– सियाराम पांडेय ‘शांत’
उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के दोबारा सत्तारूढ़ होने के बाद ग्राम्य विकास की भी दूसरी पारी आरंभ हो गई है। यूं तो सरकार शहरों और कस्बों का भी विकास कर रही है लेकिन सदियों से उपेक्षित गांवों का विकास उसकी प्राथमिकता में शामिल है। उसे पता चल गया है कि शहर चाहे जितने भी विकसित हो जाएं लेकिन जब तक गांव आत्मनिर्भर नहीं होंगे तब तक देश और प्रदेश का सम्यक विकास संभव नहीं है।
देश की 70 प्रतिशत आबादी आज भी गांवों में रहती है और कृषि पर ही निर्भर है। राष्ट्रकवि सोहन लाल द्विवेदी ने लिखा है कि ‘है अपना हिंदुस्तान कहां, वह बसा हमारे गांवों में।’ हिंदुस्तान की आत्मा गांवों में रहती है लेकिन अपने देश में कृषक पृष्ठभूमि से कई प्रधानमंत्री बने लेकिन गांव की जितनी चिंता अटल बिहारी वाजपेयी और नरेंद्र मोदी ने की, उतनी चिंता किसी ने भी नहीं की। लालबहादुर शास्त्री ने ‘जय जवान-जय किसान’ का नारा देकर किसानों को सम्मान भी दिया और उनके लिए काम भी शुरू किया लेकिन नियति ने उन्हें हमसे छीन लिया। उनका कार्यकाल बहुत छोटा रहा। चौधरी चरण सिंह ने भी किसानों की चिंता की लेकिन नरेंद्र मोदी ने किसानों की समस्याओं को न केवल जाना और समझा बल्कि उनके निवारण का भी भरसक प्रयास किया।
अटल बिहारी वाजपेयी ने जहां हर गांव को शहर से जोड़ने के लिए संपर्क मार्ग विकसित करने की वैचारिक अवधारणा दी थी और उनके कार्यकाल में इस दिशा में व्यापक कार्य भी हुआ लेकिन नरेंद्र मोदी उनसे आगे बढ़कर गांव, किसान और कृषि मजदूरों के उत्थान की दिशा में काम किया। लाल किले की प्राचीर से घोषणा की कि हर सांसद एक गांव को गोद लें, उसे अत्याधुनिक सुविधा संपन्न बनाए और आदर्श गांव बनाए। विपक्षी सांसदों ने न सही, लेकिन कुछ भाजपा सांसदों ने गांवों को गोद लिया भी लेकिन जिस तरह मॉनिटरिंग होनी चाहिए, वैसा कुछ कर नहीं पाए लेकिन मोदी सरकार की दूसरी पारी में जिस तरह गांवों के विकास पर ध्यान दिया जा रहा है, उसे हल्के में नहीं लिया जा सकता।
उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने तो हर सप्ताह गांव दिवस मनाने का निर्णय लिया है। हर सप्ताह गांव चौपाल लगाने, किसान चौपाल लगाने के अधिकारियों को निर्देश दिए हैं। गांवों में रात्रि प्रवास का निर्णय तो उन्होंने अपने पहले कार्यकाल में भी दिया था लेकिन इस मामले में अधिकारियों ने अपेक्षित संजीदगी नहीं दिखाई। लेकिन दूसरे कार्यकाल के पहले दिन से ही योगी आदित्यनाथ पूरी तरह रौ में हैं। इस बार उन्होंने अपने मंत्रियों को भी काम पर लगा दिया है। मंत्रियों का दबाव अधिकारियों पर है। सौ दिन, छह माह और एक साल की विकास योजना बनाई जा रही है। हर मंत्री को अपनी योजना का मुख्यमंत्री के समक्ष प्रस्तुतीकरण भी करना है बल्कि उसके क्रियान्वयन का भी रिपोर्ट कार्ड जनता के सामने पेश करना है।
इसका मतलब साफ है कि सरकार अपना एक क्षण भी जाया नहीं करना चाहती। मंत्रियों, सांसदों, विधायकों को लेकर जनता की अमूमन शिकायत होती थी कि चुनाव बाद क्षेत्र में उन्हें देखा ही नहीं गया लेकिन अब जिस तरह की रणनीति बन रही है, उसमें जनप्रतिनिधियों को जनता से संवाद बनाना ही होगा। उसका माध्यम चाहे जो कुछ भी हो। मंतव्य सुस्पष्ट है कि गांवों और किसानों की उपेक्षा अब नहीं चलने वाली। यह सच है कि उत्तर प्रदेश में छोटे-बड़े सभी गांवों को मिला लें तो उत्तर प्रदेश में एक लाख से अधिक गांव हैं। ऐसे में हर हफ्ते हर गांव में गांव दिवस, गांव चौपाल या किसान सम्मेलन संभव नहीं है लेकिन इस तरह की पहल का स्वागत किया जाना चाहिए। गांवों में नेताओं, अफसरों का आवागमन नहीं होगा तो वे उसकी वास्तविक स्थिति से कैसे परिचित होंगे और उनका निराकरण कैसे होगा? यह भी देखना होगा कि नेताओं और अफसरों का समय दौड़ में ही न निकल जाए। इसके लिए जरूरी होगा कि जो जहां है, वहीं रणनीति बनाकर गांवों का विकास करे,यही लोकहित का तकाजा भी है।
सुखद खबर यह है कि उत्तर प्रदेश ग्रामीण अभियंत्रण विभाग आगामी सौ दिनों में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत 200 गांवों की सड़कों को मुख्य मार्ग से जोड़ने का काम पूरा कर देगा। इस दौरान सांसद और विधायक निधि से चल रही 820 विकास योजनाओं को भी पूरा करने का लक्ष्य है। जाहिर है, इससे उक्त गांवों की दशा-दिशा सुधरेगी। ग्रामीणों के जीवन में व्यापक बदलाव आएगा। उन्हें इन योजनाओं का सीधे तौर पर लाभ मिलेगा। योजना के तहत 1020 कार्यों को पूरा कराया जाना है। राज्य सरकार की मंशा गांवों का समग्र विकास कराने के साथ उनको विकास की मुख्यधारा से जोड़ने की है। गांव के लोगों की सुविधाएं बढ़ाने, उनको योजनाओं का लाभ दिलाने, सशक्त और आत्मनिर्भर बनाने के साथ रोजगार उपलब्ध कराना है। प्रदेश में विकास को नई पहचान देने के लिए गांव-गांव में बन रही नई सड़कें और उनको मुख्य मार्गों से जोड़ने के काम से बड़ा बदलाव आ रहा है। मजरों तक आवाजाही की सुविधा के साथ उद्योगों को भी बढ़ावा मिल रहा है। ग्रामीण जन-जीवन में सुधार आने के साथ रोजगार के अवसर भी बढ़ रहे हैं। यूपी में केन्द्र सरकार की योजना किसानों, विद्यार्थियों, युवाओं के साथ ग्रामवासियों को सीधा लाभ दिला रही है।
प्रदेश की ग्राम पंचायतें भी अब शहरों की तरह स्मार्ट हो रही हैं। प्रदेश की दो जिला पंचायतों, तीन क्षेत्र पंचायतों और 25 ग्राम पंचायतों को विभिन्न श्रेणी में कुल 30 राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार मिले हैं। यह अपने आप में बड़ी उपलब्धि है। राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जम्मू-कश्मीर के सांबा जिले के पाली ग्राम पंचायत से रविवार को घोषणा की है। केंद्र सरकार की ओर से पंचायतों के खाते में सीधे पुरस्कार राशि भेजी गई। इस कार्यक्रम से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी वर्चुअली जुड़े और जालौन के ग्राम प्रधान रमपुरा और जिला पंचायत अध्यक्ष को अवार्ड दिया। केंद्र सरकार के पंचायती राज मंत्रालय ने जालौन के डाकोर ब्लॉक के रामपुरा गांव को चिल्ड्रेन फेमली ग्राम पंचायत अवार्ड 2022 दिया है। बरेली जिले के मझगांव ब्लॉक के अंटपुर ग्राम पंचायत को ग्राम पंचायत डेवलपमेंट प्लान अवार्ड 2022 मिला है। सिद्धार्थनगर जिले के भावनपुर ब्लॉक के हंसुड़ी औसानापार ग्राम पंचायत को नानाजी देशमुख राष्ट्रीय गौरव ग्राम सभा पुरस्कार मिला है। इसके अलावा दीन दयाल उपाध्याय पंचायत सशक्तिकरण पुरस्कार 2022 विभिन्न श्रेणी में दो जिला पंचायतों जालौन और मीरजापुर, तीन क्षेत्र पंचायतों और 20 ग्राम पंचायतों को मिले हैं। इसमें मथुरा जिले के नौहझील क्षेत्र पंचायत, देवरिया जिले के पत्थरदेवा क्षेत्र पंचायत, झांसी जिले के बांगरा क्षेत्र पंचायत शामिल हैं।
