बर्मिंघम। पिछले 25 सालों से यह मिताली और झूलन की जोड़ी भारतीय महिला क्रिकेट का पर्याय रही है। 1997 में मिताली 14 साल की थीं, जब उन्हें घरेलू धरती पर भारत के 50 ओवरों की वर्ल्ड कप टीम में चुना गया था। इस पर केवल यह कहा जा सकता था कि वह अंतिम एकादश में जगह बनाने के लिए बहुत छोटी थीं। उसी संस्करण में झूलन ईडन गार्डन्स में उस ऑस्ट्रेलिया Vs इंग्लैंड फाइनल में एक बॉल गर्ल थीं। भारतीय टीम कॉमनवेल्थ गेम्स के अपने डेब्यू मैच में झूलन और मिताली के बिना पहला मैच खेलेगी। लम्बे समय तक मिताली और झूलन ने टीम में काफी योगदान किया है।
भारतीय महिला क्रिकेट को दी हैं नई पहचान
यह दोनों खिलाड़ी एक ऐतिहासिक यात्रा का हिस्सा रही हैं। साल 2002 में साउथ अफ़्रीका में टेस्ट जीत से लेकर साल 2005 में विश्व कप के उपविजेता बनने तक यह साथ रहीं। इसके बाद साल 2006 और 2014 में इंग्लैंड को टेस्ट क्रिकेट में मात देना इनके करियर और भारत की महिला क्रिकेट टीम की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि रही है। साल 2016 में आठ नए खिलाड़ियों के साथ ऑस्ट्रेलिया में सीरीज जीतकर इन दोनों खिलाड़ियो ने टीम को नई दिशा दी।
बदली है भारतीय महिला क्रिकेट की दशा
हालांकि मैदान पर आये बदलावों के लिए मैदान के बाहर भी उन्होंने महिला क्रिकेट को मिलने वाली सुविधाओं के लिए संघर्ष किया। इसके लिए उन्होंने बीसीसीआई से भी टक्कर लिया। उनके संघर्ष के बाद सेकेंड क्लास ट्रेन का जमाना ख़त्म होकर महिला खिलाड़ियों को एयर टिकट मिलने लगा। छोटे कमरों वाले होटलों की जगह पर बढ़िया होटल मिलने लगे। मैदान से बाहर उन्होंने हज़ारों युवाओ को क्रिकेट खेलने के लिए प्रेरित किया। यह उनके सबसे बड़े योगदानों में से एक था लेकिन इसके अलावा उन्होंने महिला खिलाड़ियों के केंद्रीय अनुबंधों के लिए सक्रिय रूप से पैरवी की जो अंततः 2016 से अस्तत्वि में आया।
टी-20 फार्मेट से ले चुकी हैं सन्यास
झूलन ने 2018 में टी20 से संन्यास ले लिया था और मिताली ने भी 2019 में इस प्रारूप को अलविदा कह दिया था। फिर भी टीम में हमेशा उनकी मौजूदगी थी, क्योंकि वे अभी भी 50 ओवर की सक्रिय खिलाड़ी थीं। मिताली के मामले में कप्तान होने का मतलब था कि समूह पर उनका अब भी गहरा प्रभाव था। इसलिए भले ही हरमनप्रीत कौर के पास टी20 में टीम को चलाने का एक नश्चिति तरीका था, लेकिन हमेशा से एक भावना यह भी थी कि यहमिताली के नेतृत्व वाली टीम है।
मिताली और हरमनप्रीत दोनों अलग अलग शैली की कप्तान
मिताली और हरमनप्रीत दो अलग-अलग शैली की कप्तान थीं। जिन्हें अक्सर बीच का रास्ता खोजने की ज़रूरत होती थी। जून में श्रीलंका दौरे से पहले पूर्णकालिक एकदिवसीय कप्तान बनाए जाने पर अपनी पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस में हरमनप्रीत को आखिरकार एक सुकून का एहसास हुआ कि यह उनकी टीम थी। राष्ट्रमंडल खेलों से पहले श्रीलंका दौरा मिताली-झूलन युग के बाद भारत का पहला कदम था। दोनों दिग्गजों के पास इस खेल में योगदान देने के लिए अभी भी बहुत कुछ है। शायद प्रशासक के रूप में, लेकिन मैदान पर, एक व्यापक भावना है कि टीम आखिरकार दो सितारों की छाया से आगे बढ़ गई है। यह एक ऐसी पीढ़ी है जिसके लिए मिताली और झूलन ने कड़ी मेहनत की है।
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