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दो हजार करोड़ की जमीन 382 करोड़ में ही नीलाम करने के प्रयास

June 14, 2022

मुंबई डीआरटी 19 जून को जारी करेगा हुकुमचंद मिल की साढ़े 42 एकड़ जमीन की ऑनलाइन नीलामी के टेंडर, आज हाईकोर्ट में भी होगी सुनवाई
इंदौर।
सालों से हुकुमचंद मिल (Hukumchand Mill) के मजदूर अपनी जमा पूंजी पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। आज हाईकोर्ट (High Court) में उनकी ओर से दायर याचिका पर सुनवाई भी होना है। दूसरी तरफ पिछले दिनों हुई सुनवाई में जमीन नीलामी के संबंध में जानकारी मांगी गई थी, जिस पर मुंबई डीआरटी (Mumbai DRT) की ओर से बताया गया कि अभी 19 जून को ऑनलाइन टेंडर (Online Tender) जारी किए जाएंगे और 26 जून को नीलामी (Auction) की प्रक्रिया होना है। दो हजार करोड़ रुपए से अधिक कीमत की साढ़े 42 एकड़ मिल की इस जमीन की कीमत मुंबई डीआरटी (Mumbai DRT) ने मात्र 382 करोड़ ही आंकी है।


हुकुमचंद मिल (Hukumchand Mill) की साढ़े 42 एकड़ जमीन का हाईकोर्ट निर्देश पर ही शासन भू-उपयोग परिवर्तन भी करवा चुका है। पहले यह जमीन सिर्फ औद्योगिक उपयोग (Industrial Use) की थी, जिसके बाद नगर तथा ग्राम निवेश ने भू-उपयोग परिवर्तन की प्रक्रिया पूरी करते हुए आवासीय सहवाणिज्यिक उपयोग निर्धारित कर दिया, जिसके चलते जमीन की कीमत अब दो हजार करोड़ रुपए से अधिक की हो गई। मगर आश्चर्य की बात है कि मुंबई डीआरटी (Mumbai DRT) ने इसकी कीमत बढ़ाने की बजाय उलटा घटा दी और अब 382 करोड़ रुपए तय की है। जबकि पूर्व में जो ऑनलाइन नीलामी (Auction) की गई उसमें 400 करोड़ रुपए तक कीमत तय की गई थी। जबकि उस वक्त भू-उपयोग भी नहीं बदला था। इंदौर में बीते एक साल में रियल इस्टेट कारोबार में तेजी भी आई और सभी जगह जमीनों की कीमतें बढ़ गई। हुकुमचंद मिल (Hukumchand Mill) की जमीन तो बीच शहर में मौजूद है। हुकुमचंद मिल मजदूर संघर्ष समिति के नरेन्द्र श्रीवंश और हरनामसिंह धारीवाल का आरोप है कि मुंबई डीआरटी द्वारा जमीन की कीमत कम आंकी गई है। जबकि 4 से 5 गुना अधिक कीमत की यह बेशकीमती जमीन है। पिछले दिनों नगर निगम ने अतिक्रमण भी हाईकोर्ट की फटकार के बाद हटाए। हालांकि मौके पर अभी भी अतिक्रमण कायम है। पिछले दिनों भोपाल से आए वरिष्ठ अधिकारी के साथ निगम आयुक्त व अन्य ने मिल परिसर का अवलोकन भी किया था। मजदूर नेताओं का कहना है कि 190 करोड़ रुपए की राशि मजदूरों की बकाया है जिसको लेकर सालों से संघर्ष कर रहे हैं और आज भी हाईकोर्ट की सिंगल बेंच में सुनवाई होना है। दूसरी तरफ मुंबई डीआरटी ऑनलाइन जमीन की नीलामी कर रहा है। पिछली सुनवाई के दौरान उनके वकीलों ने जानकारी दी थी कि अभी 19 जून को ऑनलाइन नीलामी की सूचना अखबारों में प्रकाशित कराई जाएगी। अब देखना यह है कि हुकुमचंद मिल की जमीन अब और कितने में नीलाम हो पाती है।


5 साल पहले निगम 1500 करोड़ आंक चुका है कीमत
हुकुमचंद मिल (Hukumchand Mill)  की जमीन का स्वामित्व चूंकि हाईकोर्ट ही नगर निगम का साबित कर चुकी है और निगम ने 2017 में हाईकोर्ट में जो वैल्यूएशन रिपोर्ट जमीन को लेकर प्रस्तुत की उसमें इसकी कीमत 1500 करोड़ रुपए आंकी गई थी। जबकि 5 सालों में जमीन के भाव और बढ़ गए और अब दो हजार करोड़ रुपए से अधिक की जमीन हो चुकी है। जब भी मुंबई डीआरटी ने इसकी कीमत 400 करोड़ रुपए आंकी थी, जिसे निगम ने कम बताया था। यह मामला सुप्रीम कोर्ट भी गया, क्योंकि शासन ने मिल की जमीन पर अपना दावा जताया था। हालांकि निगम ने भी सुप्रीम कोर्ट में पलटी मारते हुए अपने मालिकाना हक को त्यागते हुए शासन की जमीन होने की बात कही।


कांग्रेस प्रत्याशी ने किया मजदूरों की मदद का दावा
सालों से मुख्यमंत्री से लेकर क्षेत्रीय विधायक मंत्री मजदूरों को झूठा आश्वासन देते आए हैं। अब निगम चुनाव (Corporation Election) के मद्देनजर कांग्रेस प्रत्याशी संजय शुक्ला (Sanjay Shukla) भी संघर्ष समिति के पदाधिकारियों से मिलने पहुंचे और वायदा किया कि महापौर बनने के बाद वे मजदूरों को उनके अधिकार का पैसा प्राथमिकता से दिलवाएंगे और इसका वादा कांग्रेस के वचन-पत्र में भी करेंगे। शुक्ला ने कहा कि कांग्रेस की कमलनाथ सरकार ने ही मजदूरों को भुगतान करने की पहल शुरू की और जमीन का भू-उपयोग भी बदला। मगर निगम ने जमीन पर अपना अधिकार जताने के साथ मजदूरों को पैसा चुकाने से मुंह मोड़ लिया जो कि मजदूरों के साथ विश्वासघात है।


फुटबॉल बने मजदूर सालों से इधर से उधर खा रहे टल्ले
मिल बंद होने के बाद से ही मजदूर अपनी जमा पूंजी पाने के लिए संघर्र्ष कर रहे हैं। उनकी स्थिति फुटबॉल की तरह हो गई। कांग्रेस-भाजपा के नेताओं से तो आए दिन आश्वासन मिलते रहे, वहीं मुख्यमंत्री भी राहत नहीं दिलवा पाए और कोर्ट-कचहरी भी बीते कई वर्षों से चल रही है। हाईकोर्ट के निर्देश पर ही 50 करोड़ रुपए की राशि मजदूरों को बांटने के लिए शासन ने दी थी। मगर अब जो 170 करोड़ रुपए और बचे हैं उसके लिए मजदूर इधर से उधर टल्ले ही खा रहे हैं। इस दौरान मिल मजदूरों की मौत भी हो गई और यह सिलसिला जारी है। अब देखना यह है कि निगम चुनाव में उम्मीदवारों द्वारा मजदूरों से किए जाने वाले वायदे भी पूरे होंगे या नहीं।

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