– रमेश सर्राफ धमोरा
देश की आर्थिक तरक्की में साइकिल का अहम योगदान है। आजादी के बाद से ही साइकिल देश में यातायात व्यवस्था का अनिवार्य हिस्सा रही है। देश की युवा पीढ़ी को अब साइकिल के बजाय मोटरसाइकिल ज्यादा अच्छी लगने लगी है। बावजूद इसके साइकिल आज भी हमारे जीवन का अभिन्न अंग है। इसलिये भारत में साइकिल की अहमियत कभी खत्म नहीं हो सकती। चीन के बाद आज भारत दुनिया में सबसे ज्यादा साइकिल बनाने वाला देश है।
03 जून, 2018 को विश्व में पहला विश्व साइकिल दिवस मनाया गया। तब से दुनिया में प्रतिवर्ष साइकिल दिवस मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने परिवहन के सामान्य, सस्ते, विश्वसनीय, स्वच्छ और पर्यावरण अनुकूल साधन के रूप में इसे बढ़ावा देने के लिए विश्व साइकिल दिवस को मनाने की घोषणा की थी। बच्चे सबसे पहले साइकिल चलाना ही सीखते हैं। इसलिये बचपन में हम सभी ने साइकिल चलाई है। पहले के जमाने में जिसके पास साइकिल होती थी वह बहुत प्रतिष्ठित व्यक्ति माना जाता था। गांव के लोग जब कभी शहरों में जाते थे। तब लोगों को साइकिल चलाते हुए देखते थे और फिर वे खुद भी धीरे-धीरे साइकिल चलाना सीख जाते थे। पहले शहरों में किराये पर भी साइकिल मिलती थी। देश में लॉकडाउन के दौरान दूसरे प्रदेशों में कमाने गए लाखों लोगों को अपने घर जाने के लिए कोई साधन नहीं मिला तो वह साइकिल से 1000-1500 किलोमीटर की दूरी तय कर अपने घर पहुंचे। संकट के समय साइकिल ही उनके घर पहुंचने का एकमात्र साधन बनी। लॉकडाउन के दौरान लाखों लोगों के घर पहुंचने का सबसे उपयोगी साधन बनने से लोगों को यह बात अच्छी तरह समझ में आ गई कि साइकिल आज भी आम लोगों का सबसे सस्ता और सुलभ साधन है।
1947 में आजादी के बाद अगले कई दशक तक देश में साइकिल यातायात व्यवस्था का अनिवार्य हिस्सा रही है। 1960 से लेकर 1990 तक भारत में ज्यादातर परिवारों के पास साइकिल थी। यह व्यक्तिगत यातायात का सबसे ताकतवर और किफायती साधन था। गांवों में किसान साप्ताहिक मंडियों तक सब्जी और दूसरी फसलों को साइकिल से ही ले जाते थे। दूध की सप्लाई गांवों से पास से कस्बाई बाजारों तक साइकिल के जरिये ही होती थी। डाक विभाग का तो पूरा तंत्र ही साइकिल के बूते चलता था। आज भी डाकिया साइकिल से चिट्ठियां बांटते हैं। अब तो विभिन्न प्रकार के फीचर से लैस गियर वाली कीमती साइकिलें बाजार में आ गई हैं। पहले लोगों के पास सामान्य साइकिल ही हुआ करती थी। उनके पीछे एक कैरियर लगा रहता था। उस पर व्यक्ति अपना सामान रख लेता था और जरूरत पड़ने पर दूसरे व्यक्ति को बैठा लेता था। कई बार तो साइकिल सवार आगे लगे डंडे पर भी अपने साथी को बिठाकर 3-3 लोग साइकिल पर सवारी करते थे। साइकिल से वातावरण में किसी तरह का प्रदूषण नहीं होता था। पेट्रोल डलवाने का झंझट भी नहीं था। साइकिल उठाई, पैडल मारे और पहुंच गए अगले स्थान पर। पहले के जमाने में साइकिल के आगे एक छोटी सी लाइट भी लगी रहती थी। उसका डायनुमा पीछे के टायर से जुड़ा रहता था। साइकिल सवार जितनी तेजी से साइकिल चलाता उतनी ही अधिक लाइट की रोशनी होती थी।
