– डॉ. वेदप्रताप वैदिक
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने रोजगार के बारे में जो घोषणाएं की हैं, यदि उन्हें वास्तव में अमली जामा पहनाया जा सके तो लोगों को काफी राहत मिलेगी। मोदी ने कहा है कि अगले डेढ़ साल में 10 लाख लोगों को सरकारी नौकरियां मिलेगी और राजनाथ सिंह ने तो भारतीय सेना में भर्ती और सेवाओं के नियम ही बदल दिए हैं।
इस समय देश में करोड़ों लोग पूर्णरूपेण बेरोजगार हैं और उससे भी ज्यादा लोग अर्धरोजगार हैं। यानी उन्हें पूरे समय कोई काम मिलता ही नहीं है। यदि 10 लाख को रोजगार मिल जाए तो यह तो ऊँट के मुंह में जीरे के समान ही होगा। सरकार की दृष्टि अपनी नौकरियों तक ही सीमित है। केंद्र सरकार के पास 40 लाख पद हैं। उनमें से लगभग 9 लाख खाली पड़े हैं। उसका कर्तव्य क्या इतना ही है कि वह इन्हें भर दे? वह तो है ही, उनसे अलग नए गैर-सरकारी रोजगार पैदा करना उससे भी ज्यादा जरूरी है।
सरकारी कर्मचारियों को वेतन, भत्ता और पेंशन आदि तो पूरे-पूरे मिलते रहते हैं लेकिन वे अपना काम कितना करते हैं, इस पर कड़ी निगरानी का कोई तरीका हमारे यहां नहीं है जबकि चीन में मैंने कई बार देखा कि सरकारी और प्राइवेट कंपनियां अपने कर्मचारियों से डटकर काम लेती हैं। इसीलिए भारत से पिछड़ा हुआ चीन हमसे पांच गुना ज्यादा मजबूत हो गया है।
सरकारी नौकरियों की संख्या जरूर बढ़े लेकिन उनकी उपयोगिता के मानदंड काफी सख्त होने चाहिए और हर पांच साल में उनकी समीक्षा होनी चाहिए। जो भी अयोग्य पाया जाए, उस कर्मचारी को छुट्टी दी जानी चाहिए। फौज में नौकरियों के नए नियम बनाने के लिए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह बधाई के पात्र हैं लेकिन कुछ अनुभवी अफसरों ने चिंता भी व्यक्त की है।
इस साल 46 हजार नौजवानों को फौज में भर्ती किया जाएगा। उनकी उम्र 17.5 से 21 साल तक होगी। सभी जवानों को 4 साल तक फौज में रहना होगा। 4 साल बाद सिर्फ 25 प्रतिशत जवान वे ही रह पाएंगे, जो बहुत योग्य पाए जाएंगे। शेष 75 प्रतिशत जवानों को सेवा-निवृत्त कर दिया जाएगा। उन्हें पेंशन भी नहीं मिलेगी लेकिन नौकरी छोड़ते वक्त उन्हें 11 लाख 71 हजार रु. मिलेंगे, जिनसे वे कोई नया काम शुरू कर सकेंगे। उन्हें सरकार विभिन्न क्षेत्रों में प्राथमिकता भी दिलवाती रहेगी।
इस नए प्रावधान पर एक प्रतिक्रिया यह भी है कि सिर्फ चार साल की नौकरी के लिए कौन आगे आएगा? उस चारवर्षीय अनुभव का फायदा अन्य नौकरियों में कुछ काम देगा या नहीं? ये प्रश्न तो जायज हैं लेकिन इस नई पहल के कई फायदे हैं। एक तो फौज में नौजवानों की संख्या बढ़ेगी और सदा कायम रहेगी। सरकार का पैसा जो दीर्घावधि वेतन और पेंशन पर खर्च होता है, वह बचेगा। इसके अलावा नई सैन्य तकनीकों के कारण यों भी सारे देश अपने फौजियों के संख्या-बल को घटा रहे हैं। चीन ने अपनी सेना को 45 लाख से घटाकर 20 लाख कर दिया है। अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और इजराइल में फौजियों की कार्यवधि को काफी सिकोड़ दिया गया है। अब भारतीय फौज में जो भर्तियां होंगी, अंग्रेजों की बनाई जातीय रेजिमेंटों में नहीं होगी। यह भी बड़ा सुधार है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और जाने-माने स्तंभकार हैं।)
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