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    23 करोड़ की 9 टंकियाँ बनी…फिर भी पानी की पूर्ति नहीं

    July 03, 2022

    • जनवरी में ही लेवल कम जाता है गंभीर बाँध का-जब तक एक और डेम नहीं बनेगा तब तक यही स्थिति रहेगी

    उज्जैन। शहर का विकास तेजी से हो रहा है तथा इंदौर रोड, देवास रोड, आगर रोड, मक्सी रोड, बडऩगर रोड पर कई कॉलोनियाँ विकसित हो गई है। पीएचई द्वारा करीब 23 करोड़ की लागत से 9 नई टंकियाँ भी बना ली गई है। बावजूद इसके पानी की समस्या पूरी तरह से हल नहीं हुई है और इन टंकियों को भरने वाला गंभीर बाँध जनवरी माह आते-आते सूखने लगता है। सिंहस्थ 2016 से शहर में 9 नई पानी की टंकियों का निर्माण शुरु किया गया था। इन टंकियों पर 23 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं। शहर में कई पानी की टंकियाँ पुरानी हो चुकी थी। इससे पेयजल आपूर्ति प्रभावित होती थी। इन टंकियों के बनने के बाद शहर के तीन हिस्सों में पेयजल की समस्या खत्म होने का दावा किया गया था। पुराने शहर में एमआर-5 के कानीपुरा और ढ़ाचा भवन में, वहीं जूना सोमवारिया और महेश नगर में टंकियों का निर्माण किया गया है। वहीं नये शहर के फ्रीगंज क्षेत्र में ऋषिनगर, अल्कापुरी, महेश विहार, पाश्र्वनाथ सिटी और उंडासा में टंकी का निर्माण किया गया है। दावा किया गया था कि महेश विहार की टंकी बनने से वार्ड क्रमांक 48 की सभी कॉलानियों विद्यापति नगर, अभिषेक नगर, परवाना नगर और नानाखेड़ा क्षेत्र के अन्य भागों में पेयजल की समस्या हल हो जाएगी लेकिन अभी भी विद्यापति नगर में लोग बोरिंग का खारा पानी पीने के लिए मजबूर है और पीने के पानी के लिए रोज उन्हें वॉटर केन खरीदनी पड़ रही थी।



    वहीं अल्कापुरी और ऋषिनगर और पाश्र्वनाथ कॉलोनी की टंकी बनने से देवास रोड पर जो नई कॉलोनियाँ विकसित हुई है उनमें पेयजल की समस्या पूरी तरह खत्म नहीं हुई है। इसमें पाश्र्वनाथ से लेकर अभिलाषा तक और उसके आग की कॉलोनियों में भी पानी नहीं पहुँच पाया है। वहीं कानीपुरा और ढांचा भवन की टंकी बनने से एमआर-5 और उसके आसपास के क्षेत्र में जो नई कॉलोनियां विकसित हुई है, वहां भी कॉलोनीवासियों को पीएचई अभी तक नल कनेक्शन नहीं दे पाया है और लोग बोरिंग तथा पानी की केन खरीद कर पीने को मजबूर हैं। इसके अलावा जूना सोमवारिया की टंकी बनने से केडी गेट और अन्य क्षेत्रों में पानी के प्रेशर की समस्या सुधरेगी लेकिन यहाँ भी काम धीमी गति से चलता रहा। 9 टंकियों के निर्माण में औसत प्रति टंकी ढाई करोड़ की लागत आई है। इस प्रकार ये सभी टंकियाँ लगभग 23 करोड़ रूपये खर्च कर बनाई जा गई है। दूसरी ओर 2250 एमसीएफटी की क्षमता वाला गंभीर बाँध आबादी बढऩे के बाद से 6 माह तक ही जल आपूर्ति कर पा रहा है। इसके पीछे वजह यह है कि 90 के दशक में शहर में 3 से 4 एससीएमटी प्रतिदिन पानी की आवश्यकता होती थी और तब डेम फुल होने पर पूरे साल लोगों को पानी मिलता था लेकिन अब आबादी साढ़े 6 लाख से ऊपर हो गई है और खपत भी रोज बढ़कर 8 से 10 एमसीएफटी तक पहुँच गई है। ऐसे में गंभीर बाँध सितम्बर महीने तक पूरा भरने के बावजूद नए साल में जनवरी माह आते-आते आधे से ज्यादा खाली हो जाता है और अप्रैल मई के महीने में जलसंकट की स्थिति बनती है और फरवरी महीने से ही एक दिन छोड़कर जलप्रदाय पिछले एक दशक से शहर में होता रहा है। कुल मिलाकर 23 करोड़ की 9 नई टंकियाँ बनने के बाद भी शहर की आधी के लगभग आबादी अभी भी बोरिंग, कुएँ और अन्य जल स्त्रोतों के भरोसे चल रही है।

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