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पर्यावरण संरक्षण का भारतीय चिंतन

June 27, 2022

– डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

सद्गुरु योगी वासुदेव जग्गी का सेव सॉयल अभियान भारतीय चिंतन के अनुरूप है। हमारे ऋषि युगद्रष्टा थे। उन्होंने पर्यावरण के महत्व का वैज्ञानिक आधार प्रतिपादित किया था। जबकि उस समय हमारी पृथ्वी प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण थी। पर्यावरण पर कोई संकट नही था। फिर भी हमारे ऋषि हजारों वर्ष के भविष्य को देख रहे थे। इसलिए उन्होंने प्रकृति पर्यावरण संरक्षण का विचार दिया। इसे जीवनशैली में समाहित करने की प्रेरणा दी। अथर्ववेद में कहा गया है- ‘माता भूमि’:, पुत्रो अहं पृथिव्या:’। अर्थात भूमि मेरी माता है और मैं उसका पुत्र हूं…। यजुर्वेद में कहा गया है- ‘नमो मात्रे पृथिव्ये, नमो मात्रे पृथिव्या:ठ। अर्थात माता पृथ्वी को नमस्कार है। मातृभूमि को नमस्कार है। वासुदेव जग्गी सतत यात्राएं कर लोगों को जागरूक कर रहे हैं। वह बता रहे हैं कि ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के लिए पर्यावरण संरक्षण जरूरी है। रासायनिक उर्वरकों के उपयोग से मिट्टी की उर्वरक शक्ति धीरे-धीरे कम होती जा रही है। जीव-जंतुओं और पेड़-पौधों की रक्षा करने के लिए मिट्टी की उर्वरा शक्ति बनाए रखने के प्रयास किए जाना जरूरी है। इस भारतीय चिंतन को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बहुत पहले समझ चुके थे। उन्होंने अपने पहले कार्यकाल में ही इस संबंध में भगीरथ प्रयास शुरू करते हुए सॉयल हेल्थ कार्ड योजना लागू की।

पारिस्थितिकी तंत्र में जैव-विविधता अत्यंत आवश्यक है। सद्गुरु अकेले मोटरसाइकिल से 100 दिवसीय यात्रा कर चुके हैं। अभियान में अब तक ढाई अरब लोगों से संपर्क किया गया। 74 देश मिट्टी को बचाने के लिए सहमत हो गए हैं। दुनिया में जब सभ्यता का विकास नहीं हुआ था, तब हमारे ऋषि पृथ्वी सूक्त की रचना कर चुके थे। पर्यावरण चेतना का ऐसा वैज्ञानिक विश्लेषण अन्यत्र दुर्लभ है। भारत के नदी व पर्वत तट ही प्राचीन भारत के अनुसंधान केंद्र थे। लेकिन पश्चिम की उपभोगवादी संस्कृति ने पर्यावरण को अत्यधिक नुकसान पहुंचाया है। इसलिए पर्यावरण दिवस मनाने की नौबत आई है। उनकी यह चेतना भी मात्र पांच दशक में बढ़ी है। भारत के ऋषि पांच हजार वर्ष पहले ही पर्यावरण संरक्षण का संदेश दे चुके थे। यह आज पहले से भी अधिक प्रासंगिक हो गया है।

ॐ द्यौ शांतिरन्तरिक्ष: शांति: पृथ्वी शांतिराप: शान्ति: रोषधय: शान्ति:। वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिब्रह्म शान्ति: सर्वं: शान्ति: शान्र्तिरेव शान्ति: सा मा शान्तिरेधि ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति: ॐ।।

भारतीय ऋषियों ने नदियों को दिव्य मानकर प्रणाम किया। जल में देवत्त्व देखा। उसका सम्मान किया। पृथ्वी सूक्ति की रचना की। वस्तुतः यह सब प्रकृति संरक्षण का ही विचार था। हमारी भूमि सुजला सुफला रही। भूमि को प्रणाम किया। वृक्षों को प्रणाम किया। उपभोगवादी संस्कृति ने इसका मजाक बनाया। आज वही लोग स्वयं मजाक बन गए। प्रकृति कुपित है। जल प्रदूषित है। वायु में प्रदूषण है। इस संकट से निकलने का रास्ता विकसित देशों के पास नहीं है। इसका समाधान केवल भारतीय चिंतन से हो सकता है। विश्व की जैव विविधता में भारत की सात प्रतिशत भागीदारी है। हमारे ऋषियों ने आदिकाल में ही पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया था। वह युग दृष्टा थे। वह जानते थे कि प्रकृति के प्रति उपभोगवादी दृष्टिकोण से समस्याएं ही उतपन्न होंगी। भारत का इतिहास और संस्कृति दोनों जैव विविधता के महत्व को समझते हैं।

