- भाजपा और कांग्रेस के महापौर प्रत्याशियों में घमासान तो वार्डों में भी जीत नहीं आसान
- भाजपा को कई सीटों पर हो सकता है नुकसान, कांग्रेस की वर्तमान सीटें यथावत तो कई सीटों पर मिल सकती है जीत
उज्जैन। 17 जुलाई को उज्जैन नगर निगम चुनाव की मतगणना हो जाएगी लेकिन उसके पूर्व जमीनी रिपोर्ट यह है कि इस बार भाजपा को एकतरफा जीत नहीं मिलेगी। फिर भले ही महापौर की बात की जाए या 54 वार्डों के पार्षदों की…वार्ड क्रमांक 11, 13, 14, 27, 30, 31, 32, 54 में जहाँ मुस्लिम वोट निर्णायक हैं, वहीं शहर के अन्य 19 वार्डों में भाजपा कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर है और यहाँ निर्दलीय उम्मीदवार भी जीत का गणित बिगाड़ रहे हैं। ऐसे में कहा जा सकता है कि दोनों ही दलों के लिए इस बार जीत आसान नहीं हैं। एक सर्वे के अनुसार तो इस बार उज्जैन में नगर निगम चुनाव में कांग्रेस भारी पड़ रही है और वार्डों में भी उसके प्रत्याशी अधिक जीतेंगे।
कांग्रेस के महापौर प्रत्याशी के रूप में महेश परमार के आने के बाद मुकाबला रोचक हो गया था और परमार के सामने पूरी भाजपा ने खूब दम भी लगाया। कई लोग परमार के जीतने के कयास लगा रहे हैं तो कुछ कह रहे हैं कि भाजपा के मुकेश टटवाल ही महापौर बनेंगे। इन दोनों के बीच भी पार्षदों का भविष्य टिका हुआ है। कांग्रेस के कई पार्षद प्रत्याशियों को महेश परमार ने एक तरह से संजीवनी देने का काम किया है तो इस बार टिकट वितरण के मामले में नीचे के कार्यकर्ताओं को तवज्जो देने से भी कांग्रेस में जोश है और इसलिए वे भी अपनी जीत को तय मानकर चल रहे हैं। दूसरी ओर भाजपा के कुछ प्रत्याशियों को अपनी ही पार्टी के जयचंदों का सामना करना पड़ा है तो कहीं-कहीं बागियों ने मुसीबत बढ़ा दी है, वहीं टिकट वितरण में विधायकों की चलना भी कई सीटों पर भाजपा की जीत के समीकरण गड़बड़ा सकता है। उज्जैन में 19 सीटें ऐसी हैं, जिसके बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता। ये सीटें भाजपा और कांग्रेस के पास रही हैं, लेकिन इस बार कांग्रेस को सीटों का फायदा हो सकता है तो भाजपा को नुकसान। पिछली परिषद में भाजपा के पास 39 सीट थीं, लेकिन अब इसमें से आधी सीटों पर ही कहा जा सकता है कि ये सीधे भाजपा के खाते में आ रही हैं, वहीं कांग्रेस की 14 सीटें बरकरार रहने वाली हैं और इसमें और इजाफा होने की संभावना है। अब देखना यह है कि 19 सीटें, जहां मुकाबला बराबरी का था या कहीं त्रिकोणीय था, उनमें से कितनी सीटें भाजपा और कांग्रेस के खाते में जाती हैं?
संशय के ये हैं संभावित कारण
- मतदान का प्रतिशत कम आना।
- कई प्रत्याशियों का स्थानीय स्तर पर विरोध।
- दोनों ही दलों में बागी प्रत्याशियों का खड़ा होना।
- कई वार्डों में बड़े नेताओं का रूचि नहीं लेना।
- टिकट वितरण में बंदर बांट, चहेतों को देना।
- भाजपा के वरिष्ठ पार्षदों का टिकिट काटना।
- मुस्लिम वार्ड भी बिगाड़ेंगे गणित।