नई दिल्ली। पिछले कुछ सालों में भारतीय नागरिकों (Indian citizens) का विदेशी नागरिकता (foreign citizenship) लेने का चलन बहुत बढ़ गया है। अच्छी शिक्षा व्यवस्था और बेहतर नौकरी (education system and better jobs) की तलाश में विदेशों का रुख करने वाले अधिकतर लोग अब वहां की नागरिकता भी लेने लगे हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार (according to government data) हर साल लगभग 1 लाख लोग भारत को छोड़कर दूसरे देशों की नागरिकता (Citizenship of countries other than India) ले रहे हैं। कुछ महीने पहले ही देश के गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय (Minister of State for Home Nityanand Rai) ने लोकसभा में एक प्रश्न के जवाब में भारतीय लोगों के विदेशों की नागरिकता लेने से संबंधित जो आंकड़ा पेश किया वह सचमुच चौंकाने वाला था।
साल 2015 में जहां 1,41,000 लोगों ने विदेशी नागरिकता ली तो वहीं 2016 में यह संख्या 1,44,000 के पार चली गई। साल 2019 तक यह संख्या लगातार बढ़ती रही। हालांकि 2020 मैं कोरोना की वजह से यह आंकड़ा थोड़ा कम होकर पचासी हजार के आसपास हो गया लेकिन 2021 से यह आंकड़ा फिर से 100000 के पास चला गया। यानी हर रोज 350 से अधिक भारतीय विदेशी नागरिकता प्राप्त कर रहे हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि बेहतर पढ़ाई की तलाश, एक अच्छे कैरियर की गारंटी और आर्थिक संपन्नता की वजह से भारतीय लोग विदेशों का रुख कर रहे हैं और वहां की नागरिकता लेकर वहीं बस जा रहे हैं। कई शोध पत्रों में यह बात सामने आई है कि भारत में बड़ी संख्या में नौकरियों का जाना, अच्छी शिक्षा व्यवस्था का अभाव और छोटे और बड़े व्यापारियों का बिजनेस के लायक माहौल का ना मिलना पलायन का सबसे बड़ा कारण है।
साल 2017 से 2021 के बीच अमेरिका भारतीय लोगों का 42% के साथ पहली पसंद बना हुआ है। वहीं दूसरे नंबर पर कनाडा है जहां 91,000 भारतीय लोगों ने पिछले 5 सालों में नागरिकता प्राप्त की है। 86,000 लोगों के साथ ऑस्ट्रेलिया तीसरे स्थान पर और 66,000 के साथ इंग्लैंड और 23,000 के साथ इटली क्रमश चौथे और पांचवें स्थान पर है।
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