– डॉ. दिलीप अग्निहोत्री
उत्तर प्रदेश में चुनाव सफलता के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पहली बार 07 जुलाई को काशी यात्रा पर पहुंचे।सत्ता पक्ष में जबर्दस्त उत्साह है। उपचुनाव की जीत ने इसे बढ़ा दिया है। छत्तीस वर्ष बाद उत्तर प्रदेश में किसी सरकार को लगातर दूसरी बार जनादेश मिला। कांग्रेस और बसपा का लगभग सफाया हो गया। विधानसभा में सपा को मुख्य विपक्षी का दर्जा मिल गया। यह लगा कि उसकी तरफ से सत्ता पक्ष को चुनौती मिलेगी। लेकिन विधानसभा के पहले अधिवेशन में ही यह धारणा ध्वस्त हो गई। रही सही कसर आजमगढ़ और रामपुर ने पूरी कर दी। यह दोनों सपा के सर्वाधिक मजबूत गढ़ों में शामिल थे। दोनों ही उसके हाथ से निकल गए। इसे दो वर्ष बाद होने वाले लोकसभा चुनाव के संदर्भ में भी देखना चाहिए। नरेन्द्र मोदी परिवारवादी पार्टियों पर हमला बोल रहे हैं। वह इन्हें प्रजातंत्र के लिए घातक बता रहे हैं। उपचुनाव परिणामों से नरेन्द्र मोदी के इस अभियान को बल मिला है। इस माहौल में नरेन्द्र मोदी काशी यात्रा पर आए। उन्होने करीब 600 करोड़ रुपये की 32 परियोजनाओं का लोकार्पण और करीब सवा बारह सौ करोड़ की 13 परियोजनाओं का शिलान्यास किया। इनमें स्मार्ट सिटी,अर्बन डेवलपमेंट,सीवेज, वाटर सप्लाई, इंफ्रास्ट्रक्चर सहित तमाम परियोजनाएं शामिल हैं। उन्होंने यहां समग्र विकास का संदेश दिया।
प्रधानमंत्री ने अर्दली बाजार स्थित एलटी कालेज परिसर में बने अक्षयपात्र कम्युनिटी किचन का शुभारंभ किया। अक्षय पात्र किचेन में दस मिनट की अवधि में आठ सौ बच्चों का भोजन तैयार हो जाएगा। एक घंटे में चालीस हजार रोटियां और दस मिनट में सोलह सौ लीटर दाल बन जायेगी। इसकी क्षमता एक लाख बच्चों का भोजन तैयार करने की है। शुरुआत में सत्ताइस हजार बच्चों को मध्याह्न भोजन उपलब्ध कराया जाएगा। यहां निर्मित मिड डे मील को प्राथमिक स्कूलों में पहुंचाया जायेगा। मिड डे मिल सबसे पहले सेवापुरी ब्लॉक के स्कूलों में जायेगा। अगले महीने इसकी क्षमता बढ़कर सवा लाख हो जाएगी। फिर अगले छह महीने में लाख बच्चों का मिड डे मिल बन सकेगा। अक्षयपात्र फाउंडेशन भारत में दो केंद्रशासित प्रदेशों व चौदह राज्यों में भोजन वितरण का काम कर रहा है। अक्षयपात्र किचन की वैन स्कूलों में खाना पहुंचाती है। बनारस की रसोई के लिए प्रदेश सरकार ने तीन एकड़ जगह और तेरह करोड़ रुपये उपलब्ध कराए हैं। मीड डे मील तैयार करने के लिए पूरा ऑटोमेटिक किचन का निर्माण किया गया है। इसमें आटा गूंथने से लेकर रोटी बनाने तक की मशीन शामिल है। इस किचन में पूरे चौबीस घंटे में तीन सौ लोग काम करेंगे। प्रदेश में सबसे पहले मथुरा-वृंदावन में रसोई बनी थी। इसके बाद राजधानी लखनऊ और गोरखपुर में किचेन से स्कूली बच्चों को मिड डे मिल बांटा जा रहा है।
