नई दिल्ली। देश के मुख्य न्यायाधीश (chief justice of the country- CJI) एनवी रमना (NV Ramana) ने कहा है कि उच्च न्यायालयों में स्थानीय भाषाओं में कार्यवाही चलाने की फिलहाल कोई संभावना नजर नहीं आ रही है। यदि कृत्रिम बुद्धिमत्ता की तकनीक (artificial intelligence technology) का भविष्य में कभी इस स्तर पर विकास हो गया कि वह स्थानीय भाषाओं को देखकर जज को उसका मर्म समझा सकें, तो फिर कोर्ट में यह भाषाएं लागू हो सकती हैं।
जस्टिस रमना शनिवार को हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीधों (Chief Justices of High Court) और मुख्यमंत्री सम्मेलन (Chief Minister’s Conference) के विचार सत्रों में हिस्सा लेने के बाद शाम को बोल रहे थे। हालांकि, उन्होंने इससे पूर्व सुबह प्रधानमंत्री के सामने कहा था कि हाईकोर्ट में स्थानीय भाषाओं में कार्यवाही शुरू करने का समय आ गया है। संवैधानिक अदालतों के समक्ष वकालत किसी व्यक्ति के कानून की जानकारी और समझ पर आधारित होनी चाहिए न कि भाषाई निपुणता पर। न्याय व्यवस्था और हमारे लोकतंत्र के अन्य सभी संस्थानों में देश की सामाजिक और भौगोलिक विविधता दिखनी चाहिए। मुझे उच्च न्यायालयों के समक्ष कार्यवाही में स्थानीय भाषाओं को शामिल करने के लिए कई अभ्यावेदन प्राप्त हो रहे हैं।
फुल कोर्ट ने आग्रह खारिज कर दिया था
शाम को मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि वह क्षेत्रीय भाषाओं के हाईकोर्ट में इस्तेमाल को लेकर बहुत उम्मीद नहीं रखते। उन्होंने कहा कि जब वह 2014 में सुप्रीम कोर्ट आए थे तो उसे समय फुल कोर्ट ने प्रस्ताव पारित कर हिन्दी और क्षेत्रीय भाषाओं के इस्तेमाल करने के आग्रह को खारिज कर दिया था। तब से स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है।
सिर्फ तमिलनाडु से उठी है स्थानीय भाषा की मांग
हाल ही में सिर्फ तमिलनाडु सरकार की ओर से उन्हें एक प्रस्ताव मिला है, जिसमें हाईकोर्ट में क्षेत्रीय भाषा के इस्तेमाल करने की अनुमति मांगी है। और कहीं से ऐसा प्रस्ताव नहीं आया है। गुजरात से कुछ मांग उठी थी लेकिन उसका कोई प्रस्ताव उनके संज्ञान में नहीं है।
यह समस्या आएगी
चीफ जस्टिस ने कहा कि हाईकोर्ट में मुख्य न्यायाधीश हमेशा बाहर के होते हैं, इसके अलावा कई वरिष्ठ जज भी बाहर के होते हैं, जो स्थानीय भाषाओं में निपुण नहीं होते। दूसरी समस्या अनुवाद की आएगी, जो संभव नहीं है। क्योंकि, उसके लिए आधारभूत ढांचा बनाना होगा। वहीं, यदि आपराधिक मामले में सुनवाई चल रही है तो पोस्टमार्टम और उसकी रिपोर्ट की बारीकियां कैसे बयान की जाएंगी, यह एक समस्या रहेगी। फिर हाईकोर्ट का कोई फैसला जिसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाएगी, उसका विभिन्न भाषाओं से अनुवाद कैसे किया जाएगा। यदि अनुवाद नहीं हुआ तो स्थानीय वकील यहां कैसे बहस करेंगे और उन्हें कौन कैसे समझेगा। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि ये सब समस्याएं हैं।
इन उच्च न्यायालयों में लेते हैं हिंदी में मुकदमे
हालांकि, फिलहाल कुछ हाईकोर्ट जैसे राजस्थान और इलाहाबाद एवं मध्य प्रदेश में हिंदी में मुकदमे ले लेते हैं। बहस भले ही हिंदी में कर ली जाए लेकिन फाइलों का अंग्रेजी में अनुवाद होता है। यह भी एक विशेष अनुमति के बाद ही होता है।
निचली अदालतों में पूरी कार्यवाही क्षेत्रीय भाषा में ही हो रही
इसके अलावा निचली अदालतों में पूरी कार्यवाही क्षेत्रीय भाषा में ही होती है। फैसले भी क्षेत्रीय भाषा में ही लिखे जाते हैं। उच्च अदालत में जाने की स्थति में उनका अनुवाद होता है। सुप्रीम कोर्ट महत्वपूर्ण फैसलों का हिंदी समेत लगभग आठ भाषाओं में अनुवाद करता है। ये फैसले कोर्ट की वेबसाइट पर मौजूद होते हैं।
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