वाराणसी । वाराणसी में शुक्रवार को काशी विश्वनाथ (Kashi Vishwanath) और ज्ञानव्यापी मस्जिद (Gyanvapi Masjid) के अंदर सर्वे और वीडियोग्राफी (Surveys and Videography) की गई। जब टीम नापी के लिए आई तो उस समय तनाव का माहौल बन गया। दोनों पक्षों के लोग जमा हो गए, मुस्लिम समुदाय के लोगों ने अल्लाहुअकबर की नारेबाजी शुरू कर दी। शुक्रवार को सर्वे और वीडियोग्राफी की टीम में केस से जुड़े सभी पक्ष के लोग थे। बताया जा रहा है कि याचिकाकर्ताओं में 5 महिलाएं भी शामिल थीं। हर पक्ष से एक एक वकील भी थे, साथ ही सहायकों को भी अंदर जाने दिया गया। इसके लिए बकायदा पुलिस ने नाम उनाउंस किया और उन्हें बैरिकेड के अंदर जाने दिया।
क्या है मामला-
दरअसल, 18 अगस्त 2021 को वाराणसी की पांच महिलाओं ने श्रृंगार गौरी मंदिर में रोजाना पूजन-दर्शन की मांग को लेकर सिविल जज सीनियर डिविजन के सामने वाद दर्ज कराया था। इस पर जज रवि कुमार दिवाकर ने मंदिर में सर्वे और वीडियोग्राफी करने का आदेश दिया है। इसकी रिपोर्ट 10 मई तक मांगी गई है। इसी दिन इस मामले में सुनवाई भी होगी। काशी विश्वनाथ के बाहर जमा हिन्दुओं ने कहा कि मस्जिद के पिलरों पर शंख चक्र वगैरह के निशान हैं जिन्हें छिपाया गया। इतने लंबे समय से छिपाकर रखा गया है। लोगों का कहना है कि मस्जिद की एक-एक ईंट कह रही है कि वो मंदिर का हिस्सा है।
कैसे शुरु हुआ विवाद-
1984 में धर्म संसद की शुरुआत करते हुए देशभर के 500 से ज्यादा संत दिल्ली में जुटे। इस धर्म संसद में कहा गया कि हिंदू पक्ष अयोध्या, काशी और मथुरा में अपने धर्मस्थलों पर दावा करना शुरू कर दे। अयोध्या में रामजन्मभूमि का विवाद और मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि को लेकर विवाद है। वहीं, स्कंद पुराण में उल्लेखित 12 ज्योतिर्लिंगों में से काशी विश्वनाथ मंदिर को सबसे अहम माना जाता है। अयोध्या पर हिंदू पक्ष का दावा तो आजादी से पहले ही चल रहा था। लिहाजा हिंदू संगठनों की नजरें मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद और काशी की ज्ञानवापी मस्जिद पर टिक गईं।
साल 1991 आते-आते काशी विश्वनाथ मंदिर के पुरोहितों के वंशज पंडित सोमनाथ व्यास, संस्कृत प्रोफेसर डॉ। रामरंग शर्मा और सामाजिक कार्यकर्ता हरिहर पांडे ने वाराणसी सिविल कोर्ट में याचिका दायर की। याचिका में तर्क दिया गया कि काशी विश्वनाथ का जो मूल मंदिर था, उसे 2050 साल पहले राजा विक्रमादित्य ने बनवाया था। सन् 1669 में औरंगजेब ने इसे तोड़ दिया और इसकी जगह मस्जिद बनाई। इस मस्जिद को बनाने में मंदिर के अवशेषों का ही इस्तेमाल किया गया।
याचिका में मंदिर की जमीन हिंदू समुदाय को वापस करने की मांग की गई थी। इसके बाद ज्ञानवापी मस्जिद की देखरेख करने वाली संस्था अंजमुन इंतजामिया इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंच गई। उसने दलील दी कि इस विवाद में कोई फैसला नहीं लिया जा सकता, क्योंकि प्लेसेस ऑफ वरशिप एक्ट के तहत इसकी मनाही है। इसके बाद हाईकोर्ट ने निचली अदालत की कार्यवाही पर रोक लगा दी।
करीब 22 साल तक ये मामला लंबित पड़ा रहा। 2019 में वकील विजय शंकर रस्तोगी इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंचे। उन्होंने याचिका दायर कर मांग की कि ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे पुरातत्व विभाग से करवाया जाए। अभी ये मामला हाईकोर्ट में चल रहा है।
क्या अयोध्या फॉर्मूले से बनेगी बात-
काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद का विवाद काफी हद तक अयोध्या विवाद जैसा भी है और इससे अलग भी। अयोध्या के मामले में मस्जिद अकेली थी और मंदिर नहीं बना था। लेकिन इस मामले में मंदिर और मस्जिद दोनों ही बने हैं। अयोध्या का विवाद आजादी के पहले से अदालत में चल रहा था, इसलिए उसे 1991 के प्लेसेस ऑफ वरशिप एक्ट से छूट मिली थी। लेकिन वाराणसी विवाद 1991 में अदालत से शुरू हुआ, इसलिए इस आधार पर इसे चुनौती मिलनी लगभग तय है।
हिंदू संगठनों की मांग है कि यहां से ज्ञानवापी मस्जिद को हटाया जाए और वो पूरी जमीन हिंदुओं के हवाले की जाए। इस मामले में हिंदू पक्ष की दलील है कि ये मस्जिद मंदिर के अवशेषों पर बनी है, इसलिए 1991 का कानून इस पर लागू नहीं होता। तो वहीं मुस्लिमों का कहना है कि यहां पर आजादी से पहले से नमाज पढ़ी जा रही है, इसलिए इस पर 1991 के कानून के तहत कोई फैसला करने की मनाही है।
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