अब शहरों में मोटरसाइकिल का शौक बढ़ रहा था। गांवों में भी इस मामले में बदलाव की शुरुआत हो चुकी थी। इसके बावजूद भारत में साइकिल की अहमियत खत्म नहीं हुई है। 1990 के बाद से साइकिलों की बिक्री में बढ़ोतरी आई है, लेकिन ग्रामीण इलाकों में इसकी बिक्री में गिरावट आई है। दरअसल 1990 से पहले जो भूमिका साइकिल की थी। उसकी जगह गांवों में मोटरसाइकिल ने ले ली है। दो साल पहले विश्व साइकिल दिवस के दिन ही भारत की सबसे बड़ी साइकिल निर्माता कम्पनी एटलस बंद हो गई थी। प्रतिवर्ष 40 लाख साइकिल का उत्पादन करने वाली भारत की सबसे बड़ी और दुनिया की जानी मानी कम्पनी एटलस के बंद होने से साइकिल उद्योग को बड़ा धक्का लगा है। एटलस की स्थापना 1951 में हुई थी। इसका कई विदेशी साइकिल निर्माता कंपनियों के साथ गठबंधन था। इस कारण एटलस साइकिल दुनिया की श्रेष्ठ साइकिलों में शुमार होती थी। अमेरिका के बड़े-बड़े डिपार्टमेंट स्टोर में भी एटलस की साइकिलें बेची जाती थी।
भारत में विकसित की जा रही ज्यादातर आधारभूत आधुनिक संरचना मोटर-वाहनों को ही सुविधा प्रदान करने के लिए बन रही हैं। साइकिल जैसे पर्यावरण-हितैषी वाहन को नजरअंदाज किया जा रहा है। जबकि शहरी व ग्रामीण परिवहन में भी साइकिल का महत्वपूर्ण स्थान है। खासतौर से कम आय वर्ग के लोगों के लिए साइकिल उनके जीविकोपार्जन का एक सस्ता, सुलभ और जरूरी साधन है। यह इसलिए भी कि भारत का कम आय वर्ग वाला अपनी कमाई से प्रतिदिन सौ-पचास रुपये परिवहन पर खर्च करने में सक्षम नहीं हैं। केंद्र सरकार अपनी साइकिल परिवहन व्यवस्था में कुछ जरूरी मूलभूत सुधार करके आम और खास लोगों को साइकिल चलाने के लिए प्रेरित कर सकती है। कई राज्य सरकारें स्कूली छात्र-छात्राओं को बड़ी संख्या में साइकिल वितरण कर रही हैं। इससे साइकिल सवारों की संख्या में वृद्धि हुई है। द एनर्जी ऐंड रिसर्च इंस्टीट्यूट के अनुसार पिछले एक दशक में साइकिल चालकों की संख्या ग्रामीण क्षेत्रों में 43 फीसदी से बढ़कर 46 फीसदी हुई है, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह संख्या 46 फीसदी से घटकर 42 फीसदी पर आ गई है। इसकी मुख्य वजह साइकिल सवारी का असुरक्षित होना ही पाया गया है।
अब समय आ गया है कि शहर एवं गांवों में साइकिल चालकों को बड़े स्तर पर प्रोत्साहन देने का, ताकि बढ़ते प्रदूषण को कुछ हद तक रोका जा सके। शहरों में साइकिल मार्गों का निर्माण किया जाना चाहिए। हमें विश्व साइकिल दिवस को महज सांकेतिक कवायद के रूप में नहीं देखना चाहिए। हमें मन ही मन इस बात का संकल्प लेना चाहिए कि हम रोजमर्रा के काम साइकिल से पूरा करेगें। बढ़ते प्रदूषण की वजह से दुनिया के बहुत से देशों में साइकिल चलाने को बढ़ावा दिया जा रहा है। नीदरलैंड की राजधानी एम्सटर्डम में सिर्फ साइकिल चलाने की ही अनुमति है। भारत में भी दिल्ली, मुंबई, पुणे, अहमदाबाद और चंडीगढ़ में सुरक्षित साइकिल लेन का निर्माण किया गया है। उत्तर प्रदेश में भी एशिया का सबसे लंबा साइकिल हाइवे बना है। इसकी लंबाई करीबन 200 किलोमीटर से अधिक है।
(लेखक, हिन्दुस्थान समाचार से संबध हैं।)
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