चेन्नईः कोरोना के चलते दुनियाभर में लाखों लोगों ने अपनी जान गंवाई. अकेले चैन्नई में ही सामान्य से 25,000 से ज्यादा लोग कोरोना के चलते इस दुनिया से चल बसे. एक अध्ययन में सामने आया है कि इसकी वजह से चैन्नई में औसत जीवन प्रत्याशा में लगभग 4 साल की कमी आ गई है. यह 70.7 साल से घटकर 66.4 साल रह गई है. हालांकि गणितीय आंकड़ों का यह मतलब कतई नहीं निकलता कि चैन्नई वासियों की उम्र मौत अब जल्दी हो जाएगी. डॉक्टरों का कहना है कि ये सिर्फ लोगों को आगाह करने के लिए है कि उन्हें अपनी सेहत को लेकर पहले से ज्यादा सतर्क रहना चाहिए.
लान्सेट इन्फेक्शन डिजीज जर्नल में छपी इस रिपोर्ट के मुताबिक, जून 2021 तक चैन्नई में कोविड के चलते करीब 8000 लोगों की मौत दर्ज की गई. इसके अलावा लॉकडाउन, समय पर इलाज न मिलने और मेडिकल सेवाओं की कमी की वजह से भी लोगों की जानें गई थीं. TOI के मुताबिक, इस स्टडी का हिस्सा रहे डायरेक्टर ऑफ पब्लिक हेल्थ डॉ. टीएस सेल्वा विनयगम ने कहा कि भारत की तुलना में अमेरिका, ब्रिटेन, इटली, स्पेन जैसे देशों में उम्रदराज लोगों की संख्या ज्यादा है. फिर भी वहां प्रति हजार व्यक्तियों में औसतन 1.6 से 2.1 ज्यादा लोगों की मौतें दर्ज की गईं जबकि चैन्नई में यह प्रति हजार 5.2 थी. ये सामान्य से ज्यादा हुई मृत्युदर का आंकड़ा है. इस अधिक मृत्यु दर की वजह से चैन्नई में जीवन प्रत्याशा में कमी आई. 2020 में यह घटकर 69.5 साल हो गई थी. कोरोना की दूसरी लहर ने इसे और कम कर दिया.
तमिलनाडु में जन्म-मृत्यु मामलों के रजिस्ट्रार डॉ. सेल्वा विनयगम इसे बीते 70 सालों में सबसे बड़ी गिरावट बताते हैं. रजिस्ट्रार के आंकड़ों के मुताबिक, चैन्नई में जनवरी 2016 से जून 2021 के बीच करीब 3.3 लाख लोगों की मौत हुई. इसमें 2.6 लाख मौतें 2019 से पहले जिले की सीमाओं में आने वाले क्षेत्रों से जुड़ी हैं. इन 2.6 लाख मौतों में से करीब 88 हजार की जान कोरोना महामारी के दौरान गई. इसके सामान्य मौतों से 25,990 ज्यादा होने का अनुमान है. इसमें दूसरी लहर के दौरान 17,700 मौतें भी शामिल हैं.
TOI की रिपोर्ट के मुताबिक, पूरी महामारी के दौरान चैन्नई में 8617 मौतें दर्ज की गईं. अगर उम्र के हिसाब से इन मौतों का आकलन किया जाए तो जैसे-जैसे उम्र बढ़ती गई, मौत का औसत भी बढ़ता गया. जहां 30-39 उम्र वालों मौतों का औसत प्रति हजार 0.4 था, वहीं 40-49 साल के लोगों में यह आंकड़ा 2.26 रहा. 60-69 उम्र समूह में यह आंकड़ा 21.02 पहुंच गया तो 70-79 में इसकी दर 39.74 देखी गई. 80 और उससे ऊपर की उम्र वालों में तो यह आंकड़ा 96.90 तक पहुंच गया.
इसमें उम्र के अलावा सामाजिक-आर्थिक स्थिति की भी अहम भूमिका रही. 2020 में जहां सामाजिक-आर्थिक रूप से कमजोर लोगों की मृत्यु दर में कमी आई थी, वहीं 2021 के दौरान दूसरी लहर में इसमें बहुत तेजी से बढ़ोतरी दर्ज की गई. इसने अधिक मौतों के अनुपात को बढ़ा दिया. कुल मिलाकर चैन्नई में मृत्यु दर बढ़ने में कोविड की महती भूमिका रही. सेल्वा का कहना है कि इस अध्ययन से ये मतलब नहीं निकालना चाहिए कि चेन्नई में रहने वालों की औसत उम्र कम हो गई है बल्कि इससे सबक लेकर स्वास्थ्य नीतियों को मजबूत बनाने पर काम करना चाहिए. हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि लोगों को बगैर किसी परेशानी के समय पर सही इलाज मिले. यही वह वजह थी जिसने कोरोना महामारी को इतना विकराल बना दिया था.
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