– योगेश कुमार गोयल
भारत का अचूक ब्रह्मास्त्र मानी जाने वाली ‘ब्रह्मोस’ सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल एक के बाद एक सफलता के नए पड़ाव पार करते हुए अपनी क्षमताओं और ताकत से पूरी दुनिया को हतप्रभ कर रही है। ब्रह्मोस मिसाइल जब करीब तीन हजार किलोमीटर प्रति घंटे की गति से आगे बढ़ती है तो किसी भी देश की वायु रक्षा प्रणाली के लिए इसे रोक पाना लगभग नामुमकिन हो जाता है।
19 अप्रैल को सफलता का एक और पड़ाव पार करते हुए ब्रह्मोस ने एक ही लक्ष्य के खिलाफ दो सफल वार किए। पहला परीक्षण भारतीय नौसेना के युद्धपोत आईएनएस दिल्ली द्वारा देश के पूर्वी समुद्र तट पर एक जहाज को निशाना बनाते हुए किया गया और बिना वारहेड वाली ब्रह्मोस मिसाइल ने इस जहाज में एक बड़ा सुराख बना दिया। इस सफल परीक्षण के बाद ब्रह्मोस मिसाइल के एयर-लांच संस्करण से लैस भारतीय वायुसेना के सुखोई-30 एमकेआई विमान ने एयरबेस से उड़ान भरते हुए उसी जहाज पर पुनः वार किया और ब्रह्मोस के वारहेड से सीधे टकराने के बाद जहाज पानी में डूब गया। इन परीक्षणों के लिए भारतीय वायुसेना तथा नौसेना द्वारा एक-दूसरे के साथ समन्वय किया गया था।
भारत और रूस के संयुक्त प्रयासों से बनाई गई सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल ‘ब्रह्मोस’ के अलग-अलग संस्करणों के अभी तक कई परीक्षण किए जा चुके हैं। सभी परीक्षणों में ब्रह्मोस ने अपनी जो ताकत दुनिया को दिखाई है, उससे यह हिन्द की बाहुबली और रण की बॉस साबित हुई है। रक्षा अधिकारियों का कहना है कि निकट भविष्य में ब्रह्मोस क्रूज मिसाइल के अभी और भी प्रक्षेपण होने जा रहे हैं।
वैसे, पहले से बनी इन शक्तिशाली मिसाइलों को और ज्यादा शक्तिशाली बनाते हुए भारत पूरी दुनिया को अपनी स्वदेशी ताकत का अहसास कराने का भी सफल प्रयास कर रहा है। ब्रह्मोस अपनी श्रेणी में दुनिया की सबसे तेज परिचालन प्रणाली है और डीआरडीओ द्वारा इस मिसाइल प्रणाली की सीमा को 290 किलोमीटर से बढ़ाकर करीब 450 किलोमीटर तक किया जा चुका है। लंबी दूरी पर मौजूद लक्ष्यों पर अचूक प्रहार करने की अपनी क्षमता को विभिन्न परीक्षणों में बखूबी प्रदर्शित कर चुकी ब्रह्मोस की ताकत को इसी से समझा जा सकता है कि इसकी रफ्तार ध्वनि की गति से करीब तीन गुना ज्यादा है।
ब्रह्मोस अब न केवल भारत के तीनों सशस्त्र बलों के लिए बेहद शक्तिशाली हथियार बन गई है बल्कि गर्व का विषय यह है कि अभी तक जहां भारत अमेरिका, फ्रांस, रूस इत्यादि दूसरे देशों से मिसाइलें व अन्य सैन्य साजोसामान खरीदता रहा है, वहीं भारत अपनी इस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल को दूसरे देशों को निर्यात करने की दिशा में अब तेजी से आगे बढ़ रहा है। ब्रह्मोस मिसाइल को पनडुब्बियों, विमानों और जमीन से अर्थात् तीनों ही स्थानों से सफलतापूर्वक लांच किया जा सकता है, जो भारतीय वायुसेना को समुद्र अथवा जमीन के किसी भी लक्ष्य पर हर मौसम में सटीक हमला करने के लिए सक्षम बनाती है। बेहद ताकतवर ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइलें भारतीय वायुसेना के 40 से भी अधिक सुखोई लड़ाकू विमानों पर लगाई जा चुकी हैं, जिससे सुखोई लड़ाकू विमान पहले से कई गुना ज्यादा खतरनाक हो गए हैं। सुखोई विमान की दूर तक पहुंच के कारण ही इस विमान को ‘हिंद महासागर क्षेत्र का शासक’ भी कहा जाता है और ब्रह्मोस से लैस सुखोई अब दुश्मनों के लिए बेहद घातक हो गए हैं।