स्पष्ट है कि इससे गांवों में भी शहरों की तरह ही सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में अव्वल रहने की होड़ मचेगी और विकास के लिहाज से यह स्वस्थ संदेश भी है। शहरों की तर्ज पर ही जिस तरह गांव स्मार्ट हो रहे हैं, सतत विकास लक्ष्य के आधार पर उन्हें विकसित करने के उपक्रम हो रहे हैं। उसमें गांवों को भी पुरस्कृत करने की योजनाएं बनानी तो पड़ेगी ही। गांव वालों का मनोबल बढ़ाने के लिए ऐसा करना उचित भी है। जल्द ही सभी ग्राम सचिवालय क्रियाशील किए जाएंगे और ग्राम सचिवालय से ही लोगों को जन्म-मृत्यु प्रमाण-पत्र, खसरा, खतौनी, परिवार रजिस्टर की नकल आदि सुविधाएं अपने ग्राम पंचायत में ही मिलेंगी। साथ ही लोगों के समस्याओं के समाधान के लिए राज्य स्तर पर कॉल सेंटर की स्थापना की जा रही है। ग्रामीणों को अगर गांव में ही सुविधा मिलने लगेगी तो इससे उनकी शहर की दौड़ बचेगी। उनके श्रम, समय और धन का अपव्यय रुकेगा। उसका उपयोग वे दूसरे जरूरी कामों में कर सकेंगे।
उत्तर प्रदेश त्रिस्तरीय पंचायतों में डिजिटल प्रणाली लागू करने वाला देश का पहला राज्य बन गया है। प्रदेश में ग्राम सचिवालय की अवधारणा को न सिर्फ धरातल पर अमल में लाया जा रहा है, बल्कि 54,876 पंचायत भवनों के निर्माण से लेकर 56,366 पंचायत सहायकों की नियुक्ति भी की गई है। अब शहरों की तरह ग्राम पंचायतें भी स्ट्रीट लाइटों से जगमग होंगी और हर जिले में 25 इंजीनियर्स या आर्किटेक्ट का इनपैनलमेंट किया जाएगा। गांवों में मूलभूत सुविधाओं के साथ रोजगार भी उपलब्ध कराया जा रहा है। बीसी सखी, स्वयं सहायता समूह और अन्य योजनाओं के माध्यम से स्थानीय स्तर पर ही रोजगार दिलाने पर सरकार का जोर है। बेकार प्लास्टिक से सड़क निर्माण और रिसाइकिलिंग के लिए उपयोग किया जा रहा है। प्लास्टिक वेस्ट प्रबंधन के लिए विकास खंडों में स्थल का चयन किया जा रहा है। बायो फर्टिलाइजर से कुकिंग गैस का उत्पादन करने और बिजली बनाने की योजना है।
बतौर मुख्यमंत्री अपने दूसरे कार्यकाल में योगी आदित्यनाथ के तेवर काफी सख्त हैं। वे अधिकारियों के खिलाफ जनसमस्याओं के निस्तारण, आरोपों और भ्रष्टाचार की शिकायतों को गंभीरता से ले रहे हैं। ऐसे अधिकारियों पर कार्रवाई की जा रही है, तो अच्छा काम करने वाले अधिकारियों को अच्छी पोस्टिंग देकर इनाम भी दे रहे हैं। वे जल्द ही जिलों का दौरा करने और धरातल पर समीक्षा बैठक कर योजनाओं की पड़ताल करने वाले हैं। कर भी रहे हैं। हर सप्ताह होने वाली कैबिनेट की बैठकों में वे इन दिनों हर मंत्री और उनके विभागों का प्रस्तुतीकरण देख रहे हैं।
उनकी प्राथमिकता में सिर्फ जनसमस्याओं का निस्तारण नहीं है, बल्कि उसकी गुणवत्ता और शिकायत करने वाले की संतुष्टि भी अहम है, ताकि एक ही शिकायत बार-बार करने से लोगों को मुक्ति मिले। कुल मिलाकर अगर यह कहा जाए कि योगी आदित्यनाथ की दूसरी पारी में गांव-देहात का कायाकल्प होगा। वहां बसने वाली भारत की आत्मा मजबूत होगी तो इसमें कोई संदेह नहीं है लेकिन साथ ही इस बात पर भी ध्यान देना होगा कि ग्राम सचिवालय स्थापित करने की प्रक्रिया योगी राज-1 में ही शुरू हो गई थी, योगी राज-2 में अगर अधिकारी उसे क्रियाशील करने की बात कर रहे हैं तो इससे अधिकारियों की कार्यशैली पर सवाल तो उठता ही है। अगर वाकई यूपी को देश का सर्वोत्तम प्रदेश बनाना है तो सभी को मिल-जुलकर काम करना होगा। बिना इसके बात बनेगी नहीं।
(लेखक, हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)
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