• img-fluid

    संघ की विश्व गुरु साधना

  • July 13, 2022

    – डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

    राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार युग द्रष्टा थे। वह महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। ब्रिटिश सरकार के कारावास से एक वर्ष बाद उनको रिहा किया गया था। इस अवसर पर उनके अभिनन्दन में समारोह का आयोजन किया गया था। इसमें मोती लाल नेहरू और सी राजगोपाल चारी भी सहभागी हुए थे। स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रहते हुए वह दो प्रश्नों पर मंथन करते थे। एक यह कि विश्व गुरु भारत को परतंत्रता क्यों झेलनी पड़ी। दूसरा यह कि स्वतंत्रता के बाद भारत को किस प्रकार अजेय बनाया जाए। इसके लिए वह हिन्दुओं को संगठित करना चाहते थे। यही वह सभ्यता संस्कृति है जिसमें सम्पूर्ण मानवता के कल्याण का भाव है। इस विचार के अनुरूप उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की थी। भारत जब विश्व गुरु था तब उसका ध्वज भगवा हुआ करता था। संघ ने इसी ध्वज को अपना गुरु माना। वर्ष में एक दिन इस ध्वज के समक्ष समर्पण भाव से पूजन किया जाता है। इसी से वर्षभर संघ के राष्ट्रव्यापी कार्य संचालित होते हैं।

    सूर्योदय अंधकार को दूर करता है। अरुणोदय उत्साह का सन्देश देता है। अग्नि शिखाएं भी भगवा रंग की होती हैं। यह यज्ञ का प्रतीक है। इसमें शुद्धता त्याग, समर्पण,बलिदान, शक्ति और भक्ति का भाव होता है। सूर्य और अग्नि की भांति भगवा रंग अज्ञानता का अंधकार को दूर करता है। ऊर्जा का संचार होता है। केशव राव बलिराम हेडगेवार ने राष्ट्र सेवा के लिए निजी सुख सुविधाओं का त्याग कर दिया था। आंदोलनों में भाग लेते समय उन्हें भारत माता की त्रासदी विचलित करती थी। वह सोचते थे कि भारत कभी विश्व गुरु था। भारतीय संस्कृति की ध्वज पताका विश्व में प्रतिष्ठित थी। मानव सभ्यता का विकास सबसे पहले यहीं हुआ। यहां के वन तक वैज्ञानिक अनुसंधान के केंद्र थे। चक्रवर्ती सम्राटों की यहां सुदीर्घ शृंखला थी। भारत ने अपनी संस्कृति का विस्तार तलवार की नोक पर कभी नहीं किया। सदैव मानव कल्याण का विचार दिया। वसुधा को कुटुंब माना। उदार चरित्र की अवधारणा दी।

    डॉ. हेडगेवार चिंतन करते थे कि इतना महान देश विदेशी दासता में कैसे जकड़ गया। इसके पीछे उन्हें दो कारण नजर आए। एक यह कि भारत के लोग अपनी सर्वश्रेष्ठ विरासत पर स्वाभिमान करना भूल चुके थे। इसका प्रभाव उनके आचरण पर पड़ा। दूसरा कारण यह था कि हमारे भीतर भेदभाव आ गया। इससे हमारी संगठित शक्ति कमजोर हुई। इसका विदेशी शक्तियों ने लाभ उठाया। डॉ. हेडगेवार भारत को पुनः परम वैभव के पद पर आसीन देखना चाहते थे। वह हिन्दू समाज को भेदभाव से ऊपर लाकर संगठित करना चाहते थे। स्वतंत्रता संग्राम अपनी जगह था। वह देश को अंग्रेजों के चंगुल से मुक्त करना चाहते थे। इसीलिये वह कांग्रेस के आंदोलनों में सक्रिय रूप से भाग लेते थे। कांग्रेस के नागपुर सम्मेलन की पूरी व्यवस्था उन्होंने की थी। वह कांग्रेस के खिलाफत आंदोलन से असहमत थे। इसका नाम भी भ्रामक था। ऐसा अहसास कराया गया कि यह अंग्रेजों के खिलाफ है। लेकिन यह तुर्की के खलीफा को अपदस्थ करने के विरोध में था। डॉ. हेडवेवर ने कांग्रेस के बड़े नेताओं से अपना विरोध दर्ज कराया। उनका कहना था कि तुर्की के शासक का मसला उनका है। भारत स्वयं ही गुलाम है। उसे किसी बाहरी मुल्क के मामले में पड़ने की जरूरत ही नहीं है। गुलामों की बात को विश्व सम्मान नहीं देता। कांग्रेस केवल तुष्टिकरण के लिए खिलाफत आंदोलन चला रही है।

