नई दिल्ली। द्रौपदी मुर्मू (Draupadi Murmu) का नाम आज पूरी दुनिया में चर्चा का विषय है। हर कोई देश की 15वीं राष्ट्रपति (15th President) द्रौपदी मुर्मू के बारे में जानना चाहता है। उनके जीवन से जुड़ी हर कहानी को समझना चाहता है। हो भी क्यों न, आखिर पहली बार दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र (world’s largest democracy) की सबसे बड़ी संवैधानिक कुर्सी (largest constitutional chair) पर एक आदिवासी समाज से आने वाली महिला बैठी हैं।
पिछड़ेपन के बीच विकास से कोसों दूर रहने वाले आदिवासी समाज से निकलकर मुर्मू ने देश के राष्ट्रपति की कुर्सी तक का सफर तय किया है। इस सफर में उन्होंने एक या दो नहीं बल्कि अपने तीन बच्चों को खो दिया। पति का साथ भी छूट गया। फिर भी मुर्मू ने हार नहीं मानी। उनके संघर्ष और जज्बे की कहानी ऐसी है जो हर किसी को प्रेरित करती है। आइए जानते हैं उनकी जिंदगी के सबसे दर्दनाक पांच साल की कहानी..
द्रौपदी का जन्म ओडिशा के मयूरगंज जिले के बैदपोसी गांव में 20 जून 1958 को हुआ था। द्रौपदी संथाल आदिवासी जातीय समूह से संबंध रखती हैं। उनके पिता बिरांची नारायण टुडू एक किसान थे। द्रौपदी के दो भाई हैं। द्रौपदी का बचपन बेहद अभावों और गरीबी में बीता था। लेकिन अपनी स्थिति को उन्होंने अपनी मेहनत के आड़े नहीं आने दिया। उन्होंने भुवनेश्वर के रमादेवी विमेंस कॉलेज से स्नातक तक की पढ़ाई पूरी की। बेटी को पढ़ाने के लिए द्रौपदी मुर्मू शिक्षक बन गईं।
पैदा होने के तीन साल के अंदर बच्ची की मौत
1980 के दशक में द्रौपदी मुर्मू की लव मैरिज श्याम चरण मुर्मू से हुई। अगले साल उन्होंने एक बेटी को जन्म दिया। बेटी तीन साल की ही हुई थी कि 1984 में उसकी मौत हो गई। मुर्मू की जिंदगी में ये पहला बड़ा झटका था। इस झटके से मुर्मू उबरीं जिदंगी पटरी पर लौटने लगी। इस दौरान मुर्मू ने दो बेटों और एक बेटी को भी जन्म दिया।
नौकरी करते-करते 1997 में राजनीति में आ गईं। पार्षद का चुनाव लड़ा जीतीं। 2000 में विधायक बनीं और फिर मंत्री। शिक्षक से लेकर मंत्री तक का सफर तय कर चुकीं मुर्मू को जिदंगी के सबसे बुरे दौर को देखना बाकी था। बात 27 अक्टूबर 2009 की है। ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर के पत्रपदा इलाके में मुर्मू के भाई के घर पर उनके 25 साल के युवा बेटे की लाश बिस्तर पर मिली। ये रहस्यमयी मौत थी।
उनके बेटे लक्ष्मण अपने चाचा-चाची के साथ रहते थे। इस घटना के वक्त द्रौपदी रायरंगपुर में थीं। बताया जाता है कि लक्ष्मण शाम को अपने दोस्तों के साथ गए थे। देर रात एक ऑटो से उनके दोस्त घर छोड़कर गए। उस वक्त लक्ष्मण की स्थिति ठीक नहीं थी। चाचा-चाची के कहने पर दोस्तों ने लक्ष्मण को उनके कमरे में लिटा दिया। उस वक्त घरवालों को लगा कि थकान की वजह से ऐसा हुआ है, लेकिन सुबह बेड पर लक्ष्मण अचेत मिले। घरवाले डॉक्टर के पास ले गए, तब तक उनकी मौत हो चुकी थी। इस रहस्यमयी मौत का खुलासा अब तक नहीं हो पाया है।
चार साल बाद ही मिली दूसरी झकझोर देने वाली खबर
बेटे की मौत के सदमे से द्रौपदी अभी उभर भी नहीं पाई थीं कि उन्हें दूसरी झकझोर देने वाली खबर मिली। ये घटना 2013 की है। जब द्रौपदी के दूसरे बेटे की मौत एक सड़क दुर्घटना में हो गई। द्रौपदी के दो जवान बेटों की मौत चार साल के अंदर हो चुकी थी। वह पूरी तरह से टूट चुकीं थीं। इससे उबरने के लिए उन्होंने अध्यात्म का सहारा लिया। द्रौपदी राजस्थान के माउंट आबू स्थित ब्रह्मकुमारी संस्थान में जाने लगीं। यहां कई-कई दिन तक वह ध्यान करतीं। तनाव को दूर करने के लिए राजयोग सीखा। संस्थान के अनेक कार्यक्रमों में हिस्सा लेने लगीं।
अगले साल पति भी दुनिया छोड़ गए
दो बेटों की मौत का दर्द अभी कम भी नहीं हुआ था कि 2014 में द्रौपदी के पति श्यामाचरण मुर्मू की भी मौत हो गई। बताया जाता है कि श्यामाचरण मुर्मू को दिल का दौरा पड़ा था। उन्हें घरवाले अस्पताल ले गए, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। श्यामाचरण बैंक में काम करते थे।
किसी आम इंसान की जिदंगी में एक के बाद एक इतने झटके मिले होते तो वो पूरी तरह टूट गया होता। लेकिन, ये द्रौपदी मुर्मू का जज्बा ही था जिसने उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। 2021 में वो झारखंड की राज्यपाल बना दी गईं। जहां वो आज भी अपने कामों की वजह से जानी जाती हैं। अब द्रौपदी के परिवार में केवल बेटी इतिश्री मुर्मू हैं। इतिश्री बैंक में नौकरी करती हैं।
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