नई दिल्ली। भारत के ‘गोल्डन ब्वॉय’ नीरज चोपड़ा ने एक बार फिर से इतिहास रच दिया है। टोक्यों ओलंपिक में स्वर्ण जीतने वाले इस भालाफेंक एथलीट ने अमेरिका में विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप में देश को रजत पदक दिलाया। वह विश्व एथलेटिक्स में पदक जीतने वाले पहले भारतीय पुरुष बन गए हैं। उनसे पहले महिलाओं में दिग्गज एथलीट अंजू बॉबी जॉर्ज ने 2003 में ऐतिहासिक कांस्य पदक जीता था। नीरज ने चौथे राउंड में 88.13 मीटर दूर भाला फेंकर रजत अपने नाम किया।
ग्रेनाडा के एंडरसन पीटर्स ने दूसरे राउंड में 90.46 दूर भाला फेंककर स्वर्ण पदक अपने नाम किया। एक के बाद एक टूर्नामेंट में नीरज को सफलता यू हीं नहीं मिली। इसके लिए उन्होंने काफी त्याग किए हैं। एक समय घरवालों से बात करना भी कम कर दिया था। सोशल मीडिया से दूरी बनाई। नीरज संयुक्त परिवार में रहते हैं। उनके माता-पिता के अलावा तीन चाचा शामिल हैं। एक ही छत के नीचे रहने वाले 19 सदस्यीय परिवार में चचेरे 10 भाई-बहनों में नीरज सबसे बड़े हैं। ऐसे में वह परिवार के लाडले हैं।
पापा-चाचा ने सात हजार जोड़कर दिलाया भाला
उन्हें इस खेल में अगले स्तर पर पहुंचने के लिए वित्तीय मदद की जरूरत थी जिसमें बेहतर उपकरण और बेहतर आहार की आवश्यकता थी। ऐसे में उनके संयुक्त किसान परिवार जिसमें उनके माता-पिता के अलावा तीन चाचा शामिल हैं। एक ही छत के नीचे रहने वाले 19 सदस्यीय परिवार में चचेरे 10 भाई बहनों में नीरज सबसे बड़े हैं। ऐसे में वह परिवार के लाड़ले भी हैं। परिवार की हालत ठीक नहीं थी और उसे 1.5 लाख रुपये का जेवलिन नहीं दिला सकते थे। पिता सतीश चोपड़ा और चाचा भीम ने जैसे-तैसे सात हजार रुपये जोड़े और उन्हें अभ्यास के लिए एक जेवलिन लाकर दिया।
जूनियर विश्व रिकॉर्ड बनाकर आए सुर्खियों में
वह 2016 में जूनियर विश्व चैंपियनशिप में 86.48 मीटर के अंडर-20 विश्व रिकॉर्ड के साथ एक ऐतिहासिक स्वर्ण पदक जीतने के बाद सुर्खियों में आए और फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। नीरज ने 2017 में सेना से जुड़ने के बाद कहा था कि हम किसान हैं, परिवार में किसी के पास सरकारी नौकरी नहीं है और मेरा परिवार बड़ी मुश्किल से मेरा साथ देता आ रहा है। लेकिन अब यह एक राहत की बात है कि मैं अपने प्रशिक्षण को जारी रखने के अलावा अपने परिवार का आर्थिक रूप से समर्थन करने में सक्षम हूं।
बिना कोच वीडियो देख दूर की कमियां
जीवन में उतार-चढ़ाव का सिलसिला जारी रहा और एक समय ऐसा भी आया जब नीरज के पास कोच नहीं था। मगर नीरज ने हार नहीं मानी और यूट्यूब चैनल से विशेषज्ञों की टिप्स पर अमल करते हुए अभ्यास के लिए मैदान में पहुंच जाते। वीडियो देखकर अपनी कई कमियों को दूर किया। इसे खेल के प्रति उनका जज्बा कहें कि जहां से भी सीखने का मौका मिला उन्होंने झट से लपक लिया।
सेना से जुड़े, प्रशिक्षण जारी रखने में हुए सक्षम
2017 में सेना से जुड़ने के बाद नीरज ने बताया था-हम किसान हैं, परिवार में किसी के पास सरकारी नौकरी नहीं है। परिवार बमुश्किल मेरा साथ देता आ रहा है। अब राहत है कि प्रशिक्षण जारी रखने के साथ परिवार की आर्थिक मदद करने में सक्षम हूं।
वजन कम करने के लिए थामा भाला
खेलों से नीरज के जुड़ाव की शुरुआत हालांकि काफी दिलचस्प तरीके से हुई। संयुक्त परिवार में रहने वाले नीरज बचपन में काफी मोटे थे और परिवार के दबाव में वजन कम करने के लिए वह खेलों से जुड़े। वह 13 साल की उम्र तक काफी शरारती थे। उनके पिता सतीश कुमार चोपड़ा बेटे को अनुशासित करने के लिए कुछ करना चाहते थे।
काफी मनाने के बाद नीरज दौड़ने के लिए तैयार हुए जिससे उनका वजन घट सके। उनके चाचा उन्हें गांव से 15 किलोमीटर दूर पानीपत स्थित शिवाजी स्टेडियम लेकर गए। नीरज को दौड़ने में कोई दिलचस्पी नहीं थी और जब उन्होंने स्टेडियम में कुछ खिलाड़ियों को भाला फेंक का अभ्यास करते देखा तो उन्हें इस खेल से प्यार हो गया। उन्होंने इसमें हाथ आजमाने का फैसला किया और अब वह एथलेटिक्स में देश के सबसे बड़े खिलाड़ियों में से एक बन गए।
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