    डॉ. हेडगेवार की बात कांग्रेस के शीर्ष नेताओं ने नहीं मानी। इसलिए समाज को एकजुट करने, राष्ट्रीय भावना की प्रेरणा देने के उद्देश्य से उन्होंने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की स्थापना की। संघ के स्वयंसेवक राष्ट्रीय आंदोलन में भी सहयोग करते थे। आजादी के बाद भी राष्ट्रीय व प्राकृतिक आपदा के समय स्वयंसेवक अपनी प्रेरणा से सेवा कार्य में जुटते रहे हैं। चीन और पाकिस्तान के आक्रमण के समय स्वयंसेवक अपने स्तर से सहयोग करते थे। इसीलिए गणतंत्र दिवस परेड में स्वयंसेवकों को पथसंचलन के लिए राजपथ पर आमंत्रित किया गया था। लाल बहादुर शास्त्री ने द्वितीय सर संघचालक से पूछा था कि आप स्वयंसेवकों को राष्ट्र सेवा की प्रेरणा कैसे देते थे। गुरु गोलवलकर ने कहा था को हम लोग शाखा में खेलते हैं। यहीं संगठन की प्रेरणा मिलती है और संस्कार और राष्ट्रभाव जाग्रत होता है।

    इसके लिए शाखाओं की पद्धति शुरू की गई। संघ में व्यक्तिवाद को महत्व नहीं दिया गया। डॉ. हेडगेवार को सुझाव दिया गया था कि आप संघ के गुरु का पद ग्रहण करें। डॉ. हेडगेवार ने इससे इनकार कर दिया। उनका कहना था कि व्यक्ति या उसका उत्तराधिकारी पथ से विचलित हो सकता है। इसके अलावा हिंदुओं में अनेक गुरु हैं। व्यक्तिगत रूप से अनेक लोगों की आस्था अपने गुरु के प्रति होती है। संघ ने कोई सम्प्रदाय या पंथ शुरू नहीं किया। वह पूरे हिन्दू समाज को संगठित करना चाहता है। हिन्दू समाज में अनेक पंथ समुदाय हैं। इनके गुरु भी अलग होते हैं। लेकिन भगवा ध्वज के प्रति सबकी समान रूप से आस्था है। यह भारत के विश्वगुरु होने का प्रतीक है। इसमें भारत का गौरव और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद समाहित है। इससे प्रेरणा लेकर कार्य करने की आवश्यकता है।

    (लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

    Share:

    मप्र में मिले कोरोना के 116 नये मामले, 97 मरीज संक्रमण मुक्त हुए

    Wed Jul 13 , 2022
    भोपाल। मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) में बीते 24 घंटे के दौरान कोरोना के 116 नये मामले (116 new cases of corona in last 24 hours) सामने आए हैं, जबकि 97 मरीज कोरोना संक्रमण से मुक्त हुए हैं। इसके बाद राज्य में संक्रमितों की कुल संख्या 10 लाख 45 हजार 779 हो गई है। हालांकि, राहत की […]
    सम्बंधित ख़बरें
  • खरी-खरी
    रविवार का राशिफल
    मनोरंजन
    अभी-अभी
    Archives
  • ©2024 Agnibaan , All Rights Reserved