अहमदाबाद: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को गुजरात के पंचमहल जिले के प्रसिद्ध तीर्थ स्थल पावागढ़ कालिका मंदिर का लोकार्पण किया. इस मंदिर और उसके परिसर का पुनर्विकास किया गया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस अवसर पर ध्वजारोहण किया. पुनर्विकास के दौरान पहले पावागढ़ पहाड़ी की चोटी को चौड़ा करके एक बड़े परिसर की नींव रखी गई, फिर परिसर की पहली और दूसरी मंजिल पर सहायक सुविधाएं खड़ी की गईं. मूल गर्भगृह को बरकरार रखा गया है और पूरे मंदिर को फिर से बनाया गया है. मुख्य मंदिर और खुले क्षेत्र को चौड़ा किया गया है. माताजी के पुराने मंदिर में जहां ‘शिखर’ के स्थान पर एक दरगाह थी. दरगाह को एक सौहार्दपूर्ण बस्ती में स्थानांतरित कर दिया गया है और एक नए ‘शिखर’ का निर्माण किया गया है, जिस पर लगे खंभे पर ध्वज पताका लगा है. इसी ध्वज को फहराकर पीएम मोदी ने मंदिर का लोकार्पण किया.
5 दशक बाद पावागढ़ काली मंदिर के शिखर पर फहरा ध्वज
पीएम मोदी ने इस मौके पर अपने संबोधन में कहा, ‘सपना जब संकल्प बन जाता है और संकल्प जब सिद्धि के रूप में नजर के सामने होता है. इसकी आप कल्पना कर सकते हैं. आज का यह पल मेरे अंतर्मन को विशेष आनंद से भर देता है. कल्पना कर सकते हैं कि 5 शताब्दी के बाद और आजादी के 75 साल के बाद तक मां काली के शिखर पर ध्वजा नहीं फहरी थी, आज मां काली के शिखर पर ध्वजा फहरी है. यह पल हमें प्रेरणा और ऊर्जा देता है और हमारी महान संस्कृति एवं परंपरा के प्रति हमें समर्पित भाव से जीने के लिए प्रेरित करता है. आज सदियों बाद पावागढ़ मंदिर में एक बार फिर से मंदिर के शिखर पर ध्वज फहरा रहा है. यह शिखर ध्वज केवल हमारी आस्था और आध्यात्म का ही प्रतीक नहीं है! यह शिखर ध्वज इस बात का भी प्रतीक है कि सदियां बदलती हैं, युग बदलते हैं, लेकिन आस्था का शिखर शाश्वत रहता है.’
मां काली से पीएम मोदी ने मांगा जनसेवा करने का आशीर्वाद
पीएम मोदी ने कहा, ‘अयोध्या में आपने देखा कि भव्य राम मंदिर आकार ले रहा है, काशी में विश्वनाथ धाम हो या मेरे केदार बाबा का धाम हो, आज भारत के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक गौरव पुनर्स्थापित हो रहे हैं. आज नया भारत अपनी आधुनिक आकांक्षाओं के साथ साथ अपनी प्राचीन पहचान को भी जी रहा है, उन पर गर्व कर रहा है. आज का यह अवसर सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास का भी प्रतीक है. अभी मुझे मां काली मंदिर में ध्वजारोहण और पूजा-अर्चना का भी अवसर मिला है. मेरा जो भी सामर्थ्य है, मेरे जीवन में जो कुछ भी पुण्य हैं, वह मैं देश की माताओं-बहनों के कल्याण के लिए, देश के लिए समर्पित करता रहूं. मां काली का आशीर्वाद लेकर विवेकानंद जी जनसेवा से प्रभुसेवा में लीन हो गए थे. मां, मुझे भी आशीर्वाद दो कि मैं और अधिक ऊर्जा के साथ, और अधिक त्याग और समर्पण के साथ देश के जन-जन का सेवक बनकर उनकी सेवा करता रहूं.’
पावागढ़ में आध्यात्म, इतिहास, प्रकृति और कला-संस्कृति भी है
प्रधानमंत्री ने कहा, ‘माता के दरबार का कायाकल्प और ध्वजारोहण, मैं समझता हूं कि हम भक्तों और शक्ति उपासकों के लिए इससे बड़ा उपहार क्या हो सकता है. मां के आशीर्वाद के बिना यह संभव भी कहां हो सकता है. पहले पावागढ़ की यात्रा इतनी कठिन थी कि लोग कहते थे कि जीवन में एक बार माता के दर्शन हो जाएं. आज यहां बढ़ रही सुविधाओं ने मुश्किल दर्शनों को सुलभ कर दिया है. माताएं, बहनें, बुजुर्ग, बच्चे दिव्यांग हर कोई मां के चरणों में आकर अपनी भक्ति का, मां के प्रसाद का सहज लाभ ले सकते हैं. पंचमहल के लोगों से मेरा आग्रह है कि बाहर से जो भी श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए आएं, उनको आप अपने राज्य के अन्य पवित्र तीर्थस्थानों पर जाने के लिए अवश्य कहिएगा. किसी भी क्षेत्र में पर्यटन बढ़ता है तो रोजगार भी बढ़ता है, इंफ्रास्ट्रकचर का भी विकास होता है. तीर्थों का ये विकास केवल आस्था का ये विषय तक ही सीमित नहीं है, बल्कि हमारे तीर्थ समाज की गतिशीलता और राष्ट्र की एकता के भी एक बड़े महत्वपूर्ण जीवंत प्रतीक हैं. इन तीर्थों और मंदिरों में आने वाले श्रद्धालु अपने साथ कई अवसर भी लेकर आते हैं. पावागढ़ में आध्यात्म भी है, इतिहास भी है, प्रकृति भी है, कला-संस्कृति भी है. यहां एक ओर मां महाकाली का शक्तिपीठ है, तो दूसरी ओर जैन मंदिर की धरोहर भी है. यानी, पावागढ़ एक तरह से भारत की ऐतिहासिक विविधता के साथ सर्वधर्म समभाव का एक केंद्र रहा है.’
मंदिर का शिखर बनाने के लिए शिफ्ट की गई पीर सदनशाह दरगाह
गुजरात के पंचमहल जिले में पावागढ़ पहाड़ी की चोटी पर कालिका माता का मंदिर बना हुआ है. इस मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में हुआ था. आक्रांता सुल्तान महमूद बेगड़ा ने 15वीं सदी में चम्पानेर पर हमले के दौरान इस मंदिर के शिखर को ध्वस्त कर दिया था. इसके साथ ही वहां पर पीर सदनशाह की दरगाह बना दी गई थी. चूंकि मंदिर के शिखर पर दरगाह मैनेजमेंट का कब्जा था. इसलिए इतने सालों तक वहां पर कोई शिखर या खंभा भी नहीं लगाया जा सका था, जिससे मंदिर की पताका फहराई जा सके. ऐतिहासिक महत्व का यह मंदिर चम्पानेर-पावागढ़ पुरातात्विक पार्क का हिस्सा है. यूनेस्को ने इस मंदिर को विश्व विरासत की सूची में शामिल कर रखा है. कालिका मंदिर के ट्रस्टी अशोक पांड्या ने बताया कि मंदिर के शिखर से दरगाह को शिफ्ट करने के लिए मुस्लिम पक्ष से कई दौर की बातचीत की गई. दरगाह कमेटी के पदाधिकारियों ने इस अनुरोध को मान लिया. मंदिर का ऊपरी शिखर खाली कर, पीर सदनशाह की दरगाह को पास की एक सौहार्दपूर्ण बस्ती में शिफ्ट कर दिया गया, जिसके बाद मंदिर का पताका फहराने के लिए खंभा लगाने का मार्ग प्रशस्त हो सका. पीएम मोदी ने 500 वर्षों के बाद कालिका मंदिर का शिखर ध्वज फहराया.
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