नई दिल्ली: किसी भी देश की आर्थिक स्थिति का एक प्रमुख इंडीकेटर उसकी करेंसी होती है. वैश्विक हालातों के चलते पिछले कुछ महीनों से अमेरिकी डॉलर की ताकत बढ़ती जा रही है और उसके मुकाबले भारत की करेंसी रुपया गिरता जा रहा है. सोमवार सुबह शुरुआती कारोबार में रुपया डॉलर के मुकाबले अब के सबसे निम्नतम स्तर 78 के भी नीचे चला गया.
सोमवार को रुपया 78.14 प्रति डॉलर पर खुला, जोकि अपनी शुक्रवार की क्लोजिंग से 0.38 फीसदी कमजोर है. ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, आईएफए (IFA) ग्लोबल ने रविवार को अपने एक नोट में कहा, “कमजोर घरेलू बाजार, क्रूड ऑयल की बढ़ती कीमत, डॉलर की मजबूती और फॉरेन कैपिटल का आउटफ्लो से घरेलू करेंसी अगले सप्ताह भी दबाव में नजर आ सकती है.”
अमेरिकी डॉलर के मुकाबले शुक्रवार को भारतीय करेंसी 1 पैसे की गिरावट के साथ 77.85 (अनंतिम) के नए सर्वकालिक निचले स्तर पर बंद हुई थी. कारोबारी सत्र के दौरान, घरेलू मुद्रा ने लाइफ-टाइम निचले स्तर 77.93 को छू लिया था. सप्ताह के दौरान ग्रीनबैक के मुकाबले रुपया 21 पैसे टूट गया है. हालांकि डॉलर इंडेक्स 0.20 फीसदी बढ़कर 103.43 पर पहुंच गया.
अब आगे क्या रहेगी करेंसी की चाल?
एक खबर के मुताबिक, विश्लेषकों का रविवार को कहा था कि कमजोर फंडामेंटल के कारण रुपया अगले कुछ सत्र में डॉलर के मुकाबले 78 के स्तर को पार कर सकता है. विश्लेषकों की ये बात सच होने में एक दिन भी नहीं लगा और सोमवार खुलते ही रुपया 78 के नीचे जा चुका था.
विश्लेषकों ने कहा था कि कमजोर फंडामेंटल के कारण आने वाले दिनों में रुपया गिर सकता है. बढ़ी हुई कमोडिटी की कीमतें, विशेष रूप से क्रूड, व्यापार घाटे को और बढ़ा सकती हैं, जो मई 2022 में पहले ही रिकॉर्ड 23.3 बिलियन डॉलर हो गई है. इस बीच, आक्रामक फेडरल रिजर्व रेट में बढ़ोतरी से फॉरेन फंड्स ज्यादा निकाले जा सकते हैं, जिससे पेमेंट्स साइकिल (भुगतान चक्र) बैलेंस बड़ा हो सकता है.
आनंद राठी शेयर्स एंड स्टॉक ब्रोकर्स के रिसर्च एनालिस्ट (कमोडिटीज़ एंड करेंसीज फंडामेंट्ल) जिगर त्रिवेदी ने कहा कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा किया गया हस्तक्षेप रुपये की कैपिंग कर रही हैं.
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