक मेहता, डॉक्टर प्रकाश हिंदुस्तानी, कीर्ति राणा, विकास मिश्र, सूचना आयुक्त विजय मनोहर तिवारी, डॉ. मानसिंह परमार, प्रो.संजय द्विवेदी, नामचीन फि़ल्म समीक्षक अजय ब्रह्मात्मज, फि़ल्म निर्देशक रूमी जाफरी, फि़ल्म और थियेटर आर्टिस्ट राजीव वर्मा और डॉ. विकास दवे ने लिखी है। विनोद नागर का ये रचना समग्र सहाफत के तालिबे इल्म ( छात्रों) के लिए किसी रिफरेंस से कम नहीं होगा। बाकी भाई मियां अपना पचास बरस का लेखन आपने इत्ता सहेज के रखा इसके लिए आपका इस्तकबाल किया जाना चाहिए… मुबारक हो।
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