प्रधानमंत्री ने शैक्षणिक सम्मेलन का भी शुभारंभ किया। प्रधानमंत्री ने पिछले महीने हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में मुख्य सचिवों के एक सेमिनार को संबोधित किया था जहां राज्यों ने इस मुद्दे पर अपनी अंतर्दृष्टि साझा की थी। इस संबंध में परामर्शों की शृंखला में वाराणसी शिक्षा समागम की अगली कड़ी है। नरेन्द्र मोदी ने पहले भी कहा था कि कुछ एक भाषाओं के वर्चस्व के कारण बौद्धिक आदान-प्रदान और कौशल वृद्धि का दायरा सिकुड़ता गया। इस प्रवृति को रोकने के लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति के जरिये भारतीय भाषाओं में उच्च शिक्षा जैसे चिकित्सा और प्रौद्योगिकी में शिक्षा सुविधाओं को सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया है। सरकार का प्रयास है कि कोई भी भारतीय सर्वश्रेष्ठ ज्ञान, कौशल, सूचना और अवसरों से वंचित न रहे।
भारतीय भाषाओं का विकास केवल एक भावनात्मक मुद्दा नहीं है बल्कि इसके पीछे बहुत बड़ा वैज्ञानिक आधार है। तीन दिवसीय इस सम्मेलन का आयोजन विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के सहयोग से शिक्षा मंत्रालय ने किया है। इसमें सार्वजनिक और निजी विश्वविद्यालयों के करीब तीन सौ कुलपति, निदेशक,शिक्षाविद, नीति निर्माता और उद्योग के प्रतिनिधि भी शामिल हैं। पिछले दो वर्षों में शिक्षा नीति पर सफल कार्यान्वयन चल रहा है। अग्रणी भारतीय उच्च शैक्षणिक संस्थान इस पर भी विभिन्न दृष्टिकोण से सम्मेलन में चर्चा करेंगे। शिक्षा मंत्रालय ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद के साथ मिलकर इस दिशा में प्रयास कर रहा है।
अकादमिक बैंक ऑफ क्रेडिट, मल्टीपल एंट्री एग्जिट, उच्च शिक्षा में बहु अनुशासन और लचीलापन, ऑनलाइन और ओपन डिस्टेंस लर्निंग को बढ़ावा देने का कार्य किया जा रहा है। वैश्विक मानकों के साथ इसे और अधिक समावेशी बनाने, राष्ट्रीय पाठ्यचर्या ढांचे को संशोधित करने, बहुभाषी शिक्षा तथा भारतीय ज्ञान प्रणाली को बढ़ावा देने पर बल दिया गया है। कौशल शिक्षा को मुख्यधारा में लाने एवं आजीवन सीखने को बढ़ावा देने जैसी कई नीतिगत पहल की है। कई विश्वविद्यालय पहले ही इस कार्यक्रम को अपना चुके हैं। किन्तु अभी अनेक विश्वविद्यालय इस दौड़ में पीछे हैं। देश में उच्च शैक्षिक पारिस्थितिकी तंत्र केंद्र, राज्यों और निजी संस्थाओं तक विस्तृत है। इसलिए नीति कार्यान्वयन को और आगे ले जाने के लिए व्यापक परामर्श की आवश्यकता है। परामर्श की यह प्रक्रिया क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर चल रही है।
सम्मेलन में बहु-विषयक और समग्र शिक्षा, कौशल विकास और रोजगार, भारतीय ज्ञान प्रणाली, शिक्षा का अंतरराष्ट्रीयकरण, डिजिटल सशक्तिकरण तथा ऑनलाइन शिक्षा, अनुसंधान, नवाचार और उद्यमिता, गुणवत्ता, रैंकिंग और प्रत्यायन, समान और समावेशी शिक्षा, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए शिक्षकों की क्षमता निर्माण जैसे विषयों पर चर्चा होगी। इससे ज्ञान के आदान-प्रदान को बढ़ावा मिलेगा। अंतः विषय विचार-विमर्श के माध्यम से एक नेटवर्क कायम होगा। शैक्षिक संस्थानों के सामने आने वाली चुनौतियों पर चर्चा होगी। इनके समाधान की योजना बनेगी। उच्च शिक्षा पर वाराणसी घोषणा को स्वीकार किया जाएगा।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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