इन दो तस्व्वीरों में नुमाया हो रही हस्तियों में एक है मशहूर-ओ-मारूफ़ कवि, राइटर सत्यमोहन वर्मा और दूसरे हैं सूबे के बुज़ुर्ग सहाफी (पत्रकार) ठाकुर विक्रम सिंह। दोनों बचपन के यार हैं। दोनों ही दमोह के एक ही मुहल्ले में खेले कूदे,पढ़े और बड़े हुए। बाकी 50 बरस से ज़्यादा का वक्त बीत गया दोनों जि़न्दगी के नशेबोफराज़ और वक्त के थपेड़ों में इस क़दर उलझे कि एक दूसरे की खैर खबर ही नहीं ली। गोया के कौन कहां किस हाल में है इसका खयाल भी ज़हन से उतर गया। ठाकुर विक्रम सिंह जहां 92 बरस के हो गए वहीं सत्यमोहन वर्मा ने 89 साल में क़दम रखा। इस तवील वक्फे में दोनों दोस्तो के ज़्यादातर पुराने साथी इस दुनिया से कूच कर गए। बहरहाल सन 1951 से दोस्ती की डोर में बंधे इन बचपन के यारों का मिलन कल भोपाल में वीडियो कॉलिंग के ज़रिए हुआ। आपको याद होगा इसी 26 जुलाई को इसी कॉलम में सूरमा ने 92 बरस के बुज़ुर्ग सहाफी ठाकुर विक्रम सिंह के बारे में मज़मून लिखा था। उसे इनके दोस्त सत्यमोहन वर्मा के फज़ऱ्न्द अभिषेक वर्मा ने पढ़ा और अपने वालिद को वाट्सएप कर दिया। जब वो इबारत सत्यमोहन जी ने पढ़ी तो उनकी आंखों में चमक आ गई। वो 71 बरस पहले दमोह के असाटी वार्ड में बिताए उन लम्हों में खो गए कि जब ये दोनों दोस्त आपस मे खेलते, पढ़ते और लड़ते झगड़ते थे। सत्यमोहनजी कोई 50 बरसों से अपने इस दोस्त से नहीं मिले थे। वो कहां किस हाल में हैं इसकी जानकारी भी उन्हें नहीं थी। हालांकि ये अक्सर दमोह में ही रहते हैं। कभी कभी भोपाल में अपने बेटे बेटी से मिलने चले आते हैं। इत्तफ़ाक़ से ये फिलवक्त भोपाल में ही थे। लिहाज़ा इस कॉलम के आखिर में छपे सूरमा के नंबर पे इन्ने काल किया बोले- मैं सत्यमोहन वर्मा बोल रहा हूं। ठाकुर विक्रम सिंह मेरे बचपन के दोस्त हैं। कई बरसों से मुझे उनकी खबर नहीं। आपने उनके बारे में छापा है, क्या मुझे उनका फोन नंबर देंगे। मैं उनसे बात करना चाहता हूं। वर्मा जी ने बताया कि हम दोनों दमोह के असाटी वार्ड बाशिंदे हैं। कदीमी और बरसों से बिछड़े दोस्त के बारे में बे बताते जा रहे थे। उन्होंने आगे कहा- ठाकुर विक्रम सिंह हमारे साथ पांचवीं से मेट्रिक तक पढ़े हैं। 1954 में हम दोनों दमोह से भोपाल अजमेर बोर्ड का इण्टरमीडिएट इम्तहान देने साथ ही आये थे। यहां बुधवारे में हमारी बुआ की नाजि़म दौलतराम हवेली में हमने कय़ाम किया था। सन 1956 में ठाकुर साब पत्रकारिता करने भोपाल चले गए और मैंने सागर यूनिवर्सिटी से पढ़ाई के बाद दमोह जूनियर कालेज में पढ़ाना शुरू कर दिया। इस खाकसार ने सत्यमोहन जी को मुतमईन किया कि ठाकुर साहब के पत्रकार फज़ऱ्न्द धर्मेंद्र सिंह ठाकुर मेरे मित्र हैं और आज ही आपकी बात अपने पुराने दोस्त से हो जाएगी।
उधर ठाकुर विक्रम सिंह का दिल भी अपने दोस्त से मिलने को मचल उठा। वे फ़ौरन अपने दोस्त से मिलने जाने को उतावले हो उठे। लेकिन सत्यमोहन जी मिसरोद से भी आगे अपनी बिटिया के घर पर थे। लिहाज़ा दोनों के बच्चों ने इन बुज़ुर्ग दोस्तों को वीडियो कॉल से जोड़ दिया। पचास बरस बाद एक दूसरे को मोबाइल स्क्रीन पर देख कर दोनों अभिभूत थे। ठाकुर साब ने पूछा- कैसे हो सत्यमोहन…उन्होंने जवाब दिया- ठीक हूं भैया। दोनो यार जज़्बाती हो गए। कुछ देर चुप्पी छाई रही…जैसे कह रहे हों, कहां खो गए थे यार। और फिर दमोह की यादें एक दूसरे की आंखों में तैरने लगीं। घंटा घर के पास वाला हाई स्कूल, राजनगर और फुटेरा तालाब में नहाना। जटाशंकर, बांदकपुर और कुंडलपुर तक सायकिल से जाना सहित यादों का फ्लेशबैक ही चल निकला। मसलूम हो कि सत्यमोहन वर्मा दमोह के सरकारी उमावि से सीनियर लेक्चरर के ओहदे से रिटायर हुए। इनके वालिद मरहूम झुंन्नीलाल वर्मा आज़ादी के लड़ाके थे और दमोह के बड़े वकील थे। 1933 में उन्होंने गांधी जी की दमोह यात्रा को होस्ट किया था। सत्यमोहन जी के कई कविता संग्रह शाया हो चुके हैं। एक दौर में सप्ताहिक हिन्दुस्तान, धर्मयुग, प्रकार और समावर्तन में इनकी कविताएं और आलेख खूब छपे। इनके लिखे बुंदेलखंड गान को विनोद राठौर ने गाया है। इन्होंने रोबर्ट फ्रास्ट और पाब्लो नेरुदा की अंग्रेज़ी कविताओं का हिंदी में तर्जुमा भी किया। बाकी वीडियो कॉलिंग में दोनों मित्रों को वो तस्कीन नहीं मिली जो रुबरू मिलने में होती। लिहाज़ा सत्यमोहन जी ने ठाकुर साब से वादा किया कि कल तो वे दमोह लौट रहे हैं लेकिन जब भी भोपाल आएंगे तो आपके घर ज़रूर आएंगे। क़ायम रहे ये याराना, सूरमा येई दुआ करता है।
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