नई दिल्ली। केंद्र सरकार देश की अधिकांश संस्थाओं (most institutions) को निजी हाथों में सौंप रही है। साथ ही धीरे धीरे प्राइवेटाइजेशन (Privatisation) की तरफ बढ़ रही है। यहां तक कि सरकारी बैंकों का भी प्राइवेटाइजेशन (Privatisation) करने का प्लान बनता दिख रहा है। माना जा रहा है कि सरकार जल्द ही बैंकों के नाम का ऐलान कर सकती है।
आपको बता दें कि इस समय देश में फिलहाल 12 सरकारी बैंक (PSB) हैं। केंद्र सरकार को भारतीय स्टेट बैंक (SBI) को छोड़कर सभी पब्लिक सेक्टर के बैंकों (PSB) का प्राइवेटाइजेशन कर देना चाहिए। इसका कारण यह है कि प्राइवेट बैंक पर्याप्त बाजार हिस्सेदारी वाले सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के विश्वसनीय विकल्प के रूप में उभरे हैं।
नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च (NCAER) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले दशक के दौरान एसबीआई को छोड़कर अधिकांश सरकारी बैंक, प्राइवेट बैंकों से पिछड़ गए हैं। NCAER की पूनम गुप्ता और अर्थशास्त्री अरविंद पनगढ़िया द्वारा लिखित रिपोर्ट में कहा गया है कि पीएसबी ने अपने प्राइवेट सेक्टर के समकक्षों की तुलना में संपत्ति और इक्विटी पर कम रिटर्न प्राप्त किया है।
एक मीडिया रिपोर्ट के हवाले से लिखा है कि पीएसबी डिपॉजिट और लोन दोनों के मामले में निजी बैंकों के सामने फीकी पड़ रही है। 2014-15 के बाद से, बैंकिंग सेक्टर में बढ़ोतरी की लगभग पूरी जिम्मेदारी प्राइवेट बैंकों और एसबीआई के कंधों पर ही है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले दस सालों के दौरान अपने प्रदर्शन को बढ़ाने के उद्देश्य से कई नीतिगत पहलों के बावजूद सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का खराब प्रदर्शन जारी है। पीएसबी की गैर-निष्पादित संपत्ति (NPA) प्राइवेट बैंकों की तुलना में बढ़ी हुई है। यहां तक कि सरकार ने 2010-11 और 2020-21 के बीच पीएसबी में 65.67 बिलियन डाॅलर का निवेश किया है ताकि उन्हें बैड लोन संकट से निपटने में मदद मिल सके। पीएसबी का मार्केट वैल्यूएशन एसबीआई को छोड़कर “बेहद नीचे” बना हुआ है। SBI को छोड़कर पीएसबी का मार्केट कैप 43.04 अरब डॉलर के रिकैपिटलाइजेशन राशि की तुलना में करीब 30.78 अरब डॉलर है।
रिपोर्ट में यह भी कहा कि कम सरकारी स्वामित्व वाले सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का निजीकरण करना आसान होगा। ऐसा इसलिए है क्योंकि निजीकरण के लिए चुने गए पहले दो बैंकों को भविष्य के निजीकरण की सफलता के लिए एक उदाहरण स्थापित करना चाहिए। दो या दो से अधिक खरीदारों को आकर्षित करने के लिए बाजारों को चुने हुए बैंकों में मूल्य देखना चाहिए। यहां तक कि नीति आयोग ने सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया और इंडियन ओवरसीज बैंक के निजीकरण का सुझाव दिया है। रिपोर्ट में इंडियन बैंक और बैंक ऑफ बड़ौदा को निजीकरण के लिए दो टाप विकल्प के रूप में सुझाया गया है। इन दोनों को संपत्ति पर रिटर्न, इक्विटी पर रिटर्न, एनपीए, सरकारी हिस्सेदारी और परिसंपत्ति आधार के मानदंडों के आधार पर चुना गया है। इन दोनों के बीच, बैंक ऑफ बड़ौदा का निजीकरण करना आसान होगा, क्योंकि सरकार को अपनी हिस्सेदारी 51 प्रतिशत से कम करने के लिए केवल 15 प्रतिशत अंकों की आवश्यकता होगी।
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