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सुनी सुनाई : मंगलवार 10 मई 2022

May 10, 2022

पूर्व सीबीआई डायरेक्टर ने लांच की ज्योतिष वेबसाइट
देश के पूर्व सीबीआई डायरेक्टर आरके शुक्ला ने रिटायरमेंट के बाद शेष जीवन ज्योतिष के रहस्यों को खोजने और उसके सकारात्मक उपयोग में लगाने का निर्णय लिया है। मप्र कैडर के आईपीएस अधिकारी रहे शुक्ला रिटायरमेंट के बाद भोपाल में बस गये हैं। वैसे तो शुक्ला सेवा में रहते हुए भी ज्योतिष के अच्छे जानकार थे। लेकिन इस सप्ताह उन्होंने ज्योतिष विज्ञान को लेकर अपनी वेबसाइट लांच की है। ई-एस्ट्रोवर्स के नाम से बनाई वेबसाइट का विमोचन भोपाल के एक होटल में किया गया, जिसमें उनके परिवार के अलावा शहर के कुछ जानेमाने ज्योतिषी ही शामिल हुए। इस वेबसाइट के जरिए शुक्ला ज्योतिष विज्ञान के नये नये रहस्यों की खोज करना चाहते हैं।

सिंधिया का मध्यप्रदेश प्रवेश
भाजपा नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने आखिर 4 साल पहले दी गई एक पत्रकार की सलाह को स्वीकार कर लिया है। तब सिंधिया कांग्रेस में थे। उन्होंने भोपाल के एक वरिष्ठ पत्रकार से पूछा कि मप्र का मुख्यमंत्री बनने क्या करना चाहिए। पत्रकार ने सलाह दी कि अलीगढ से एक ताला बुलाइये और दिल्ली के बंगले में लगाकर भोपाल शिफ्ट हो जाइए। तब सिंधिया ने इस सलाह को मजाक में उड़ा दिया था। लेकिन अनुभवों से सीख लेकर आखिर सिंधिया ने अब आधी सलाह मान ली है। वे बेशक दिल्ली में ताला नहीं लगाएगें, लेकिन भोपाल में बसने का निर्णय ले लिया है। सोमवार को सिंधिया ने बेशक भोपाल के बंगले में गृह प्रवेश किया है, लेकिन राजनीतिक विश्लेषक इसे ज्योतिरादित्य सिंधिया का मप्र की राजनीति में प्रवेश मान रहे हैं। यानि अगले विधानसभा चुनाव में सिंधिया भाजपा का चेहरा हो सकते हैं!

कौन बनेगा लोकायुक्त डीजी!
मप्र पुलिस अफसरों में एक सवाल सबसे चर्चित है कि लोकायुक्त संगठन में अगला महानिदेशक कौन होगा? मौजूदा महानिदेशक राजीव टंडन इसी महीने रिटायर हो रहे हैं। मुखबिर का कहना है कि टंडन और उनके पहले संजय राणा का लोकायुक्त संगठन में अनुभव अच्छा नहीं रहा है। संजय राणा और लोकायुक्त के बीच जो अविश्वास पैदा हुआ वह राजीव टंडन तक बरकरार है। लोकायुक्त मुख्यालय की मोटी दीवारों से बाहर आने खबरें बताती हैं कि लोकायुक्त और संगठन के महानिदेशक के बीच अबोला की स्थिति है। बहुत जरूरी होने पर ही दोनों के बीच संवाद होता है। ऐसी स्थिति में कोई भी योग्य आईपीएस लोकायुक्त जाना नहीं चाहता। पुलिस मुख्यालय में आईपीएस के बीच मजाक चल रहा है कि जिसे कैक्टस के बगीचे में वॉक करना है, वह लोकायुक्त संगठन में चला जाए।

यह कैसी शराब जिसमें नशा ही नहीं
मप्र में यह पहली बार हुआ है कि शराब के आदी एक व्यक्ति ने शराब में नशा न होने का मामला उपभोक्ता न्यायालय में ले जाने का निर्णय लिया है। यह चौंकाने वाला मामला महाकाल की नगरी उज्जैन का है। पिछले 20 साल से निरंतर शराब पीने वाले लोकेन्द्र सोठिया ने आबकारी आयुक्त को पत्र लिखकर कहा है उज्जैन की देशी शराब में पानी मिलाया जा रहा जिस कारण इसमें ठीक से नशा नहीं होता। सबूत के तौर पर उसने दो पैक बोतल बचा ली हैं। यदि आबकारी विभाग ने कार्रवाई नहीं की तो सोठिया ने इस मामले को उपभोक्ता न्यायालय में उठाने की चेतावनी दी है। सोठिया शराब ठेकेदार का ठेका निरस्त कराने पर अड़े हैं।

बागेश्वर महाराज क्यों सीख रहे अंग्रेजी!
आज से दो तीन साल पहले तक न तो कोई बागेश्वर धाम को जानता था और न ही बागेश्वर महाराज का कोई अस्तित्व था। बागेश्वर धाम के पास गांव में रहने वाला सीधा साधा युवक पं. धीरेन्द्र शास्त्री अचानक बागेश्वर महाराज के रूप में देश विदेश में विख्यात हो गया है। चर्चा है कि उनके पास कोई दैवीय शक्ति है, जिससे वे किसी के भी मन की बात जान लेते हैं और लोगों की समस्याओं का समाधान भी बताते हैं। अचानक हजारों की भीड़ महाराज के चारों ओर बढ़ गई है। खबर आ रही है कि महाराज आजकल अंग्रेजी सीखने में लगे हैं। दरअसल बागेश्वर महाराज को लंदन से बुलाना आ गया है। 1 से 15 जून तक उन्हें लंदन में रहना है। वहां के लोगों से संवाद करने के लिए महाराज दिन रात अंग्रेजी सीखने में लगे हैं।

कमलनाथ से विपरीत क्यों हुए नकुलनाथ!
यूं तो कमलनाथ के बिना उनके सांसद बेटे नुकुलनाथ का मप्र की राजनीति में कोई अस्तित्व नहीं है। पता नहीं क्यों इस सप्ताह सिवनी में दो आदिवासी युवाओं की मौत को लेकर कमलनाथ और नुकुलनाथ के विचार न केवल अलग अलग दिखे, बल्कि नुकुलनाथ इस घटना को लेकर अपने पिता कमलनाथ की सीबीआई जांच की मांग को खारिज करते नजर आए। नुकुलनाथ ने खुलकर बयान दिया कि सीबीआई केन्द्र में भाजपा के इशारे पर काम करती है। इसलिए आदिवासी युवाओं की मौत की जांच न्यायालय की देखरेख में होना चाहिए।

और अंत में…!
खबर आ रही है कि भोपाल क्राइम ब्रांच लगभग 20 ऐसे मामलों में खात्मा लगाने की तैयारी में है, जो राजनीतिक दबाव में दर्ज किये गये हैं। इनमें अधिकांश मामले सोशल मीडिया पर मुख्यमंत्री या किसी नेता के बारे में लिखने या राजनीतिक बयानबाजी के कारण साइबर एक्ट की धाराओं के तहत दर्ज किये गये हैं। इनमें अधिकांश मामले राजनीतिक दबाव में कांग्रेस नेताओं के खिलाफ दर्ज किये गए हैं। मुखबिर का कहना है कि साइबर एक्ट में लंबी और वैज्ञानिक जांच की जरूरत होती है। कोर्ट में अपराध सिद्ध करना आसान नहीं है। इन परेशानियों को देखते हुए भोपाल पुलिस ऐसे मामलों में खात्मा काटने की तैयारी कर रही है।

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