नागदा (प्रफुल्ल शुक्ला)। घर में कलह हो तो परिवार की सफलता मुश्किल हो जाती है और यह कलह खुलकर सामने आ जाए तो विरोधी बिना ज्यादा मेहनत ही मुकाबला जीत जाने की स्थिति में आ जाता है।
ऐसा ही कुछ नजारा देखने को मिला नगर पालिका चुनाव के दौरान, जब खुद भाजपाई ही अपने उम्मीदवार को हराने में जुटे थे। कई वार्डों में तो खुद को दांव पर लगाकर खुली बगावत कर पार्टी से बाहर होने का खतरा उठाकर भाजपा उम्मीदवार को हराने ने कोई कसर नहीं छोड़ी। ये सभी बगावती पार्टी के कोई छोटे कार्यकर्ता नहीं बल्कि वरिष्ठ नेता थे जो पूर्व पार्षद, मण्डल तथा जिला पदाधिकारी रह चुके हैं। इसके अलावा भीतरघात तो लगभग हर वार्ड में हुई जिन्हें टिकिट नहीं मिला वो सभी जुटे पार्टी उम्मीदवार को गिराने में जुटे रहे। भाजपा जो पिछले चुनाव में काम बोलता है के नारे और काम के बल पर नपा परिषद पर 36 में से 27 सीटें और अध्यक्ष पद जीतकर स्पष्ट बहुमत के साथ नगर पालिका में बैठे थे। इस बार काम बोलता है जैसी लहर मतदाताओं में चलती नजर नहीं आई फिर भी राजनैतिक विशेषज्ञ भाजपा का ही परिषद पर कब्जा होना मानकर चल रहे थे। टिकिट वितरण और उसके बाद की परिस्थितियों ने भाजपा की यह स्पष्ट स्थिति अस्पष्ट कर दी और ऊँट किसी भी करवट बैठ सकता है जैसी कर दी। इस बार भाजपा बिखरी हुई नजर आई। हर बड़े नेता से जुड़ा दूसरे और तीसरे क्रम का नेता नाराज होकर मैदान में उतरा, कोई चुनाव लड़ा तो कोई भीतरघात में जुटा रहा। ऐसी स्थिति में यदि कांग्रेस के ज्यादा पार्षद चुन लिए जाते है और परिषद पर कांग्रेस का कब्जा हो जाता है तो भाजपा को आत्ममंथन करने की जरूरत पड़ेगी क्योंकि यह पराजय कांग्रेस से नहीं बल्कि अपनो के कारण मिली मिलेगी।
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved