नई दिल्ली: मानसून सत्र की शुरुआत से पहले लोकसभा सचिवालय ने ऐसे शब्दों की सूची तैयार की है, जिसके बोलने पर लोकसभा और राज्यसभा में मनाही होगी. खास बात ये है कि इस लिस्ट में ऐसे कॉमन शब्द शामिल हैं जिनका बोलचाल की आम भाषा में भरपूर इस्तेमाल होता है. लेकिन अब ऐसे शब्दों के इस्तेमाल को असंसदीय माना जाएगा.
कांग्रेस ने ‘जुमलाजीवी’ और कई अन्य शब्दों को ‘असंसदीय अभिव्यक्ति’ की श्रेणी में रखे जाने को लेकर सरकार पर निशाना साधा है. पार्टी ने कहा कि सरकार की सच्चाई दिखाने के लिए विपक्ष द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले सभी शब्द अब ‘असंसदीय’ माने जाएंगे.
पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने ट्वीट किया, ‘मोदी सरकार की सच्चाई दिखाने के लिए विपक्ष द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले सभी शब्द अब ‘असंसदीय’ माने जाएंगे. अब आगे क्या?’ कांग्रेस सांसद अभिषेक मनु सिंघवी ने ट्वीट किया, ‘अगर आप अपनी आलोचना में रचनात्मक नहीं हो सकते तो संसद का क्या मतलब है? शब्दों पर प्रतिबंध लगाना अनुचित है!”
बता दें कि लोकसभा और राज्यसभा में 18 जुलाई से शुरू हो रहे मानसून सत्र में ये नियम लागू हो जाएगा. लोकसभा सचिवालय द्वारा जारी एक नई बुकलेट में कहा गया है कि ‘जुमलाजीवी’, ‘बाल बुद्धि’, ‘कोविड स्प्रेडर’ और ‘स्नूपगेट’ जैसे शब्दों को लोकसभा और राज्यसभा में असंसदीय माना जाएगा. लोकसभा सचिवालय द्वारा जिन शब्दों को असंसदीय बताया गया है उनमें कुछ बेहद सामान्य शब्द हैं और बोलचाल के दौरान धड़ल्ले से प्रयोग किए जाते हैं. इस संकलन में अंग्रेजी के कुछ शब्दों एवं वाक्यों को भी शामिल किया गया है जिनमें ‘ आई विल कर्स यू’, बिटेन विद शू’, बिट्रेड, ब्लडशेड, चिटेड, शेडिंग क्रोकोडाइल टियर्स, डंकी, गून्स, माफिया, रबिश, स्नेक चार्मर, टाउट, ट्रेटर, विच डाक्टर आदि शमिल हैं.
संसद के दोनों सदनों लोकसभा और राज्यसभा की कार्यवाही के दौरान सदस्य अब चर्चा में हिस्सा लेते हुए जुमलाजीवी, बाल बुद्धि सांसद, शकुनी, जयचंद, लॉलीपॉप, चांडाल चौकड़ी, गुल खिलाए, पिठ्ठू जैसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं कर सकेंगे. ऐसे शब्दों के प्रयोग को अमर्यादित आचरण माना जाएगा और वे सदन की कार्यवाही का हिस्सा नहीं होंगे.
संसद के सदस्य कई बार सदन में ऐसे शब्दों, वाक्यों या अभिव्यक्ति का इस्तेमाल कर जाते हैं जिन्हें बाद में सभापति या अध्यक्ष के आदेश से रिकॉर्ड या कार्यवाही से बाहर निकाल दिया जाता है. लोकसभा में कामकाज की प्रक्रिया एवं आचार के नियम 380 के मुताबिक, ‘अगर अध्यक्ष को लगता है कि चर्चा के दौरान अपमानजनक या असंसदीय या अभद्र या असंवेदनशील शब्दों का इस्तेमाल किया गया है, तो वे सदन की कार्यवाही से उन्हें हटाने का आदेश दे सकते हैं.’ वहीं, नियम 381 के अनुसार, सदन की कार्यवाही का जो हिस्सा हटाना होता है, उसे चिह्नित करने के बाद कार्यवाही में एक नोट इस तरह से डाला जाता है कि अध्यक्ष के आदेश के मुताबिक इसे हटाया गया.
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