अथर्ववेद में विभिन्न औषधियों का उल्लेख है। जैव विविधता को बढ़ावा देना और अधिक से अधिक पेड़ और औषधीय पौधे लगाना हम सबका कर्तव्य है। जैव विविधता से हमारी पारिस्थितिकीय तंत्र का निर्माण होता है। जो एक-दूसरे के जीवनयापन में सहायक होते हैं। जैव विविधता पृथ्वी पर पाई जाने वाली जीवों की विभिन्न प्रजातियों को कहा जाता है। भारत अपनी जैव विविधता के लिए विश्व विख्यात है। भारत सत्रह उच्चकोटि के जैव विविधता वाले देशों में से एक है।

भारत की भौगोलिक स्थिति देशवासियों को विभिन्न प्रकार के मौसम प्रदान करती है। भारत में सत्रह कृषि जलवायु जोन हैं, जिनसे अनेक प्रकार के खाद्य पदार्थ प्राप्त होते हैं। देश के जंगलों में विभिन्न प्रकार के नभचर,थलचर एवं उभयचर प्रवास करते हैं। इनमें रहने वाले पक्षी, कीट एवं जीव जैव विविधता को बढ़ाने में सहायक होते हैं। प्रकृति मनुष्य एवं जीव जन्तुओं के जीवन के प्रारम्भ से अंत तक के लिए खाने पीने,रहने आदि सभी की व्यवस्था उपलब्ध कराती है। मनुष्य खेती कर भूमि से अपने भोजन के लिए अन्न एवं सब्जियां उगाता है। अस्वस्थ होने पर प्रकृति प्रदत्त औषधियों से उपचार करता है। भारत वैदिक काल से ही अपनी औषधीय विविधता के लिए प्रसिद्ध रहा है। रामायण में भी बरगद,पीपल,अशोक, बेल एवं आंवले का उल्लेख है। भारत को तो इसके लिए कहीं अन्यत्र से प्रेरणा लेने की भी आवश्यकता नहीं है। हमको तो केवल अपनी विरासत को समझना होगा। भारतीय जीवनशैली में ही पर्यावरण संरक्षण का विचार समाहित है। इसमें वृक्ष काटना पाप है। वृक्ष काटना हो तो उससे अधिक पौधे लगाने का नियम बनाया गया। पौधरोपण को पुण्य माना गया। अनेक वृक्ष और पौधों की पूजा की जाती है। आधुनिक विज्ञान भी इनके महत्व को स्वीकार कर रहा है।ऐसे में भारतीय जीवनशैली की तरफ लौटना होगा। भारत ही नहीं दुनिया में पर्यवरण संरक्षण इसी चिंतन से संभव होगा। मिट्टी में पर्याप्त जैविक तत्व का होना अपरिहार्य है। वैज्ञानिक तरीके से मिट्टी संरक्षण का कार्य करना जरूरी है।

सतगुरु वासुदेव कहते हैं कि मशीनों ने खेतों से पशुओं को बाहर कर दिया है। यदि इन्हें वापस खेतों में लेकर नहीं आए तो अगले पैंतालीस वर्षों में घातक परिणाम होंगे। खेतों से पेड़ों के हटने से मिट्टी का कटाव बहुत बढ़ा है। वृक्षों को वापस फार्म लैंड में लाना जरूरी है। न्यूनतम तीन प्रतिशत जैविक खेती का होना अत्यावश्यक है। मिट्टी के संरक्षण के अभाव में प्रति वर्ष सत्ताइस हजार प्रजातियां लुप्त हो रही हैं। मिट्टी के बचाव के लिए प्रतिबद्धता पूर्वक कार्य करने की जरूरत है। अगले वर्ल्ड इकानॉमिक फोरम में मृदा संरक्षण मुख्य एजेंडा रहेगा। मृदा संरक्षण के लिए दीर्घकालीन योजनाएं तैयार करनी होंगी। योगी आदित्यनाथ ने कहा कि भाजपा सरकार ने छोटी-बड़ी साठ नदियों को पुनर्जीवित किया है। नमामि गंगे अभियान चलाया गया। पांच साल में सौ करोड़ पौधे रोपे गए।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने रामवन गमन मार्ग को वन महोत्सव अभियान में शामिल किया। इस मार्ग पर त्रेता युग कालीन वाटिकाओं की स्थापना होगी। त्रेता युग की वाटिका और उपवन भी वर्तमान पीढ़ी में पर्यावरण चेतना का संचार करेंगी। महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में अयोध्या से चित्रकूट तक राम वन गमन मार्ग में मिलने वाली 88 वृक्ष प्रजातियों एवं वनों एवं वृक्षों के समूह का उल्लेख है। जो प्रजातियां उपलब्ध हैं ,उनको रोपित किया जा रहा है। भारत की प्राचीन ऋषि परंपरा से संबंधित पंचवटी, नवग्रह तथा नक्षत्र वाटिका के पवित्र पौधों का रोपण हो रहा है।. ग्रीन फील्ड पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे औद्योगिक गलियारा बनने के साथ ही पर्यावरण संरक्षण में भी योगदान करेगा। उत्तर प्रदेश सरकार 100 वर्ष से अधिक पुराने वृक्षों को हेरिटेज वृक्ष के रूप में मान्यता दे रही है।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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