ब्रह्मोस मिसाइल मध्यम रेंज की रेमजेट सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल है, जिसे पनडुब्बियों, युद्धपोतों, लड़ाकू विमानों और जमीन से दागा जा सकता है। यह दस मीटर की ऊंचाई पर भी उड़ान भर सकती है और रडार के अलावा किसी भी अन्य मिसाइल पहचान प्रणाली को धोखा देने में भी सक्षम है, इसीलिए इसे मार गिराना लगभग असंभव माना जाता रहा है। इस मिसाइल का नाम भारत की ब्रह्मपुत्र नदी तथा रूस की मस्कवा नदी को मिलाकर रखा गया है और इसका 12 जून 2001 को पहली बार सफल लांच किया गया था। यह मिसाइल दुनिया में किसी भी वायुसेना के लिए गेमचेंजर साबित हो सकती है।
मिसाइलें प्रमुख रूप से दो प्रकार की होती हैं, क्रूज मिसाइल और बैलिस्टिक मिसाइल। क्रूज और बैलिस्टिक मिसाइलों में अंतर यही है कि क्रूज मिसाइल बहुत छोटी होती हैं, जिन पर ले जाने वाले बम का वजन भी ज्यादा नहीं होता और अपने छोटे आकार के कारण उन्हें छोड़े जाने से पहले बहुत आसानी से छिपाया जा सकता है जबकि बैलिस्टिक मिसाइलों का आकार काफी बड़ा होता है और वे काफी भारी वजन के बम ले जाने में सक्षम होती हैं। बैलिस्टिक मिसाइलों को छिपाया नहीं जा सकता, इसलिए उन्हें छोड़े जाने से पहले दुश्मन द्वारा नष्ट किया जा सकता है। क्रूज मिसाइल वे मिसाइलें होती हैं, जो कम ऊंचाई पर तेजी से उड़ान भरती हैं और रडार की आंखों से भी आसानी से बच जाती हैं। बैलिस्टिक मिसाइल उर्ध्वाकार मार्ग से लक्ष्य की ओर बढ़ती हैं जबकि क्रूज मिसाइल पृथ्वी के समानांतर अपना मार्ग चुनती हैं। छोड़े जाने के बाद बैलिस्टिक मिसाइल के लक्ष्य पर नियंत्रण नहीं रहता जबकि क्रूज मिसाइल का निशाना एकदम सटीक होता है।
डीआरडीओ अब रूस के सहयोग से ब्रह्मोस मिसाइल की मारक दूरी को और भी ज्यादा बढ़ाने के साथ इन्हें हाइपरसोनिक गति पर उड़ाने पर भी कार्य कर रहा है। दरअसल सुपरसोनिक मिसाइलों की गति ध्वनि की रफ्तार से तीन गुना अर्थात् तीन मैक तक होती है और इनके लिए रैमजेट इंजन का प्रयोग किया जाता है, जबकि हाइपरसोनिक मिसाइलों की रफ्तार ध्वनि की गति से पांच गुना से भी ज्यादा होती है और इनके लिए स्क्रैमजेट यानी छह मैक स्तर के इंजन का प्रयोग किया जाता है।
फिलहाल ब्रह्मोस के जो संस्करण उपलब्ध हैं, वे सुपरसोनिक क्रूज मिसाइलें ही हैं, जो ध्वनि के वेग से करीब तीन गुना अधिक 2.8 मैक गति से अपने लक्ष्य पर जबरदस्त प्रहार करती हैं। यह दुनिया में अपनी तरह की ऐसी एकमात्र क्रूज मिसाइल है, जिसे सुपरसॉनिक स्पीड से दागा जा सकता है। दुनिया की सबसे तेज सुपरसोनिक मिसाइल ब्रह्मोस अपने लक्ष्य के करीब पहुंचने से मात्र बीस किलोमीटर पहले भी अपना रास्ता बदल सकने वाली तकनीक से लैस है और यह केवल दो सैकेंड में चौदह किलोमीटर तक की ऊंचाई हासिल कर सकती है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यही है कि इसके दागे जाने के बाद दुश्मन को संभलने का मौका नहीं मिलता और यह पलक झपकते ही दुश्मन के ठिकाने को नष्ट कर देती है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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