-स्वाती सिंह
मानव जाति खुद का विकास करने में सक्षम है, यदि उसको कोई उसके बल की याद दिलाए। वह पुरुष हो या महिला सब खुद में एक नई कृति, नई सोच, नया कार्य करने की क्षमता रखते हैं। महिलाओं के बारे में तो इसे और सबल ढंग से कहा जा सकता है। महिलाओं को परिवार व समाज में माहौल मिल जाए तो कोई ऐसा काम नहीं है, जिसे वे पुरुषों की अपेक्षा बेहतर न कर सकें। वर्तमान सरकार यही कर रही है, महिलाओं को आत्मबल देने का काम।
दरअसल जब तक महिलाओं का विकास नहीं होता, तब तक राष्ट्र का संपूर्ण विकास संभव नहीं है। राष्ट्र के विकास के लिए महिला का विकास जरूरी है। इस बात को ही शायद आजादी के बाद की सरकारों ने नहीं समझा और महिला को सिर्फ अबला मानकर उसकी रक्षा के लिए कानून बनाकर मौन हो गयीं। इसे पहली बार समझने का काम किया प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने। यही कारण है कि उनकी तमाम योजनाएं महिलाओं को आत्मबल देने पर केन्द्रित रही हैं। यहां तक कि आज तो सरकारी योजना के तहत मिलने वाले आवास की चाभी भी महिला को सौंपी जाती है। इसका एकमात्र कारण है महिलाओं में आत्मबल पैदा करना।
यदि कोई सदियों से घूंघट की घुटन में जी रहा हो, उसे तुरंत पर्दे से बाहर नहीं लाकर हम दौड़ा नहीं सकते। वैसे ही आत्मबल भी है। यह एक दिन का काम नहीं है, यह धीरे-धीरे चलने वाली प्रक्रिया है, जिसका प्रतिफल एक साल में दिखना तो शुरू हो जाता है लेकिन मूल परिणाम आने में दशकों लग जाते हैं।
किसी भी समाज के विकास के लिए पहली जरूरत होती है, शिक्षित होना। इसकी सोच प्रधानमंत्री ने पहले ही पाल रखी थी और सत्तासीन होते ही 22 जनवरी 2015 को उन्होंने बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना की शुरुआत की। इसका मुख्य उद्देश्य बेटियों को उच्च शिक्षा प्रदान किया जाना, उन्हें सभी क्षेत्रों में आगे बढ़ाना है। आज गांव-गांव में यह गूंज दिख जाती है- ‘बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ।”
वहीं महिलाओं को धुएं से मुक्ति दिलाने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक मई 2016 को उज्ज्वला योजना की शुरुआत कर दी। गरीब परिवारों की महिलाओं को भी धुआं से मुक्ति दिलाना। इस योजना का परिणाम रहा कि इस योजना के तहत उपभोक्ताओं की संख्या 30 करोड़ के लगभग हो गयी है।
इसी तरह यूपी सरकार ने भी महिलाओं को समृद्ध बनाने की फिक्र करते हुए महिला सामर्थ्य योजना की 22 फरवरी 2021 को शुरुआत की। इसका उद्देश्य महिलाओं को रोजगार देकर उनमें आत्मबल पैदा करना है। 22 जनवरी 2015 को शुरू किये गये सुकन्या समृद्धि योजना के तहत बेटियों के नाम बैंक खाता खुलवाने की प्रक्रिया शुरू की, जिससे बेटियों की शादी बोझ न बने। इसके अलावा सरकार ने फ्री सिलाई मशीन योजना, समर्थ योजना, सुरक्षित मातृत्व योजना की भी शुरुआत की।
समर्थ योजना के तहत वस्त्र उद्योग में महिलाओं को आत्मबल पैदा करना है। केन्द्र सरकार द्वारा 20 दिसम्बर 2017 में शुरू की गयी योजना में 18 राज्यों में तीन करोड़ से ज्यादा महिलाओं को वस्त्र उद्योग से संबंधित प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इस योजना के तहत प्रशिक्षण के बाद महिलाओं को उद्योग करने पर सरकार सहायता भी करेगी। इन तमाम योजनाओं का एकमात्र उद्देश्य महिलाओं में आत्मबल पैदा करना है, जिससे वे खुद के पैरों पर खड़ी हो सकें। वे किसी पर बोझ नहीं, बल्कि किसी का बोझ कम करने में सहभागी की भूमिका निभा सकें।
सबसे ज्यादा ध्यान देने योग्य बात है कि देश और कई प्रदेशों की बागडोर महिलाओं के हाथों में रही है, लेकिन कभी महिलाओं ने महिला विकास पर ध्यान नहीं दिया। शायद इसका कारण यही रहा कि उनमें अहम की भावना कूट-कूट कर भरी थी। उन्होंने कभी महिला वर्ग की प्रताड़ना नहीं दिखी अथवा वे महिलाओं का उत्थान इस कारण से नहीं करना चाहती थीं कि वे सिर्फ उन्हें वोट बैंक के लिए प्रयोग करने की नीयत रखती थीं। यूपी में बसपा प्रमुख द्वारा कभी किसी महिला को मंत्रालय में तवज्जो न देना, इंदिरा गांधी द्वारा कभी महिलाओं के उत्थान के लिए काम न करना, इसके प्रमुख उदाहरण हैं। महिलाओं के उत्थान के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जितनी चिंता की, उतना किसी ने नहीं की। इसमें विशेषकर ऐसी पार्टी, जिसके प्रमुख महिलाएं हैं, उनके लिए शर्म की बात होनी चाहिए।
पुरुष व महिला में यदि अंतर को देखें तो महिलाएं भावुक ज्यादा होती हैं। उन्हीं भावनाओं के कारण कई बार उनको ठगा भी जाता है, लेकिन यही भावना उनके लिए कई बार वरदान भी साबित होता है। जैसे बिजनेस में पुरुषों की अपेक्षा महिलाएं आगे रहती हैं। वहीं महिलाओं की एक और विशेषता है, वे शादी से पूर्व एक दूसरी भूमिका में रहती हैं और शादी होते ही वे एक अजनबी घर में जाकर दूसरे आंगन को अपना बना लेती हैं। ऐसे में उन्हें जरूरत पड़ती है एक छांव की, जो पति के रूप में उसे दिखता है। उसके मन में एक विश्वास होता है कि वहां कोई है, जो उसकी पीड़ा को समझेगा, लेकिन ऐसे में अपना सबकुछ छोड़कर दूसरे की छांव में आने वाले को यदि छांव की जगह कांटा मिल जाए तो जिंदगी तो दुश्वार बन ही जाएगी। उसके लिए जिंदगी की तड़पन तो असह्य हो ही जाएगी।
इन्हीं सब चीजों को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बखूबी समझा। यही कारण है कि उन्होंने सबसे पहले महिलाओं में आत्मबल पैदा करने की ठानी। हर महिला मां दुर्गा का अवतार है, यह उसको याद दिलाने की ठानी। अपनी संस्कृति महिलाओं का सम्मान सिखाती है, यह बात जन-जन तक पहुंचाने की ठानी। महिलाएं पुरुषों से हर काम में बहुत आगे हैं, इस बात को बताने की ठानी। यही कारण है कि उन्होंने महिलाओं से संबंधित तमाम योजनाएं लाकर उनके प्रति कृतज्ञता जाहिर की। उन्होंने महिलाओं को बताया कि तुम अबला नहीं, सबला हो। तुम उठो तो राष्ट्र उठेगा।
लेखक, उप्र सरकार की पूर्व मंत्री व महिला उत्थान कार्यों से जुड़ी हुई हैं।
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