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इंदौर जिले में 11,133 कुपोषित थे, कोरोना काल के बाद सिर्फ 1841 रह गए

April 26, 2022

  • हैरान करने वाले महिला बाल विकास के आंकड़े
  • जिले में अति कुपोषण वाले 53 तो मध्यम कुपोषण वाले 1788 बच्चे

इंदौर, प्रदीप मिश्रा। कुपोषण से सम्बंधित सरकारी पोर्टल के अनुसार इंदौर जिले में दो साल पहले 2020 में जब कोरोना संक्रमण काल की शुरुआत थी, तब लगभग 11 हजार 133 बच्चे कुपोषण की समस्या से पीडि़त थे। 1 अप्रैल 2022 तक यानी कोरोना संक्रमण काल के बाद जिले में सिर्फ 1841 बच्चे ही कुपोषित बचे हैं। यकीनन कुपोषित बच्चों के यह आंकड़े हैरान कर देने वाले हैं।

यदि सरकारी पोर्टल के मुताबिक यह सब सही है तो यह नि:संदेह सुखद है। साफ-सफाई व स्वच्छता में 5 साल से लगातार नंबर वन, जल प्रबंधन का अवार्ड जीतने, कचरे से प्राकृतिक गैस ईंधन के मामले में एशिया का सबसे बड़ा गैस प्लांट स्थापित करने जैसी महत्वपूर्ण शृंखलाबद्ध उपलब्धियों में कुपोषित बच्चों के तेजी से घटते आंकड़े न सिर्फ सुखद, बल्कि महत्वपूर्ण व अहम हैं।

कोरोना काल के दौरान 11 हजार 133 थे
जिला प्रशासन के महिला बाल विकास विभाग के अनुसार जब 2 साल पहले कुपोषित बच्चों की संख्या पर हर रोज मॉनीटरिंग, यानी निगरानी रखने के लिए सरकार ने पोर्टल बनाया था। तब उसमें दर्शाए गए रिकार्ड के अनुसार 11,133 बच्चे कुपोषित थे। पोर्टल पर अतिकुपोषित व सामान्य कुपोषण सम्बंधित दो प्रकार के बच्चों की जानकारी मौजूद रहती है। इस पोर्टल के जरिए पता लगता है कि हर रोज कितने नए अतिकुपोषित या कितने सामान्य अथवा मध्यम कुपोषित बच्चे हैं।


अब 53 अतिकुपोषित, 1788 कुपोषित बच्चे
कुपोषण सम्बंधित बच्चों के सरकारी पोर्टल के अनुसार साल 2020 में तक जिले में 1751 बच्चे अतिकुपोषित, वहीं सामान्य या मध्यम कुपोषण सम्बंधित 9382 बच्चे थे। यानी दोनों को मिलाकर कुल 11 हजार 133 कुपोषित बच्चे थे। अब 1 अप्रैल 2022 तक अतिकुपोषित बच्चों की संख्या सिर्फ 53 और सामान्य या मध्यम कुपोषित बच्चे 1788 हैं। यानी अतिकुपोषित व मध्यम कुपोषित बच्चों की कुल संख्या 1841 है।

कुपोषणमुक्त जिले की जिम्मेदारी 3785 कर्मचारी व अधिकारियों पर
केंद्र सरकार की मंशा है कि साल 2022 तक देश कुपोषण से पूरी तरह मुक्त हो जाए, मगर इस मामले में मध्यप्रदेश सरकार को बहुत ज्यादा ध्यान देने व काम करने की जरूरत है । एनआरसी के मुताबिक 2020 में एमपी में 70 हजार नए कुपोषित बच्चे मिले थे। एनआरसी के अनुसार एमपी में कुपोषित बच्चों की संख्या घटने के बजाय बढ़ती जा रही है, जबकि सरकारी मॉनीटरिंग पोर्टल के अनुसार इंदौर जिले में हालात एमपी के अन्य जिलों के बिलकुल विपरीत हैं। इंदौर जिले को कुपोषणमुक्त बनाने की जिम्मेदारी महिला बाल विकास के 3785 कर्मचारियों पर है। इनमें 1839 आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, 1839 सहायिका, 72 सुपरवाइजर और 15 परियोजना अधिकारी शामिल हैं।

कुपोषित बच्चों को नाश्ता और भोजन देते हैं
महिला बाल विकास के मुताबिक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता सरकारी अस्पतालों सहित अपने-अपने कार्यक्षेत्र में कुपोषण की समस्या से सम्बंधित बच्चों की जानकारी जुटाकर उनका पंजीयन करती हैं। जन्म से लेकर 3 साल के बच्चे के कुपोषण का परीक्षण उसके वजन व कद के हिसाब से किया जाता है। सम्पूर्ण रूप से स्वस्थ बच्चे का वजन 3 किलो होता है। जन्म से कुपोषित बच्चों के लिए टेक होम राशन दिया जाता है, जिसमें पौष्टिक हलवा-लड्डू होता है जो सिर्फ गर्म पानी में तैयार हो जाता है। दोनों प्रकार के 6 साल तक के कुपोषित बच्चों को महिला बाल विकास आंगनवाड़ी के माध्यम से नाश्ता व भोजन मुहैया कराता है। महिला बाल विकास विभाग की जानकारी के अनुसार अभी जिले की आंगनवाडिय़ों में 1 साल से लेकर 6 साल की उम्र वाले लगभग 2 लाख 16 हजार बच्चे पंजीकृत हैं।

दो साल पहले इंदौर जिले में 1751 अतिकुपोषित और 9382 मध्यम कुपोषित बच्चे थे, मगर 1 अप्रैल 2022 तक जिले में 53 अतिकुपोषित और 1788 मध्यम कुपोषित बच्चे हैं।
आरएन बुधोलिया, जिला कार्यक्रम अधिकारी, महिला बाल विकास, इंदौर

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